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कैसे चुना जाएगा दलाई लामा का उत्तराधिकारी? क्या है गादेन फोडरंग ट्रस्ट का तुलकु सिस्टम? यह कैसे चीन की 200 साल पुरानी स्‍वर्ण कलश परंपरा से है अलग, समझिये

दलाई लामा, तिब्बती बौद्ध धर्म के सर्वोच्च आध्यात्मिक नेता, न सिर्फ तिब्बतियों के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए शांति और करुणा का प्रतीक हैं. 2025 में अपने 90वें जन्मदिन से पहले, दलाई लामा ने साफ कर दिया कि उनकी संस्था (Institution of Dalai Lama) जारी रहेगी, और उनका उत्तराधिकारी गादेन फोडरंग ट्रस्ट द्वारा चुना जाएगा.

दलाई लामा उत्तराधिकारी (फोटो-गेटी इमेज) दलाई लामा उत्तराधिकारी (फोटो-गेटी इमेज)

क्या आपने कभी सोचा कि तिब्बती बौद्ध धर्म के सर्वोच्च गुरु दलाई लामा का उत्तराधिकारी कैसे चुना जाता है? यह कोई साधारण प्रक्रिया नहीं, बल्कि रहस्यमयी संकेतों, प्राचीन परंपराओं और आध्यात्मिक शक्तियों का एक अनोखा मेल है! हाल ही में, 14वें दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो, ने अपने 90वें जन्मदिन से पहले एक बड़ा बयान दिया कि उनका उत्तराधिकारी गादेन फोडरंग ट्रस्ट द्वारा चुना जाएगा, और चीन का इसमें कोई दखल नहीं होगा.

लेकिन चीन अपनी 200 साल पुरानी स्वर्ण कलश (Golden Urn) परंपरा को थोपने की कोशिश कर रहा है. आखिर यह तुलकु सिस्टम क्या है? यह स्वर्ण कलश परंपरा से कैसे अलग है? और क्यों है यह पूरी दुनिया के लिए इतना बड़ा मुद्दा?

दलाई लामा का उत्तराधिकारी
दलाई लामा, तिब्बती बौद्ध धर्म के सर्वोच्च आध्यात्मिक नेता, न सिर्फ तिब्बतियों के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए शांति और करुणा का प्रतीक हैं. 2025 में अपने 90वें जन्मदिन से पहले, दलाई लामा ने साफ कर दिया कि उनकी संस्था (Institution of Dalai Lama) जारी रहेगी, और उनका उत्तराधिकारी गादेन फोडरंग ट्रस्ट द्वारा चुना जाएगा.

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यह ट्रस्ट, जिसे उन्होंने 2015 में स्थापित किया, तिब्बती बौद्ध परंपराओं के आधार पर 15वें दलाई लामा की खोज करेगा. लेकिन चीन का कहना है कि दलाई लामा का उत्तराधिकारी चुनने का अधिकार सिर्फ उसी के पास है, और वह स्वर्ण कलश की परंपरा का इस्तेमाल करेगा. यह विवाद न सिर्फ धार्मिक, बल्कि राजनीतिक और सांस्कृतिक जंग बन चुका है, जिसमें तिब्बत, भारत, और पूरी दुनिया की नजरें टिकी हैं!

तुलकु सिस्टम का रहस्य
तुलकु सिस्टम तिब्बती बौद्ध धर्म की एक अनोखी परंपरा है, जिसमें माना जाता है कि दलाई लामा जैसे आध्यात्मिक गुरु अपनी मृत्यु के बाद पुनर्जनम लेते हैं. इस सिस्टम में, दलाई लामा की आत्मा एक नए शरीर में प्रवेश करती है, और उसकी खोज के लिए प्राचीन रीति-रिवाजों का पालन किया जाता है. गादेन फोडरंग ट्रस्ट, जिसे 14वें दलाई लामा ने बनाया, इस खोज की जिम्मेदारी लेता है. यह ट्रस्ट तिब्बती बौद्ध परंपराओं के प्रमुख लामाओं और धर्म रक्षकों (Dharma Protectors) के साथ मिलकर काम करता है.

(फोटो- गेटी इमेज)
(फोटो- गेटी इमेज)

कैसे होती है खोज?  

1. रहस्यमयी संकेत: जब दलाई लामा की मृत्यु होती है, तो उनकी आत्मा की खोज के लिए दैवीय संकेतों, जैसे सपने, दर्शन, और ल्हामो लात्सो (तिब्बत की पवित्र झील) में दिखने वाली छवियों का सहारा लिया जाता है.  

2. पिछले दलाई लामा के संकेत: मृत दलाई लामा द्वारा छोड़े गए संदेश या संकेत, जैसे कि उनके अंतिम क्षणों में चेहरा किस दिशा में था, भी खोज में मदद करते हैं.  

3. परीक्षा: संभावित बच्चों की पहचान होने के बाद, उन्हें परीक्षा से गुजरना पड़ता है. जैसे, 14वें दलाई लामा, तेनजिन ग्यात्सो, को दो साल की उम्र में 13वें दलाई लामा की वस्तुओं को पहचानने के लिए कहा गया, और उन्होंने कहा, “यह मेरा है!”  

4. कोई सीमा नहीं: दलाई लामा ने कहा है कि उनका उत्तराधिकारी किसी भी लिंग (पुरुष, महिला) का हो सकता है और तिब्बत तक सीमित नहीं होगा. वह भारत या किसी अन्य स्वतंत्र देश में जन्म ले सकता है.  

यह प्रक्रिया आध्यात्मिक और पारदर्शी है, जिसमें तिब्बती समुदाय की सहमति और परंपराएं अहम हैं. दलाई लामा ने साफ कहा कि चीन या कोई अन्य सरकार इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकती.

चीन की स्वर्ण कलश परंपरा:
स्वर्ण कलश (Golden Urn) की परंपरा 1792 में चिंग राजवंश के सम्राट कियानलॉन्ग ने शुरू की थी. इसका मकसद तिब्बती लामाओं की नियुक्ति में चीन की सत्ता को मजबूत करना था. इस प्रक्रिया में संभावित उम्मीदवारों के नाम सोने के कलश में डाले जाते हैं. एक चीनी अधिकारी की मौजूदगी में लॉटरी के जरिए नाम चुना जाता है. अंतिम स्वीकृति चीनी सरकार से लेनी पड़ती है.  

(फोटो- गेटी इमेज)
(फोटो- गेटी इमेज)

चीन का दावा है कि यह परंपरा तिब्बती बौद्ध धर्म का हिस्सा है, और इसका इस्तेमाल 11वें और 12वें दलाई लामा की नियुक्ति में हुआ. लेकिन तिब्बती विद्वानों और दलाई लामा का कहना है कि यह परंपरा कभी नियमित नहीं थी. 9वें, 13वें और 14वें दलाई लामा की नियुक्ति में स्वर्ण कलश का इस्तेमाल नहीं हुआ. दलाई लामा ने इसे चीन का राजनीतिक हथकंडा बताया है, क्योंकि चीनी कम्युनिस्ट सरकार पुनर्जनम की अवधारणा को ही नहीं मानती.  

चीन ने 2007 में धार्मिक मामलों के लिए स्टेट रिलीजियस अफेयर्स ब्यूरो ऑर्डर नंबर 5 लागू किया, जिसमें कहा गया कि सभी तिब्बती लामाओं की नियुक्ति में स्वर्ण कलश और चीनी सरकार की मंजूरी जरूरी है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है 10वें पंचेन लामा की मृत्यु के बाद 1995 में, जब दलाई लामा ने एक 6 साल के बच्चे को पंचेन लामा के रूप में चुना, लेकिन चीन ने उसे और उसके परिवार को गायब कर दिया और अपने चुने हुए उम्मीदवार को नियुक्त किया.  

(फोटो- गेटी इमेज)
(फोटो- गेटी इमेज)

तुलकु सिस्टम और स्वर्ण कलश में क्या फर्क है?
तुलकु सिस्टम पूरी तरह आध्यात्मिक है, जो तिब्बती बौद्ध धर्म की मान्यताओं और परंपराओं पर आधारित है. इसमें दैवीय संकेत, धर्म रक्षक, और लामाओं की सलाह शामिल होती है.  वहीं, स्वर्ण कलश एक राजनीतिक उपकरण है, जिसे चिंग राजवंश ने तिब्बत पर नियंत्रण के लिए शुरू किया. इसका मकसद धार्मिक नहीं, बल्कि सत्ता को मजबूत करना था.  

इसके अलावा, जहां तुलकु सिस्टम में गादेन फोडरंग ट्रस्ट स्वतंत्र रूप से काम करता है, जिसमें तिब्बती समुदाय और बौद्ध परंपराएं शामिल होती हैं. वहीं स्वर्ण कलश में चीनी सरकार की मंजूरी जरूरी है, जिससे यह पूरी तरह नियंत्रित प्रक्रिया बन जाती है.  

2 जुलाई 2025 को, दलाई लामा ने धर्मशाला में एक वीडियो संदेश में कहा कि गादेन फोडरंग ट्रस्ट ही उनके उत्तराधिकारी की खोज करेगा. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनका पुनर्जनम चीन में नहीं, बल्कि किसी स्वतंत्र देश में होगा.