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Ganesh Chaturthi 2025: गणेश चतुर्थी पर मंदिर की छत से फेंका जाता है प्रसाद, भक्त अपने उल्टे छातों में करते हैं ग्रहण

नवगन राजुरी की यह अनोखी परंपरा गणेश चतुर्थी के उत्सव को एक नया रंग देती है. उल्टे छाते में प्रसाद ग्रहण करने की यह प्रथा न केवल आस्था और परंपरा का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर को भी उजागर करती है. यह दृश्य हर साल हजारों लोगों को एक साथ लाता है और गणपति बप्पा के प्रति उनकी भक्ति को और गहरा करता है.

उल्टे छाते में प्रसाद उल्टे छाते में प्रसाद

महाराष्ट्र के बीड जिले के नवगन राजुरी गांव में गणेश चतुर्थी के अवसर पर एक ऐसी परंपरा देखने को मिलती है, जो न केवल अनोखी है, बल्कि श्रद्धालुओं के बीच आस्था और उत्साह का अनूठा संगम भी प्रस्तुत करती है. यहां हर साल गणेश चतुर्थी के दौरान आयोजित होने वाले अखंड हरिनाम सप्ताह के समापन पर मंदिर की छत से प्रसाद फेंका जाता है, जिसे भक्त अपने उल्टे छातों में इकट्ठा करते हैं. यह परंपरा पिछले कई वर्षों से चली आ रही है और अब यह स्थानीय स्तर पर ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी चर्चा का विषय बन गई है.

क्या है यह अनोखी परंपरा?

नवगन राजुरी गांव में गणेश चतुर्थी के अवसर पर 1 सितंबर 2025 को अखंड हरिनाम सप्ताह का आयोजन किया गया. इस सप्ताह के अंतिम दिन, मंदिर की छत से महाप्रसाद नीचे खड़े भक्तों की ओर फेंका जाता है. इस दौरान श्रद्धालु अपने छाते उल्टे करके खड़े रहते हैं, और छत से गिरने वाला प्रसाद उनके छातों में इकट्ठा हो जाता है.

यह प्रक्रिया न केवल अनोखी है, बल्कि यह सुनिश्चित करती है कि बड़ी संख्या में भक्त एक साथ प्रसाद ग्रहण कर सकें, जिससे अव्यवस्था और भ्रम की स्थिति से बचा जा सके. इस परंपरा की खासियत यह है कि पहले के समय में लोग पगड़ी या धोती में प्रसाद ग्रहण करते थे, लेकिन समय के साथ यह परंपरा उल्टे छातों तक पहुंच गई.

परंपरा का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

यह परंपरा नवगन राजुरी के श्री गणेश मंदिर में पिछले 100 वर्षों से भी अधिक समय से चली आ रही है. गणेश चतुर्थी, जो भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाई जाती है, विघ्नहर्ता गणपति के जन्मोत्सव के रूप में पूरे देश में उत्साह के साथ मनाई जाती है. लेकिन बीड जिले के इस गांव में यह परंपरा इसे और भी खास बनाती है. अखंड हरिनाम सप्ताह के दौरान भक्त भजन-कीर्तन और पूजा-पाठ में डूबे रहते हैं, और अंतिम दिन यह अनोखा प्रसाद वितरण उत्सव का मुख्य आकर्षण बनता है. इस प्रथा के पीछे सामुदायिक एकता और सामूहिक भक्ति की भावना को बढ़ावा देना भी माना जाता है.

श्रद्धालुओं का उत्साह और आस्था

इस अनोखी परंपरा में भाग लेने के लिए बीड और आसपास के इलाकों से हजारों श्रद्धालु नवगन राजुरी पहुंचते हैं. मंदिर के नीचे खड़े भक्त अपने छातों को उल्टा करके प्रसाद पकड़ने के लिए उत्साहित रहते हैं. यह दृश्य न केवल आस्था का प्रतीक है, बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव का भी हिस्सा है. गौरी पूजन के दौरान तैयार किया गया महाप्रसाद, जिसमें मिठाइयां, फल, और अन्य पवित्र सामग्री शामिल होती है, भक्तों के बीच बांटा जाता है. यह प्रक्रिया सामूहिकता और भक्ति की भावना को और मजबूत करती है.

परंपरा का आधुनिक स्वरूप

पहले जहां भक्त पगड़ी या धोती में प्रसाद ग्रहण करते थे, वहीं अब छाते का उपयोग इस परंपरा को और अधिक व्यवस्थित और आकर्षक बनाता है. यह बदलाव समय के साथ आधुनिकीकरण का प्रतीक है, लेकिन इसकी मूल भावना- आस्था और सामुदायिक एकता- वही रही है. इस परंपरा ने न केवल स्थानीय लोगों का ध्यान खींचा है, बल्कि सोशल मीडिया और समाचार माध्यमों के जरिए यह देशभर में चर्चा का विषय बन गई है. गणेश चतुर्थी के इस अनोखे रंग ने बीड के नवगन राजुरी को एक विशेष पहचान दी है.

नवगन राजुरी की यह अनोखी परंपरा गणेश चतुर्थी के उत्सव को एक नया रंग देती है. उल्टे छाते में प्रसाद ग्रहण करने की यह प्रथा न केवल आस्था और परंपरा का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर को भी उजागर करती है. यह दृश्य हर साल हजारों लोगों को एक साथ लाता है और गणपति बप्पा के प्रति उनकी भक्ति को और गहरा करता है. बीड का यह अनोखा उत्सव देशभर के लोगों के लिए प्रेरणा और उत्साह का स्रोत बन रहा है.

(रिपोर्ट: रोहिदास हातागले)