
रथयात्रा से पहले हर साल भगवान जगन्नाथ को 108 पवित्र कलशों से स्नान कराया जाता है. इस स्नान यात्रा के बाद एक खास परंपरा के तहत भगवान अगले 14 दिनों तक भक्तों को दर्शन नहीं देते. इस समय को ‘अनासार काल’ कहा जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस जल स्नान के बाद भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को बुखार हो जाता है और उन्हें मंदिर के भीतर एक विशेष कक्ष ‘अनासार घर’ में विश्राम के लिए रखा जाता है.
मंदिर के कपाट रहते हैं बंद, नहीं होते दर्शन
इन 14 दिनों में पुरी का श्रीमंदिर पूरी तरह बंद रहता है और किसी को भी भगवान के दर्शन की अनुमति नहीं होती. कहा जाता है कि यह भगवान का विश्राम काल होता है, जिसमें वे सांसारिक गतिविधियों से विराम लेते हैं. इस दौरान दैतापति सेवक भगवान की सेवा करते हैं और उनका उपचार भी किया जाता है.
अलारनाथ मंदिर में होते हैं विशेष दर्शन
जब श्रीमंदिर के कपाट बंद रहते हैं, तब भक्त श्री अलारनाथ मंदिर के दर्शन करते हैं. श्री अलारनाथ मंदिर पुरी से करीब 30 किलोमीटर दूर ब्रह्मगिरि में स्थित है. इस मंदिर को भगवान विष्णु के चलंत स्वरूप के रूप में पूजा जाता है. मान्यता है कि अनासार काल के दौरान यहां दर्शन करने से वैसा ही पुण्य मिलता है, जैसा श्रीमंदिर में रत्नसिंहासन पर विराजमान भगवान जगन्नाथ के दर्शन से प्राप्त होता है.
हजारों श्रद्धालु जुटते हैं ब्रह्मगिरि में
इन 14 दिनों के दौरान अलारनाथ मंदिर में दर्शन के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यह समय मंदिर के लिए सबसे व्यस्त और पावन होता है. अलारनाथ मंदिर न सिर्फ भगवान का विश्राम स्थल है, बल्कि भक्तों की आस्था का जीवंत प्रतीक भी.
मंदिर का इतिहास
श्री अलारनाथ मंदिर का इतिहास गंग वंश के चौथे राजा मदन महादेव (1128 ई.) से जुड़ा है. मंदिर करीब 50 फीट ऊंचा है और पांच एकड़ में फैला हुआ है. मुख्य गर्भगृह में स्थापित काले पत्थर की चतुर्भुज मूर्ति में भगवान विष्णु ने शंख, चक्र, गदा और कमल धारण किया हुआ है. मूर्ति के नीचे गरुड़ जी प्रार्थना मुद्रा में बैठे हैं और बगल में श्रीदेवी और भूदेवी की प्रतिमाएं भी विराजमान हैं.
इस साल जगन्नाथ रथ यात्रा 27 जून, शुक्रवार को शुरू होगी. यह यात्रा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को शुरू होती है, जो जून या जुलाई में पड़ती है.
-अजय नाथ की रिपोर्ट