
हिंदू मान्यताओं के अनुसार कहा जाता है कि जल्दी से जल्दी शरीर का अंतिम संस्कार कर देना चाहिए. जिससे आत्मा शरीर के बंधन से मुक्त हो सके. कई लोगों के साथ ऐसा होता है कि उनके परिजन बाहर होते हैं और उनके घर पहुंचने में देर हो जाती है. जिसकी वजह से शव के अंतिम संस्कार में देरी होती है. जिसकी वजह से रातभर शव को रखना पड़ता है, क्योंकि गरुड़ पुराण प्रेत खंड के मुताबिक रात में शरीर को जलाने की इजाजत नहीं है. चलिए आपको बताते हैं कि गरुड़ पुराण में क्यों शरीर को रात में जलाने की अनुमति नहीं दी गई है.
मृत्यु एक अटल सत्य है-
हम सब जानते हैं कि मौत एक अटल सत्य है और जिसका जन्म होगा, उसका मौत होना अनिवार्य है. धार्मिक ग्रन्थों के मुताबिक जीवन के बाद आत्मा एक शरीर से निकलकर दूसरे शरीर में प्रवेश करती है. शरीर से निकलने और दूसरे शरीर में प्रवेश करने के क्रिया को ही मृत्यु की संज्ञा दी गई है. कई लोग सब खत्म होने को मृत्यु मान कर शोक करते हैं तो कुछ लोग खत्म के बाद होने वाली नई शुरूआत का जशन मनाते हैं, जो आत्मा और परमात्मा के मिलन का अद्भुत क्षण है. जिसके बाद आत्मा का नया सफर शुरू होता है.
गरुड़ पुराण रात में अंतिम संस्कार की इजाजत नहीं देता-
कई लोग रात को शरीर का अंतिम संस्कार कर देते हैं. लेकिन गरुड़ पुराण के मुताबिक भगवान विष्णु गरुड़ को बताते हैं कि रात में अंतिम संस्कार करना अशुभ माना जाता है. उस वक्त तामसिक गुण प्रभाव में होते हैं, जैसे कि प्रेत और पिशाच. रात में कई तंत्र क्रियाएं श्मशान में की जाती हैं, जो आत्माओं को अपने तंत्र का हिस्सा बना लेते हैं. अगर परिजन किसी भी कारण से रात में ही शव का अंतिम संस्कार कर देते हैं तो आत्मा को मुक्ति नहीं मिल पाती और आत्मा भटकती रहती है. कहा यह भी जाता है कि जब आत्मा तुरंत शरीर छोड़ती है, तो वह अपने जीवन के मोह और रिश्तों से मुक्त नहीं हो पाती. ऐसे में यम दूत दिन में उनका मार्ग दर्शन करते हैं और उन्हें उनके कर्मों से मुक्त होने का सही रास्ता दिखाते है, जो रात में यम दूतों के लिए मुश्किल होता है. जिस कारण आत्मा अपने गन्तव्य तक नहीं पहुंची और भटकती रहती है.
अब समझते है वैज्ञानिक कारण-
गरुण पुराण में जो बात बताई गई है, उसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है. वैज्ञानिक कहते है कि दिन में पर्यावरण साफ होता है, तो जो भी प्रदूषण शरीर और लकड़ी के जलने से गर्म धुएं के रूप में निकलता है, वह आसानी से ऊपर उठ कर पर्यावरण में मिल जाती है और प्रदूषण कम हो जाता है. जबकि रात में हवा ठंडी होती है, जो धुएं को नीचे दबा देती है और प्रदूषण भी ज्यादा होता है. अगर सुरक्षा के दृष्टि से देखें तो पहले के वक्त में रात के अंधेरे में चोर और डकैत का खतरा ज्यादा होता था, तो लोग रात में घर से निकलना सुरक्षित नहीं समझते थे. इस कारण से भी लाश को रातभर के लिए घर में ही रोक लेते थे.
हालांकि पहले के वक्त में जब राजाओं के बीच युद्ध हुआ करते थे तो सिपाहियों और रण भूमि में प्राण गंवाने वाले योद्धाओं का अंतिम संस्कार रात में किया जाता था, क्योंकि अगले दिन फिर से युद्ध लड़ना होता था और अभाव में ज्यादा दिन के लिए शरीर को रख भी नहीं सकते थे. कहा जाता हैं कि अर्जुन और कृष्ण ने वीर अभिमन्यु के शरीर का अंतिम संस्कार रात में ही कर दिया था.
इन जगहों पर 24 घंटे चलती है चिता-
साथ ही मणिकर्णिका, उज्जैन और काठमांडू को महा श्मशान भी कहा जाता है, क्योंकि यहां 24*7 लाशों को जलाने का प्रोसेज चलता रहता है. खासकर मणिकर्णिका, जहां क्षण भर के लिए भी चिता नहीं बुझती है. यहां मरने वालों को भगवान शिव खुद कान में गुरु मंत्र देते है और मोक्ष प्रदान करते हैं. इन तीनों जगह शिव स्वयं ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हैं और तीनों जगह पर श्मशान की ताजी राख से ब्रह्म मुहूर्त में भगवान महाकाल का श्रृंगार भी किया जाता है.
(ये स्टोरी अमृता सिन्हा ने लिखी है. अमृता जीएनटी डिजिटल में बतौर इंटर्न काम करती हैं.)
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