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Mahalaxmi Vrat: मिल गया महालक्ष्मी व्रत की 16 बोल की कहानी का शिवलिंग! जानिए कहां है यह चमत्कारी धाम

नीलकंठ धाम के महंत, जिन्हें लोग महाकाल बाबा के नाम से जानते हैं, ने बताया कि यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूरी होती है. कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता. धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि माता कुंती ने भी महालक्ष्मी व्रत में हाथी की पूजा की थी और 16 बोल की यही कथा सुनी थी. तभी से यह परंपरा महिलाओं के बीच चलती आई है. पर बहुत कम लोग जानते थे कि इस कथा का वास्तविक स्थान पाटन गांव का नीलकंठ धाम ही है.

महालक्ष्मी व्रत की कहानी (प्रतीकात्मक तस्वीर) महालक्ष्मी व्रत की कहानी (प्रतीकात्मक तस्वीर)

रायसेन से एक ऐसी खोज सामने आई है, जिसने धार्मिक आस्था को और गहराई से जोड़ दिया है. महालक्ष्मी व्रत (गज पूजन/हाथी पूजन) के दौरान पुरोहितों द्वारा महिलाओं को सुनाई जाने वाली 16 बोल की कथा सिर्फ एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक वास्तविक स्थान से भी जुड़ी है. GNT ने इस रहस्यमयी स्थान को खोज निकाला है, जिसे लोग नीलकंठ धाम के नाम से जानते हैं.

कहानी की शुरुआत होती है इन बोलों से, "अमोती दमोती रानी, पोला पर ऊचो सो परपाटन गांव, जहां के राजा मगर सेन दमयंती रानी, कहे कहानी. सुनो हो महालक्ष्मी देवी रानी, हम से कहते तुम से सुनते सोलह बोल की कहानी॥"

सदियों से सुनी जाने वाली इस कथा का असली स्थान रायसेन जिले की गैरतगंज तहसील में मौजूद है. यहां है वह दिव्य शिवलिंग, जहां एक लोटा जल चढ़ाने पर 1108 लोटा जल चढ़ाने का फल और एक विल पत्र अर्पित करने पर 1108 विल पत्र चढ़ाने का पुण्य प्राप्त होता है.

राजा मगर सेन और शिवलिंग की उत्पत्ति
स्थानीय लोगों और प्राचीन कथाओं के अनुसार, राजा मगर सेन ने अपनी पत्नियों के पूजन के लिए भोलेनाथ से प्रार्थना की थी. तभी यहां यह स्वयंभू शिवलिंग प्रकट हुआ. बाद में एक संत को भोलेनाथ ने स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि "मैं यहां विराजमान हूं." संत ने इस स्थान पर दिव्य शिवलिंग स्थापित कराया. तभी से यह स्थान नीलकंठ धाम कहलाने लगा.

500 साल से भी पुराना यह शिवलिंग सिर्फ धार्मिक मान्यता ही नहीं, बल्कि आस्था का केंद्र भी है. यहां के पाटन गांव को पहले "परपट्टन" कहा जाता था, जो कथा में बार-बार आता है. आज भी गांव की बुजुर्ग महिलाएं यह कहानी सुनाती हैं और बताती हैं कि मगर सेन राजा का महल पहाड़ी पर मौजूद खंडहरों में देखा जा सकता है.

क्यों है यह शिवलिंग खास?

  • यहां की सबसे बड़ी मान्यता है कि एक बूंद जल चढ़ाने पर हजारों लोटा जल चढ़ाने का फल मिलता है.
  • श्रावण मास में यहां कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व है.
  • नागपंचमी, बसंत पंचमी और महाशिवरात्रि पर यहां हजारों भक्त जुटते हैं.
  • यहां की एक और अनोखी बात यह है कि शिवलिंग की योनि चोकोर आकार की है और यहां सदियों से जलती सिद्ध धूनी आज भी प्रज्वलित है.

भक्तों के अनुभव और महाकाल बाबा की गवाही
नीलकंठ धाम के महंत, जिन्हें लोग महाकाल बाबा के नाम से जानते हैं, ने बताया कि यहां आने वाले हर भक्त की मनोकामना पूरी होती है. कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता.

धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि माता कुंती ने भी महालक्ष्मी व्रत में हाथी की पूजा की थी और 16 बोल की यही कथा सुनी थी. तभी से यह परंपरा महिलाओं के बीच चलती आई है. पर बहुत कम लोग जानते थे कि इस कथा का वास्तविक स्थान पाटन गांव का नीलकंठ धाम ही है.

(राजेश कुमार रजक की रिपोर्ट)