scorecardresearch

Eid Ul Azha 2024: मुस्लिम समाज क्यों मनाता है Bakrid का त्योहार? जानिए इसका इतिहास और इस साल ईद की तारीख

भारतीय उप-महाद्वीप में बकरीद के नाम से मशहूर इस त्योहार में मुस्लिम समाज के लोग भेड़-बकरों जैसे चौपाय जानवरों की कुर्बानी पेश करते हैं. यह प्रथा 1400 से ज्यादा सालों से चली आ रही है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि मुस्लिम समाज यह त्योहार क्यों मनाता है?

Representational Photo (Source:PTI) Representational Photo (Source:PTI)
हाइलाइट्स
  • दुनियाभर के 1.8 अरब मुसलमान मनाते हैं ये त्योहार

  • 1400 साल से चली आ रही है प्रथा

मुस्लिम समुदाय का कुर्बानी से जुड़ा त्योहार ईद-उल-अजहा (Eid Ul Azha) अब कुछ ही दिन दूर है. भारतीय उप-महाद्वीप में बकरीद के नाम से मशहूर इस त्योहार में मुस्लिम समाज के लोग भेड़-बकरों जैसे चौपाय जानवरों की कुर्बानी पेश करते हैं. यह प्रथा 1400 से ज्यादा सालों से चली आ रही है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि मुस्लिम समाज यह त्योहार क्यों मनाता है? आइए डालते हैं कुर्बानी की भावना से जुड़े इस त्योहार के इतिहास पर एक नजर.

पैगंबर इब्राहिम से जुड़ी है रस्म
ईद-उल-अजहा पर जानवर की कुर्बानी की प्रथा दरअसल इस्लाम के पैगंबर इब्राहिम (Prophet Ibrahim) से जुड़ी हुई है. इस प्रथा की शुरुआत जिस घटना से हुई, उसका जिक्र यहूदी मजहब की किताब तोराह में भी पाया जाता है. इन मान्यताओं के अनुसार, पैगंबर इब्राहिम को खुदा की ओर से यह बात सपने में प्रकट हुई थी कि उन्हें अपने बेटे इस्माईल को कुर्बान करना है.  

इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, जब उन्होंने यह बात अपने बेटे को बताई, तो बेटे ने कहा, "मेरे वालिद! जैसा आपको हुक्म मिला है वैसा करिए. अगर खुदा ने चाहा तो आप मुझे सब्र करने वालों में से पाएंगे."  

सम्बंधित ख़बरें

इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार जब पैगंबर इब्राहिम अपने बेटे इस्माईल को कुर्बान करने वाले थे तब खुदा ने जिब्रईल नाम के फरिश्ते को हुक्म दिया कि वह जन्नत से एक भेड़ ले जाकर इस्माईल की जगह रख दें. इस तरह पैगंबर इब्राहिम ने अपने बेटे की जगह भेड़ की कुर्बानी दी और यह रस्म यहीं से शुरू हो गई. आगे चलकर पैगंबर मोहम्मद ने मुसलमानों को इसी रस्म की पैरवी करने के लिए कहा. इसी वजह से आज इस्लामी दुनिया में ईद-उल-अजहा का त्योहार मनाया जाता है. 

कुछ यूं है ईद से जुड़ी परंपरा
सारी दुनिया के मुसलमान साल में दो त्योहार मनाते हैं. पहला ईद-उल-फित्र (मीठी ईद) और दूसरा ईद-उल-अजहा. ईद-उल-अजहा का त्योहार मीठी ईद के ठीक दो महीने 9 दिन बाद इस्लामी कैलेंडर के आखिरी महीने जुल हिज्जा में आता है. तीन दिन का यह त्योहार महीने की 10 तारीख को शुरू होता है. मीठी ईद की तरह ही बकरीद की शुरुआत भी सुबह नमाज के साथ होती है. मुस्लिम श्रद्धालु मस्जिद में ईद-अल-अजहा की नमाज अदा करते हैं. ईद-अल-अजहा की नमाज जुल हिज्जा की 10 तारीख को सूरज के पूरी तरह से उगने के बाद अदा की जाती है, हालांकि कोई अनहोनी घटने पर नमाज 11वीं या 12वीं तारीख तक टाली जा सकती है. 

नमाज के समापन पर मुसलमान एक-दूसरे से गले मिलते हैं और ईद मुबारक कहते हैं. इसके बाद कुर्बानी की रस्म ईद-उल-अजहा को खास बनाती है. बकरीद पर जो जानवर कुर्बान किया जाता है उसके गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है. एक हिस्सा कुर्बानी करने वालों के लिए. एक उस शख्स के रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए. एक हिस्सा गरीबों के लिए. पशुपालन मंत्रालय के अनुसार, साल 2022 में सिर्फ भारत में ही करीब एक करोड़ जानवरों की कुर्बानी की गई थी. 

भारत में ईद-उल-अज़हा कब
दिल्ली समेत पूरे मुल्क में ईद-उल-अजहा का त्योहार 17 जून को मनाया जाएगा. पीटीआई की एक खबर के मुताबिक, चांदनी चौक स्थित फतेहपुरी मस्जिद के शाही इमाम मुफ्ती मुकर्रम अहमद ने बताया कि दिल्ली के आसमान में सात जून को बादल छाए रहे, लेकिन देर रात गुजरात, तेलंगाना के हैदराबाद और तमिलनाडु के चेन्नई से इस्लामी कैलेंडर के आखिरी महीने ‘ज़ुल हिज्जा’ का चांद दिखने की पुष्टि हो गई. 

उन्होंने यह भी साफ किया कि ईद-उल-फित्र के उलट बकरीद का त्योहार चांद दिखने के 10वें दिन मनाया जाता है, इसलिए फौरन ऐलान करने की कोई जल्दबाजी नहीं थी. इसी वजह से अलग-अलग जगहों से चांद नजर आने की पुष्टि होने का इंतजार किया गया. इस्लामी कैलेंडर में 29 या 30 दिन होते हैं जो चांद दिखने पर निर्भर करते हैं.