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अलवर में भगवान जगन्नाथ और जानकी जी का भव्य विवाह! वृंदावन से आई चांदी की वरमाला, लाखों श्रद्धालुओं ने बरसाए फूल!

इस विवाह में वृंदावन से लाई गई चांदी की वरमाला ने सभी का ध्यान खींचा. इसके अलावा, कमलगट्टे, तुलसी, गुलाब, और मोगरे की मालाओं सहित कुल 11 वरमालाएं भगवान जगन्नाथ ने माता जानकी को पहनाईं. माता जानकी शाही लवाजमे में रथ पर सवार होकर मेला स्थल पहुंचीं, जहां पूरे रीति-रिवाज के साथ विवाह संपन्न हुआ.

Jagannath Janaki Wedding Jagannath Janaki Wedding

राजस्थान के अलवर में जगन्नाथ रथ यात्रा और लक्खी मेला की धूम एक बार फिर भक्ति और उत्साह से सराबोर हो रही है! बीती रात, 6 जुलाई 2025 को, भगवान जगन्नाथ और माता जानकी का विवाह विधि-विधान के साथ संपन्न हुआ, जिसमें वृंदावन से विशेष रूप से लाई गई चांदी की वरमाला सहित कुल 11 वरमालाएं भगवान ने जानकी जी को पहनाईं. इस ऐतिहासिक आयोजन में लाखों श्रद्धालु शामिल हुए, जिन्होंने जयकारों और फूलों की वर्षा के साथ इस पवित्र विवाह को यादगार बनाया. 

जगन्नाथ रथ यात्रा और लक्खी मेला
अलवर का जगन्नाथ मेला देश में पुरी के बाद सबसे प्रसिद्ध माना जाता है. यह पांच दिनों तक चलने वाला उत्सव भक्ति, संस्कृति और परंपराओं का अनूठा संगम है. इस बार 23 जून 2025 से शुरू हुआ मेला गणेश पूजन के साथ धूमधाम से आरंभ हुआ. मेले के दौरान भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की रथ यात्रा निकाली जाती है, जो 4 जुलाई 2025 को अलवर में शुरू हुई. मेले का सबसे खास आकर्षण है भगवान जगन्नाथ और माता जानकी का विवाह, जो 6 जुलाई 2025 को रात 10:30 बजे रूपवास के रूप हरि मंदिर में संपन्न हुआ.

इस विवाह में वृंदावन से लाई गई चांदी की वरमाला ने सभी का ध्यान खींचा. इसके अलावा, कमलगट्टे, तुलसी, गुलाब, और मोगरे की मालाओं सहित कुल 11 वरमालाएं भगवान जगन्नाथ ने माता जानकी को पहनाईं. माता जानकी शाही लवाजमे में रथ पर सवार होकर मेला स्थल पहुंचीं, जहां पूरे रीति-रिवाज के साथ विवाह संपन्न हुआ. इस दौरान 1100 महिलाओं ने कलश यात्रा में हिस्सा लिया, और साड़ी, कपड़े व जेवरात देकर माता जानकी का कन्यादान किया.

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विवाह का भव्य आयोजन और श्रद्धालुओं का उत्साह
विवाह समारोह में राजस्थान के साथ-साथ उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, मध्य प्रदेश, गुजरात और छत्तीसगढ़ से लाखों श्रद्धालु शामिल हुए. मंत्रोच्चार और भजनों के बीच पूरा मेला स्थल ‘जय जगन्नाथ’ और ‘जानकी माता की जय’ के जयकारों से गूंज उठा. भगवान जगन्नाथ को चतुर्भुज रूप में दर्शन देने का अवसर भी श्रद्धालुओं को मिला, जो साल में केवल एक बार होता है.

मेले की तैयारियां कई दिन पहले से शुरू हो गई थीं. जगन्नाथ मंदिर को रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया गया, और रथ के पहियों की मरम्मत सहित सभी व्यवस्थाएं पूरी की गईं. विवाह के बाद भगवान जगन्नाथ और माता जानकी एक दिन मेला स्थल पर विराजमान रहेंगे, और अगले दिन, 7 जुलाई 2025 को, रथ में सवार होकर वापस जगन्नाथ मंदिर लौटेंगे. इस दौरान पुलिस प्रशासन ने सुरक्षा और व्यवस्था के लिए पुख्ता इंतजाम किए.

यह भक्ति का अनूठा संगम
मंदिर के पुजारी देवेंद्र शर्मा ने बताया, "अलवर का जगन्नाथ मेला भक्ति और परंपरा का अनूठा संगम है. भगवान जगन्नाथ और माता जानकी का विवाह श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है. चांदी की वरमाला और छत्तीसगढ़, वृंदावन से आई मालाएं इस आयोजन को और खास बनाती हैं." उन्होंने कहा कि यह मेला न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक एकता का भी प्रतीक है.

अलवर मेले की खासियत
अलवर का जगन्नाथ मेला अपनी अनूठी परंपराओं के लिए जाना जाता है. भगवान जगन्नाथ का इंद्र विमान, उनकी विशेष पोशाक, और माता जानकी के साथ विवाह का आयोजन इसे पुरी की रथ यात्रा के बाद सबसे खास बनाता है. मेले में तीन दिन तक मेला भरता है, और चौथे दिन भगवान इंद्र विमान में सवार होकर मेला स्थल पहुंचते हैं. स्थानीय लोग कई दिनों पहले से तैयारियां शुरू कर देते हैं, और इस बार लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ ने इस आयोजन को ऐतिहासिक बना दिया.

(हिमांशु शर्मा की रिपोर्ट)