
इस साल हरियाली तीज 31 जुलाई 2025 (गुरुवार) को मनाई जाएगी. यह पर्व श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आता है, और उत्तर भारत में खासतौर से विवाहित महिलाओं के बीच बेहद श्रद्धा और उमंग से मनाया जाता है.
क्या है हरियाली तीज का महत्व?
हरियाली तीज न सिर्फ एक व्रत है, बल्कि यह एक सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव भी है जो प्रकृति, प्रेम और पुनर्मिलन का प्रतीक है. इसे खासकर भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन की स्मृति में मनाया जाता है. महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं, झूला झूलती हैं, गीत गाती हैं और सुंदर-सजावट करती हैं.
हरे रंग की साड़ी और चूड़ियां क्यों?
हरियाली तीज पर हरा रंग पहनने की परंपरा सदियों पुरानी है. लेकिन आखिर क्यों?
लाल आलता क्यों लगाती हैं महिलाएं?
लाल आलता यानी पैरों पर लगाया जाने वाला लाल रंग, हरियाली तीज की सजावट का एक अहम हिस्सा है. दरअसल, लाल रंग को भारतीय परंपरा में सौभाग्य और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है. माना जाता है कि लाल आलता लगाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर रहती है और देवी पार्वती का आशीर्वाद मिलता है. साथ ही, यह पारंपरिक सौंदर्य को बढ़ाता है और एक तरह से स्त्रीत्व और शुभता का प्रदर्शन भी करता है.
क्या करती हैं महिलाएं इस दिन?
यह दिन महिलाओं के लिए न केवल धार्मिक रूप से खास होता है, बल्कि यह आपसी मेल-जोल और सांस्कृतिक जुड़ाव का भी अवसर होता है.
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1. हरियाली तीज 2025 में कब है?
-31 जुलाई 2025, गुरुवार को.
2. हरियाली तीज पर हरी साड़ी और चूड़ियां क्यों पहनी जाती हैं?
-हरा रंग प्रकृति, सौभाग्य और नवजीवन का प्रतीक है. यह रंग तीज के मौसम और भावना से मेल खाता है.
3. लाल आलता तीज पर क्यों लगाया जाता है?
-यह परंपरा देवी शक्ति को प्रसन्न करने, शुभता लाने और स्त्री सौंदर्य को निखारने के लिए की जाती है.
4. हरियाली तीज पर कौन-से रीति-रिवाज निभाए जाते हैं?
-निर्जल व्रत, शिव-पार्वती पूजन, लोकगीत-झूले, मेंहदी शृंगार, और कथा-वाचन.
5. क्या कुंवारी लड़कियां भी हरियाली तीज का व्रत रख सकती हैं?
-हां, कई कुंवारी लड़कियां अच्छे वर की प्राप्ति और पार्वती माता का आशीर्वाद पाने के लिए यह व्रत रखती हैं.
6. हरियाली तीज का धार्मिक महत्व क्या है?
-यह पर्व शिव-पार्वती के मिलन का प्रतीक है और विवाहित महिलाओं के लिए सौभाग्य, प्रेम और पति की लंबी उम्र के लिए समर्पित है.
हरियाली तीज एक ऐसा पर्व है जो प्रकृति, प्रेम और परंपरा को एक साथ जोड़ता है. हरे रंग की साड़ी से लेकर लाल आलता तक, हर चीज का अपना प्रतीकात्मक महत्व है. यह पर्व महिलाओं को न सिर्फ धार्मिक रूप से बल्कि भावनात्मक और सामाजिक रूप से भी एक-दूसरे से जोड़ता है.