
शादी के बाद अकसर लड़कियां नए रिश्ते के नए तामझाम में उलझ कर रह जाती हैं. ससुराल की नई जिम्मेदारियों की वजह से वो खुद के लिए भी वक्त नहीं निकाल पातीं. ऐसे मायके जाने का ख्याल दिमाग में तो रहता है, लेकिन चाह कर भी लड़कियां मायके नहीं जा पाती हैं. पुराण और ज्योतिषी बताते है कि शादी के बाद कन्याओं का पति संग पहला त्योहार, परंपरा गत रूप से मायके में मनाना शुभ माना गया है. खासकर हमारे देश में सावन का महीना एक पवित्र, भावनात्मक और उत्सवमयी समय माना गया है.
हर नए जोड़े के जीवन में यह महीना खास महत्व रखता है. विशेष करके शादी के बाद पहला सावन मायके में मनाने की परंपरा बहुत पुरानी है. लेकिन सवाल अभी भी वही है क्यों? आइए इसके बारे में विस्तार से समझते हैं.
सावन में मायके जाने का धार्मिक महत्व-
हिन्दू धर्म में सावन का पूरा महीना भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है. ऐसी मान्यता है कि माता पार्वती ने इसी महीने में कठोर तपस्या और व्रत करके भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया था. आज भी महिलाएं पूरे सावन शिव-पार्वती की पूजा करके अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मांगती हैं. इस महीने में प्रकृति प्रजनन के चरण पर होती है और हर तरफ हरियाली ही हरियाली होती है. ऐसे में शास्त्रों में बताया गया है कि शादी के बाद पहली बार सावन में मायके जाकर शिव पूजा करने से स्त्री को देवी पार्वती का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है. सौभाग्य और संतान का आशीर्वाद प्राप्त होता है.
क्या हो सकता है इसके पीछे कारण?
शादी के बाद कई सारी नई जिम्मेदारियां, तनाव और नए रिश्तों का बोझ होता है. शादी के बाद महिलाओं की पूरी दुनिया बदल जाती है. सावन का महीना हरियाली यानी शांति का महीना होता है. इस महीने में लड़की जब मायके जाती है तो सभी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर जाती है, जिसके कारण उनका तनाव हल्का होता है और मानसिक शांति मिलती है.
दरअसल जब महिलाएं पहली बार पति संग मायके जाती हैं, तब उन्हें एक दूसरे को समझने और एक दूसरे के साथ वक्त बिताने का टाइम मिल जाता है, जोकि ससुराल में जिम्मेदारी और झिझक के कारण नहीं मिल पाता. इसी बहाने से जोड़े एक दूसरे को समझते हैं और उनका रिश्ता मजबूत होता है.
(ये स्टोरी अमृता सिन्हा ने लिखी है. अमृता जीएनटी डिजिटल में बतौर इंटर्न काम करती हैं)
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