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Vat Savitri Vrat 2025: वट सावित्री व्रत 26 मई को, इस दिन वट वृक्ष की आराधना करने से पूरी होगी मनोकामना, जानिए पूजा विधि और महाउपाय

बरगद के पेड़ यानी वट वृक्ष का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. मान्यता है कि इसमें त्रिदेवों का वास होता है. वट वृक्ष के नीचे महात्मा बुद्ध को ज्ञान मिला था. सावित्री ने सत्यवान के प्राण बचाए थे. वट वृक्ष की पूजा करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है, स्थाई धन और सुख शांति मिलती है. 

Vat Savitri Vrat (File Photo: PTI) Vat Savitri Vrat (File Photo: PTI)
हाइलाइट्स
  • वट वृक्ष के छाल में भगवान विष्णु, जड़ में ब्रह्मा और शाखाओं में शिव का माना जाता है वास 

  • बरगद के पेड़ को अखंड सौभाग्य और पवित्रता का माना जाता है प्रतीक 

सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और सुखी दांपत्य जीवन के लिए वट सावित्री का व्रत करतीं हैं. इस साल यह पर्व 26 मई को पड़ रहा है. इस दिन व्रती महिलाएं वट वृक्ष यानी बरगद के पेड़ की पूजा करती हैं. वट वृक्ष में त्रिदेवों का वास होता है. बरगद के पेड़ को अखंड सौभाग्य और पवित्रता का प्रतीक माना जाता है.  

वट वृक्ष का धार्मिक महत्व
वट वृक्ष, जो आत्मबोध करवाता है, जिसकी छत्रछाया में महात्मा बुद्ध को ज्ञान मिला. जीस वृक्ष के आंचल में सावित्री को सत्यवान की प्राण बचाने का प्राण मिला. वो बरगद का वृक्ष कई दिव्य गुणों से भरा है, जिसमें माना जाता है कि त्रिदेवों का वास है, जिसकी पत्तियों में माधव का निवास है. कथा है कि भगवान शिव ने भी वटवृक्ष के नीचे ही समाधि लगाकर तपस्या की थी. मार्कंडेय को भगवान कृष्ण ने वट वृक्ष के पत्ते पर ही दर्शन दिए थे. 

सनातन धर्म में प्रकृति की उपासना की महिमा बताई गई है. बट सावित्री की तिथि पर तो महिलाएं अपने सुहाग और सिंदूर की सलामती के लिए मंगल कामना करती हैं. वृक्षों की पूजा हमारे देश की समृद्ध परंपरा और जीवन शैली का अंग रहा है. यूं तो हर पेड़-पौधे को उपयोगी मानकर उसकी रक्षा करने की परंपरा है, लेकिन वटवृक्ष या बरगद की पूजा का खास महत्व बताया गया है. ज्योतिषी कहते हैं कि वट वृक्ष यानी बरगद का पेड़ भगवान शिव से जुड़ा है. श्रीमद्भागवत में भी इसका उल्लेख आता है कि यह व्यक्ति के जीवन का चक्र का ग्योतक है. भगवान नारायण के जीतने भी स्वरूप हैं, वे वट वृक्ष में समाहित हैं. 

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ऐसे हुआ था वट वृक्ष उत्पन्न 
वट वृक्ष एक दीर्घ जीवी विशाल वृक्ष है. हिंदू परंपरा में इसे पूज्य माना जाता है. अलग-अलग देवों से अलग-अलग वृक्ष उत्पन्न हुए. उस समय यक्षों के राजा मणिभद्र से वट वृक्ष उत्पन्न हुआ. ऐसा मानते हैं इसके पूजन से और इसके जड़ में जल देने से पुण्य की प्राप्ति होती है. ये वृक्ष त्रिमूर्ति का प्रतीक है. इसकी छाल में विष्णु, जड़ में ब्रह्मा और शाखाओं में शिव का वास माना जाता है. 

भगवान शिव का प्रतीक है बरगद
जीस प्रकार पीपल को विष्णु जी का प्रतीक माना जाता है, उसी प्रकार बरगद को शिव जी का प्रतीक माना जाता है. ये प्रकृति का सृजन का प्रतीक है. संतान के इच्छित लोग इसकी विशेष पूजा करते हैं. ये बहुत लंबे समय तक जीवित रहता है. इसे अक्षय वट भी कहा जाता है. ब्रह्मा, विष्णु और रूद्र तीनों का ही वास इसमें माना जाता है. आध्यात्मिक रूप से इस पेड़ को उल्टा देखा जाता है. इसके मूल में भगवान नारायण हैं. जड़ में जो की ऊपर है, हम अपना कोई भी कोई कार्य करते हैं. सनातन धर्मियों का अंतिम चयन मोक्ष ही होता है और मोक्ष भगवान नारायण में जाकर ही समाहित होता है. ऐसा माना जाता है. यही नहीं प्रयाग में गंगा के तट पर स्थित अक्षय वट को तुलसीदास जी ने तीर्थराज का छत्र कहा है.वट वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति को पुनः जीवित किया था. तब से ये वट सावित्री के नाम से भी जाना जाता है. 

वट वृक्ष की पूजा से लाभ 
शास्त्रों में वट वृक्ष की पूजा का विधान बताया गया है. वट वृक्ष की पूजा से सौभाग्य की प्राप्ति होती है. स्थाई धन और सुख शांति की प्राप्ति होती है. जीवन में खुशहाली और संपन्नता आती है. वट वृक्ष को ईश्वर माना जाता है इसीलिए इसकी पूजा उपासना से कई तरह की समस्याओं का समाधान होता है. माना जाता है कि वट वृक्ष की पूजा से तीन देवों की विशेष कृपा मिलती है. शास्त्रों में वट वृक्ष चार तरह के बताए गए हैं अक्षय वट, पंच वट, वंश वट, गया वट और सिद्ध वट. इनमें चार वट वृक्षों का महत्त्व बताया गया है. ऐसा कहा जाता है कि इनकी प्राचीनता के बारे में कोई नहीं जानता. भगवान शिव जैसे योगी भी वट वृक्ष के नीचे ही समाधि लगाकर तब साधना करते थे. 

कई तरह के रोगों का होता है नाश 
वट वृक्ष का जितना धार्मिक महत्व है, उतना ही आयुर्वेद में भी इसका महत्व बताया गया है. आयुर्वेद में बताया गया है कि कई तरह के रोगों को दूर करने में बरगद के सभी भाग काम आते हैं. इसके फल, जड़, छाल, पत्ती सभी भागों से कई तरह के रोगों का नाश होता है. वायुमंडल को भी बरगद का पेड़ शुद्ध करता है. कार्बन डाईऑक्साइड दोहन करने और ऑक्सीजन छोड़ने की भी इसकी क्षमता बेजोड़ है. ये हर तरह से लोगों को जीवन देता है. ऐसे में बरगद की पूजा का खास महत्त्व स्वाभाविक ही है. पीपल के अतिरिक्त वट वृक्ष का ही पेड़ एक ऐसा है जो सबसे अधिक हमें प्राणवायु अर्थात ऑक्सीजन देने का काम करता है. इसका वैज्ञानिक महत्त्व का अंदाजा इसी प्रकार से लगा सकते है की जीस जगह के ऊपर ये वट वृक्ष उग जाए, वहां का जो भूमिगत जल है, उसका भी स्तर ऊपर की ओर ले आता है. बरगद की पूजा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. यानी आपको ऐसा पुण्य मिलता है जिसका कोई अंत नहीं होता. अखंड सौभाग्य और आरोग्य के लिए भी वट वृक्ष की पूजा की जाती है.