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Jagannath Rath Yatra में रथ बनाने के लिए क्यों नहीं होता लोहे का इस्तेमाल, कहां से लाई जाती है लकड़ी, यात्रा के बाद रथ का क्या होता है? जानिए रोचक बातें

जगन्नाथ रथ यात्रा के रथों के निर्माण में लोहे या किसी अन्य धातु की कील, कांटे या अन्य सामग्री का इस्तेमाल नहीं किया जाता. क्या आप जानते हैं इसके पीछे की वजह? आइए जानते हैं रथ यात्रा से जुड़ी कुछ अनूठी बातें.

Lord Jagannath's yatra begins today Lord Jagannath's yatra begins today

ओडिशा के पुरी में आयोजित होने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा विश्व प्रसिद्ध धार्मिक उत्सव है. भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को समर्पित यह यात्रा आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को शुरू होती है. इस वर्ष यह ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 27 जून 2025 को मनाई जा रही है. इस उत्सव में तीन विशाल रथों का निर्माण होता है, जिन्हें भक्त खींचकर पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर तक ले जाते हैं. 

इन रथों और इस यात्रा के आकार ने तो कई लोगों को हैरान किया है, लेकिन इसके निर्माण से जुड़ी भी कई रोचक बातें है जो शायद आपको न पता हों. 

रथ में नहीं होता लोहे का इस्तेमाल
जगन्नाथ रथ यात्रा के रथों के निर्माण में लोहे या किसी अन्य धातु की कील, कांटे या अन्य सामग्री का इस्तेमाल नहीं किया जाता. यह प्राचीन परंपरा रथ की पवित्रता और शुद्धता को बनाए रखने के लिए अपनाई जाती है. रथों को लकड़ी के खूंटों और खांचों के माध्यम से जोड़ा जाता है. इससे वे मजबूती से एक-दूसरे में फंसे रहते हैं. इस तकनीक में कारीगरों का कौशल और पीढ़ियों से चली आ रही कला झलकती है. यह बिना आधुनिक उपकरणों के रथों को भव्य और मजबूत बनाती है. 

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धार्मिक मान्यता के अनुसार, लोहे या किसी दूसरे धातु का इस्तेमाल रथ की आध्यात्मिक शुद्धता को प्रभावित कर सकता है. इसलिए सिर्फ प्राकृतिक सामग्री का ही उपयोग किया जाता है. यह परंपरा रथ निर्माण को एक धार्मिक अनुष्ठान का रूप देती है, जो भगवान जगन्नाथ के प्रति भक्ति और श्रद्धा को दर्शाती है.

रथ के लिए कहां से लाई जाती है लकड़ी
जगन्नाथ रथ यात्रा के रथों का निर्माण खास तरह की लकड़ियों से किया जाता है. ये लकड़ियां ओडिशा के मयूरभंज, गंजाम और क्योंझर जिलों के घने जंगलों से लाई जाती हैं. इन जंगलों से नीम, फासी, धौरा, सिमली, सहजा और मही जैसी लकड़ियों का चयन किया जाता है. लकड़ी का चयन एक धार्मिक अनुष्ठान के तहत होता है, जिसमें पुजारी शुभ मुहूर्त में पेड़ों की पहचान करते हैं. 

इन पेड़ों पर शंख, चक्र, गदा या पद्म जैसे विशेष चिह्न होने चाहिए. यह सुनिश्चित किया जाता है कि पेड़ पर कोई पक्षी का घोंसला न हो. पेड़ों को काटने से पहले उनकी पूजा की जाती है. कुछ परंपराओं के अनुसार, सोने की कुल्हाड़ी से पहला कट लगाया जाता है, जिसे भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा से स्पर्श कराया जाता है. रथ निर्माण की प्रक्रिया अक्षय तृतीया से शुरू होती है और इसके लिए लगभग 1100 बड़े लट्ठों और 865 फीट छोटे लट्ठों की आवश्यकता होती है. 

यात्रा के बाद रथ का क्या होता है?
रथ यात्रा आमतौर पर नौ दिनों तक चलती है. यात्रा के समापन के बाद रथों का उपयोग समाप्त हो जाता है. बहुड़ा यात्रा (वापसी यात्रा) के बाद (जो इस वर्ष 5 अगस्त 2025 को होगी) रथों को तोड़ दिया जाता है. यह काम वही कारीगर करते हैं जो इन्हें बनाते हैं. रथों की लकड़ी का उपयोग विभिन्न धार्मिक और शुभ कार्यों में किया जाता है. अधिकांश लकड़ी को मंदिर की रसोई में भेजा जाता है. 

यहां इसे भगवान जगन्नाथ के लिए महाप्रसाद पकाने के लिए ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है. यह रसोई विश्व की सबसे बड़ी रसोई मानी जाती है, जहां हर दिन हजारों भक्तों के लिए भोजन तैयार होता है. रथों के पहियों को भक्तों के बीच नीलाम किया जाता है. मान्यता है कि इन्हें घर में रखने से सुख-समृद्धि आती है और संकट दूर रहते हैं. नीलामी में पहियों की शुरुआती कीमत 50,000 रुपये तक हो सकती है. 

बची हुई लकड़ियों का उपयोग पूजन सामग्री, ताबीज या अन्य धार्मिक कार्यों में भी किया जाता . कुछ लकड़ियों को मंदिर को दान कर दिया जाता है, ताकि वे पवित्र कार्यों में उपयोग हो सकें. जगन्नाथ रथ यात्रा न केवल एक धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और कारीगरी का अनूठा संगम है. रथों के लिए लकड़ी का चयन, बिना लोहे के निर्माण और यात्रा के बाद उनकी लकड़ी का पवित्र उपयोग इस उत्सव की आध्यात्मिकता और पर्यावरणीय संवेदनशीलता को दर्शाता है.