

हिंदू धर्म में तिलक लगाने की परंपरा बहुत पुरानी है. बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक, हर कोई तिलक लगाता है. खास मौकों, पूजा और त्योहारों के अलावा भी, बहुत से लोग हर दिन तिलक लगाते हैं. अब सवाल है कि आखिर तिलक लगाने का क्या महत्व है? माथे पर तिलक क्यों लगाया जाता है?
तिलक क्या है
तिलक एक छोटा सा चिन्ह है जो कुमकुम, चंदन या भस्म से माथे पर लगाया जाता है. इसे रोज़ाना की पूजा से पहले या बाद में, विशेष अनुष्ठानों, धार्मिक समारोहों और मंदिरों की यात्रा के समय लगाया जाता है. क्षेत्र और परंपरा के अनुसार तिलक के आकार और प्रकार अलग-अलग होते हैं- कहीं यह बिंदी के रूप में, कहीं ‘U’ आकार में, तो कहीं सीधी रेखा या तीन क्षैतिज धारियों के रूप में लगाया जाता है. विभिन्न संप्रदायों और अवसरों के अनुसार तिलक की विधि भी भिन्न होती है.
तिलक क्यों लगाया जाता है
हिंदू धर्म में माना जाता है कि माथे के बीच का स्थान, विशेषकर दोनों भौंहों के बीच का बिंदु, मानव शरीर का एक अत्यंत शक्तिशाली ऊर्जा केंद्र है. इस स्थान को ‘आज्ञा चक्र’ या ‘तीसरी आंख’ कहा जाता है. आध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार, तिलक लगाने से आज्ञा चक्र सक्रिय होता है, जिससे व्यक्ति की अंतरात्मा, अंतर्ज्ञान, आध्यात्मिक दृष्टि और विचारों की स्पष्टता बढ़ती है. तिलक भगवान के प्रति भक्ति और समर्पण का भी प्रतीक है- चाहे वह भगवान विष्णु हों, भगवान शिव, मां दुर्गा या कोई अन्य देवी-देवता.
आज्ञा चक्र और तिलक का प्रभाव
तिलक लगाने का स्थान संयोगवश नहीं चुना गया है. अधिकतर पंडित और बुजुर्ग तिलक को ठीक उसी स्थान पर लगाते हैं जहां आज्ञा चक्र स्थित है. चंदन, कुमकुम या भस्म से लगाए गए तिलक से माना जाता है कि मानसिक शांति मिलती है और जीवन में आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार होता है.
तिलक: एक सुरक्षा कवच
हिंदू परंपरा में तिलक को सुरक्षा और पवित्रता का प्रतीक भी माना जाता है. माना जाता है कि पूजा से पहले स्नान करके तिलक लगाने से व्यक्ति आंतरिक रूप से शुद्ध हो जाता है. कई मान्यताओं के अनुसार तिलक एक अदृश्य सुरक्षा कवच है जो नकारात्मक ऊर्जा और बुरी नज़र से रक्षा करता है.
चंदन तिलक का ठंडक प्रभाव
चंदन से बनाया गया तिलक विशेष रूप से लोकप्रिय है क्योंकि चंदन स्वभाव से शीतल और शांतकारी होता है. इसे माथे पर लगाने से शरीर का तापमान कम होता है और मन को शांति मिलती है. यही कारण है कि दैनिक पूजा से पहले या ध्यान के समय चंदन तिलक लगाने की परंपरा बहुत पुरानी है.
विजय का प्रतीक तिलक
प्राचीन समय में राजा, योद्धा और सैनिक युद्ध पर जाने से पहले विशेष तिलक लगाया करते थे. इस तिलक के लिए अक्सर लाल चंदन का उपयोग किया जाता था और इसे लंबवत रूप में लगाया जाता था. पुरोहित अपने अंगूठे से तिलक लगाकर योद्धाओं को विजय का आशीर्वाद देते थे.
वैष्णव परंपरा में तिलक
तिलक के कई प्रकार हैं, लेकिन वैष्णव संप्रदाय में लगाए जाने वाले तिलक सबसे प्रसिद्ध हैं. भगवान विष्णु के भक्त माथे पर U-आकार का सफेद तिलक लगाते हैं, जिसके बीच में कुमकुम का छोटा लाल बिंदु होता है. यह तिलक पहचान, भक्ति और समर्पण का प्रतीक है और इसे अनुयायी हर दिन लगाते हैं.
त्रिपुंड्र तिलक: शिव भक्तों की पहचान
भगवान शिव के अनुयायियों के लिए त्रिपुंड्र तिलक उनकी आस्था और पहचान का हिस्सा है. इसमें भस्म या विभूति से माथे पर तीन क्षैतिज रेखाएं बनाई जाती हैं, जिनके बीच में लाल बिंदु लगाया जाता है. यह लाल बिंदु भगवान शिव की तीसरी आंख का प्रतीक माना जाता है, जबकि क्षैतिज रेखाएं भौतिक संसार से विरक्ति का संकेत देती हैं.
-------End-------