
राजगढ़ जिले के खिलचीपुर में गणेश चतुर्थी का पर्व इस बार भी पूरी आस्था और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है. बुधवार शाम श्रद्धालुओं ने सोमवारिया स्थित प्राचीन चिंताहरण गणेश मंदिर में सुंदर श्रृंगार कर भगवान गणेश की विशेष पूजा-अर्चना की. धूप-दीप, विधि-विधान और लड्डुओं के महाभोग के साथ रात 9:30 बजे ढोल-धमाकों के साथ भव्य महाआरती का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए.
गणेश चौक बना भक्ति और आस्था का केंद्र
सोमवारिया चौक, जिसे अब श्रद्धालु "गणेश चौक" के नाम से जानते हैं, गणेश चतुर्थी पर श्रद्धालुओं से खचाखच भरा नजर आया. यहां विराजित चिंताहरण गणेश जी की 15 फीट ऊंची प्रतिमा चुने और रेत से वर्ष 1862 में बनाई गई थी. प्रतिमा की खासियत यह है कि यह अंदर से पूरी तरह पॉली (खोखली) है और आज भी देखने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे इसका निर्माण अभी हाल ही में हुआ हो.
एक स्वप्न से शुरू हुई भक्ति की यह यात्रा
चिंताहरण गणेश मंदिर का इतिहास भी उतना ही रोचक है. साल 1862 में सोमवारिया नगर (जिसे तब दीपगढ़ कहा जाता था) के प्रतिष्ठित व्यापारी चौधरी नाथूराम गुरगेला को एक रात सपने में भगवान गणेश के दर्शन हुए. उन्होंने आदेश दिया कि मंदिर बनवाओ, जिससे तरक्की मिलेगी. गणेश जी की आज्ञा मानते हुए नाथूराम जी ने रेत और चुने से इस भव्य प्रतिमा का निर्माण कराया. प्रतिमा के सिर पर उस समय मारवाड़ी साफा भी बनवाया गया था. बाद में स्थानीय लोगों के सहयोग से प्रतिमा को मुकुट पहनाया गया और मंदिर का शिखर निर्मित किया गया.
विरोध के बावजूद बनी श्रद्धा की प्रतीक प्रतिमा
बताया जाता है कि जब प्रतिमा के निर्माण की योजना बनी तो कुछ लोगों ने आपत्ति जताई. तब नाथूराम जी ने समझाइश देकर प्रतिमा को हल्की तिरछी दिशा में बनवाया ताकि आसपास के लोगों को कोई परेशानी न हो. यह प्रतिमा आज "सोमवार के बड़े गणेश जी" के नाम से विख्यात है. मंदिर पर उस समय लोहे की चादर से छांव बनाई गई थी, जिसकी लागत मात्र 8 आना आई थी.
पांच बुधवारों की पूजा से होती है संतान प्राप्ति
इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि जो महिलाएं संतान सुख से वंचित हैं, वे यहां पांच बुधवार लड्डू और नारियल चढ़ाकर पूजा करती हैं, तो उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. यही वजह है कि गणेश चतुर्थी पर न केवल राजस्थान और मध्यप्रदेश, बल्कि कोटा, झालावाड़, इंदौर, ग्वालियर और आसपास के जिलों से भी श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं.
आज भी जीवित है परंपरा
चौधरी नाथूराम के वंशज आज भी उसी श्रद्धा से इस परंपरा को निभा रहे हैं. उनके वंशज कृष्ण मुरारी गुरगेला, पिता मिश्रीलाल गुरगेला, आज भी खिलचीपुर के सब्जी बाजार में निवास करते हैं और मंदिर की सेवा में लगे हैं. नाथूराम जी के पुत्र भागीरथ चौधरी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी रहे हैं. 150 साल पुरानी यह परंपरा आज भी उसी जोश, श्रद्धा और भक्ति के साथ जीवित है.
-पंकज शर्मा की रिपोर्ट