
हिन्दू धर्म में पूजा-पाठ केवल परंपरा नहीं है, बल्कि हर छोटे-से-छोटे कार्य के पीछे एक गहरा आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक महत्व छिपा हुआ है. इन्हीं में से एक है पूजा के दौरान दीपक को दक्षिणावर्त (Clockwise) दिशा में घुमाना. साधारण-सा दिखने वाला यह कार्य वास्तव में जीवन और ब्रह्मांड की कई गूढ़ अवधारणाओं से जुड़ा हुआ है.
1. सूर्य और ब्रह्मांड की गति का प्रतीक
संपूर्ण सृष्टि सूर्य की परिक्रमा पर आधारित है. पृथ्वी, चंद्रमा और अन्य ग्रह सूर्य के चारों ओर दक्षिणावर्त दिशा में ही घूमते हैं. जब हम दीपक को दक्षिणावर्त घुमाते हैं तो यह उस ब्रह्मांडीय गति का प्रतीक होता है, जिससे जीवन और ऊर्जा का प्रवाह निरंतर बना रहता है.
2. सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार दक्षिणावर्त गति से वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है. इससे घर-परिवार में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहती है. यही कारण है कि आरती या दीप घुमाने की दिशा हमेशा दक्षिणावर्त ही रखी जाती है.
3. आरती का अर्थ - प्रकाश का प्रसार
‘आरती’ का शाब्दिक अर्थ है अंधकार को दूर करना. दीपक को घुमाने का उद्देश्य ईश्वर के प्रकाश (ज्ञान और शक्ति) को अपने चारों ओर फैलाना है. दक्षिणावर्त दिशा में दीपक घुमाने से यह संकेत मिलता है कि हम अपने जीवन से अज्ञान का अंधकार दूर कर ईश्वर के प्रकाश को अपनाते हैं.
4. शास्त्रों में भी है इसका उल्लेख
धार्मिक ग्रंथों और पुराणों में भी दक्षिणावर्त दिशा को ‘देवदिशा’ कहा गया है. माना जाता है कि इस दिशा में किए गए कार्य ईश्वर तक शीघ्र पहुंचते हैं और उनका फल भी शुभ होता है.
5. मनोवैज्ञानिक प्रभाव
जब हम दक्षिणावर्त दिशा में दीपक घुमाते हैं तो हमारा मन एक लय और गति में बंध जाता है. यह ध्यान और एकाग्रता की स्थिति उत्पन्न करता है. मनुष्य का अवचेतन मन भी इस गति को सकारात्मक और शांति प्रदान करने वाला मानता है.
पूजा में दीपक को दक्षिणावर्त घुमाना केवल परंपरा भर नहीं है, बल्कि यह ब्रह्मांडीय गति, सकारात्मक ऊर्जा, आध्यात्मिक एकाग्रता और धार्मिक मान्यता का संगम है. यही कारण है कि आज भी हर मंदिर और घर की पूजा में दीपक की आरती दक्षिणावर्त ही की जाती है.