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Kanwar Yatra 2025: सावन में कांवड़ यात्रा के अनोखे रंग! मां-बेटे साथ में कर रहे पैदल यात्रा, शिवरात्रि के दिन भोलेनाथ का करेंगे जल अभिषेक

हरियाणा के करनाल में रहने वाले शिव भक्त अपनी मां के साथ कांवड़ यात्रा कर रहा है. चौथी क्लास में पढ़ने वाला बच्चा अपनी मां के साथ पहली बार कांवड़ यात्रा कर रहा है. इस कांवड़ यात्रा में पिता भी साथ है. 23 जुलाई को करनाल में शिवरात्रि पर जलाभिषेक करेंगे.

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हाइलाइट्स
  • पूरे देश में जोर-शोर से चल रही कांवड़ यात्रा

  • सड़कों पर गूंज रहे बम भोले के जयकारे

सावन का महीना चल रहा है. भगवान शिव के भक्तों की ओर से अलग-अलग और अनोखी कांवड़ यात्रा भी इस दौरान देखने को मिल रही हैं. लाखों की संख्या में शिव भक्तों को इस वक्त आप सड़कों पर देख सकते हैं. इन दिनों कांवड़ यात्रा पूरे देश में जोर-शोर से चल रही है. हर साल सावन के महीने में लाखों शिव भक्त गंगा जल लाने के लिए हरिद्वार, गंगोत्री, गोमुख और अन्य तीर्थ स्थलों से पैदल यात्रा करते हैं. इस जल को वे अपने गांव या शहर में स्थित शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव का अभिषेक करते हैं.

बम-बम बोल की गूंज

कांवड़िए भगवा कपड़े पहनकर, कंधे पर कांवड़ उठाकर, "बोल बम" के जयकारों के साथ लंबी यात्रा तय कर रहे हैं. प्रशासन की ओर से यात्रियों की सुरक्षा, भोजन, स्वास्थ्य सुविधा और ठहरने के इंतजाम किए गए हैं. ऐसी मान्यता है कि सावन में भगवान शिव को गंगा जल चढ़ाने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और पुण्य मिलता है. साथ ही यह भक्ति, श्रद्धा और अनुशासन का प्रतीक भी है.

बहुत सारे शिव भक्त अपने कंधों पर भगवान शिव की कांवड़ यात्रा लेकर हरिद्वार से वापसी करते हुए नजर आ रहे हैं. ऐसे ही शिव भक्त मां-बेटा हरिद्वार से अपने घर के लिए गए हैं. करनाल के रहने वाले मां-बेटे इस वक्त घीड़ गांव के नजदीक पहुंच चुके हैं. दो दिन के बाद शिवरात्रि के दिन करनाल पहुंचेंगे. शिवरात्रि पर मां-बेटे गंगाजल से भगवान शंकर का जलाभिषेक करेंगे.

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कांवड़ के अनोखे रंग

शिव भक्त रीना ने बताया कि उसका बेटा और वो कांवड़ यात्रा लेकर हरिद्वार से पैदल चले हुए हैं. उनका पति भी उनके साथ है. वो भी उनके साथ चल रहे हैं लेकिन कांवड़ यात्रा उनका बेटा और वो खुद उठा रहे हैं. उन्होंने बताया कि बिना मांगे भगवान शिव उन्हें सब कुछ दे रहे हैं. उनका बेटा भी शिवरात्रि के दिन भगवान शंकर के आशीर्वाद से उन्हें प्राप्त हुआ था. महिला ने कहा कि भोलेनाथ से कुछ मांगने की जरूरत नहीं है. बाबा अपने आप ही हमें खीचकर ले आए हैं.

शिव भक्त महिला ने कहा कि भोले बाबा की दया से रास्ते का सफर काफी अच्छा रहा. ये मेरी पहली कावड़ यात्रा है. उनके पति 21 बार कांवड़ यात्रा लेकर आये हैं. बेटे की दूसरी कांवड़ यात्रा है. कांवड़ लेकर चल रही रीना ने कहा कि मैं तीन दिन से व्रत पर हूं. अब शिवरात्रि वाले दिन भगवान शिव को जल अभिषेक करके व्रत को खोलूंगी. महिला ने संदेश देते हुए कहा कि  सभी लोगो को भगवान शिव के दरबार में जाना चाहिए.

बेटे की दूसरी कांवड़ यात्रा

हरिद्वार के साथ कांवड़ लेकर चल रही शिव भक्त रीना ने बताया कि उनका बेटा चौथी क्लास में पढ़ाई करता है. वो लगातार दूसरी कांवड़ लेकर आया है. इस बार वो मेरे साथ आया है. महिला भक्त ने बताया कि सभी लोग 12 जुलाई को करनाल से निकले थे. 16 जुलाई को हरिद्वार से जल लेकर अपनी कांवड़ यात्रा की शुरुआत की थी. कल करनाल शहर में रात 12 बजे पहुंचकर भगवान शिव का जल अभिषेक करेंगे.

महिला शिव भक्त के पति मनदीप ने बताया कि भगवान शिव की कांवड़ यात्रा हमारी सफल यात्रा रही है. मैं खुद 21 कांवड़ यात्रा अब तक ला चुका हूं. मैं भी अपनी पत्नी और बेटे के साथ हरिद्वार कांवड़ यात्रा लेने गया था. बेटे और पत्नी पैदल कांवड़ यात्रा लेकर आये हैं. मनदीप ने कहा कि हमें रास्ते मे किसी भी तरह कोई दिक्कत नहीं हुई है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अच्छे प्रबंधन किए हुए हैं.

क्यों खास है कांवड़ यात्रा?

  • कांवड़ यात्रा हिन्दू धर्म में भगवान शिव की भक्ति का प्रतीक है. इसमें भक्त सावन महीने में गंगा नदी से जल लाकर अपने नजदीकी शिव मंदिर में भगवान शिव का अभिषेक करते हैं.
  • मान्यता है कि सावन में गंगाजल से शिवलिंग का जलाभिषेक करने से सभी पाप कटते हैं, मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख-शांति आती है. 
  • कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय भगवान शिव ने विषपान किया था.उन्हें शीतलता देने के लिए गंगा जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई.
  • कांवड़ यात्रा श्रद्धा, संयम, सेवा और कठिन तपस्या का प्रतीक मानी जाती है. साथ ही यह भक्ति में समर्पण और सामाजिक एकता का संदेश भी देती है.

सबसे पहला कांवड़िया कौन?

  • ऐसा कोई रिकॉर्ड नहीं है कि कांवड़ यात्रा सबसे पहले किसने शुरू की लेकिन धार्मिक मान्यताओं में अलग-अलग लोगों का जिक्र है.
  • पौराणिक कथाओं के अनुसार, पहली कांवड़ यात्रा का श्रेय भगवान परशुराम को दिया जाता है.
  • कहा जाता है कि परशुराम जी ने सबसे पहले गंगाजल लाकर भगवान शिव का अभिषेक किया था. तभी से यह परंपरा चली आ रही है.
  • कुछ मान्यताओं में यह भी कहा गया है कि रावण ने सबसे पहले कांवड़ यात्रा की थी. तब से इसका महत्व बढ़ गया.
  • समय के साथ यह परंपरा आम भक्तों के बीच लोकप्रिय होती गईं. आज कांवड़ भारत की सबसे बड़ी धार्मिक यात्राओं में से एक बन चुकी है.

(कमलदीप की रिपोर्ट)