
त्रेतायुग के योद्धा जामवंत ने द्वापर युग में अपने हाथ से श्रीगणेश की मूर्ति स्थापित की थी, जो प्रतिवर्ष एक तिल के बराबर बढ़ने के कारण तिलगणेश के नाम से विख्यात और चमत्कारिक मूर्ति है. यह रायसेन जिले के बरेली तहसील में जामवंत गुफा से 6 किलोमीटर दूर विंध्याचल की तलहटी में स्थित है. जामवंत की गुफा जामगढ़ के पास है.
चमत्कारी है गणेश प्रतिमा-
बरेली तहसील के ग्राम उदयगिरी और पपलई के पास स्थित इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां विराजमान गणेश प्रतिमा कई मायनों में चमत्कारिक मानी जाती है. माना जाता है कि यह मूर्ति प्रतिवर्ष एक तिल बराबर बढ़ रही है. इसलिए इसे तिल गणेश कहा जाता है. इसके साथ ही पहाड़ों के ऊपर घने जंगल में स्थित इस दिव्य स्थान के चारों ओर संपदा भी बिखरी पड़ी है. हजारों टन वजनी पाषाण यहां मौजूद हैं. बताया जाता है कि यह शिलालेख रामायण व महाभारत काल के समकालीन है. इससे आगे जामवंत के पैर, जामवंत की गुफा, 11वीं सदी का पाषाण शिव मंदिर सहित अनेक पुरातात्विक महत्व की सम्पदाएं मिलती हैं. जिससे यह स्थान दर्शनीय और रोमांचकारी हो जाता है.
कठिन रास्ते से होकर जाना पड़ता है मंदिर तक-
बरेली तहसील के इस प्राचीन स्थान तक पहुंचने के लिए पहाडों के बीच बने पथरीले और उबड़-खाबड़ मार्ग से होकर जाना पड़ता है, जो कि कई बर्षों से यथा स्थिति में बना हुआ है. जबकि प्रतिमाह की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को यहां लोग गणेश की पूजन करने पहुंचते है. यहां आने के लिए खरगोन जामगढ़, भगदेई सेनकुआ, वापोली, मेहरागांव, उदयगिरी से होकर श्रद्धालुओं को आना पड़ता है. इस मार्ग का अधिकांश हिस्सा पहाड़ी क्षेत्र में ही आता है, जो कि काफी दुर्गम है. कई बार इस मार्ग को सुधारे जाने और सड़क निर्माण किए जाने की मांग जनता द्वारा की जाती रही है.
किस युग में कैसे होती थी पूजा?
इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां विराजमान गणेश प्रतिमा कई मायनों में चमत्कारिक मानी जाती है. माना जाता है कि यह मूर्ति प्रतिवर्ष एक तिल बराबर बढ़ रही है. इसलिए इसे तिल गणेश कहा जाता है. यहां मिलने वाली संपदाओं की वजह से यह स्थान दर्शनीय और रोमांचकारी हो जाता है. सतयुग में गणेश की साकार पूजा होती थी. त्रेता युग मे 8 भुजी गणेश की पूजा होती थी और द्वापर में 6 भुजी गणेश मूर्ति की पूजा होती थी और अब कलयुग में 4 भुजी गणेश की पूजा होती है.
(राजेश रजक की रिपोर्ट)
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