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Badrinath Temple: बद्रीनाथ धाम बंद होने पर कहां होती भगवान बद्री विशाल की पूजा, धरती का 'बैकुंठ' के बारे में जानिए

Char Dham: बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद होने के साथ ही इस साल की चार धाम यात्रा का समापन हो गया. इस साल रिकॉर्ड 51 लाख से अधिक श्रद्धालुओं ने चार धामों के दर्शन किए, जिसमें अकेले बद्रीनाथ में 17.5 लाख श्रद्धालु पहुंचे. आइए जानते हैं बद्रीनाथ धाम बंद होने पर भगवान बद्री विशाल की पूजा कहां होती है? 

Badrinath Temple (Photo: PTI) Badrinath Temple (Photo: PTI)
हाइलाइट्स
  • विधि-विधान के साथ बद्रीनाथ धाम के कपाट बंद

  • इस साल रिकॉर्ड 51 लाख श्रद्धालु पहुंचे चार धाम

Badrinath Dham: बद्रीनाथ धाम के कपाट 25 नवंबर 2025 को दोपहर 2:56 बजे विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए. इस अवसर पर मंदिर को 12 क्विंटल फूलों से सजाया गया था. कपाट बंद होने के बाद भगवान बद्री विशाल की पूजा छह महीने तक जोशीमठ के नृसिंह मंदिर में होगी. इस साल चारधाम यात्रा में 51 लाख से अधिक श्रद्धालु शामिल हुए, जिनमें से 17.5 लाख श्रद्धालु बद्रीनाथ धाम पहुंचे. प्राकृतिक आपदाओं और मौसम की चुनौतियों के बावजूद श्रद्धालुओं का उत्साह कम नहीं हुआ.

चारधाम यात्रा का समापन
चारधाम यात्रा के अंतर्गत बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए. बद्रीनाथ धाम के कपाट 25 नवंबर को विवाह पंचमी के शुभ अवसर पर बंद हुए. इससे पहले केदारनाथ और यमुनोत्री के कपाट 23 अक्टूबर को भैया दूज पर बंद किए गए थे, जबकि गंगोत्री के कपाट 22 अक्टूबर 2025 को अन्नकूट के दिन बंद हुए. कपाट बंद होने के दौरान भगवान केदारनाथ की पूजा ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में, मां यमुना की खरसाली में और मां गंगा की मुखवा गांव में पूजा-अर्चना होगी. बद्रीनाथ धाम का कपाट बंद होने के दौरान मंदिर में एक अखंड दीपक जलाया जाता है, जिसके बारे में मान्यता है कि यह छह महीने बाद कपाट खुलने पर भी जलता हुआ मिलता है. 

बद्रीनाथ धाम की विशेषता
बद्रीनाथ धाम को धरती का बैकुंठ कहा जाता है. मान्यता है कि भगवान विष्णु यहां छह महीने तक निवास करते हैं. मंदिर में भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी, भगवान गणेश, कुबेर और उद्धव के विग्रह भी विराजमान हैं. कपाट बंद होने से पहले भगवान बद्री विशाल को माणा गांव की कुंवारी कन्याओं द्वारा निर्मित घृत कंबल ओढ़ाया गया.

कपाट बंद होने की प्रक्रिया
कपाट बंद होने से पहले मंदिर के मुख्य पुजारी रावल स्त्री वेश धारण कर माता लक्ष्मी को भगवान नारायण के बामांग में विराजमान कराते हैं. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. कपाट बंद होने के बाद भगवान बद्री विशाल की डोली को जोशीमठ के नृसिंह मंदिर में स्थापित किया जाता है.

बद्रीनाथ धाम की पौराणिक मान्यता
बद्रीनाथ धाम को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. कहा जाता है कि यहां भगवान विष्णु ने तपस्या की थी और देवी लक्ष्मी ने उन्हें धूप से बचाने के लिए बैरी के पेड़ का रूप धारण किया था. यह स्थान मोक्ष प्राप्ति का केंद्र माना जाता है.

मंदिर की वास्तुकला और धार्मिक महत्व
बद्रीनाथ मंदिर की वास्तुकला पहाड़ी शैली में बनी है. मंदिर के शिखर पर स्वर्ण छत्र और दीवारों पर हिंदू देवी-देवताओं की जटिल नक्काशी इसे विशेष बनाती है. यह स्थान धार्मिक और आध्यात्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र है.