
पुराणों में तुलसी के पौधे को बहुत महत्व दिया गया है. तुलसी का पौधा वैज्ञानिक और पौराणिक दोनों रूप से महत्वपूर्ण है. लेकिन तुलसी से जुड़ी कई मान्यताएं हैं जैसे कि सावन में तुलसी का पत्ता नहीं तोड़ना चहिए. लेकिन सवाल है क्यों? आखिर सावन के महीने में तुलसी के पत्ते तोड़ना वर्जित क्यों है? सबस पहले जानते हैं कि आखिर सावन का महत्व क्या है?
सावन का महीना भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है. इस लिए सावन मास सभी महीनों में उत्तम महीना माना जाता है. इस महीने में वेदों पुराणों में कई ऐतिहासिक घटनाओं का जिक्र मिलता है. पुराणों में वर्णन मिलता है कि भगवान शिव ने इसी महीने में समुद्र मंथन से निकला विष पिया था. इस घटना को लेकर आज भी लोगों में आस्था देखने को मिलती है, सावन में लोग कांवड़ यात्रा निकाल कर इस विचार के साथ दूध-जल चढ़ाते है कि भगवान शिव के शरीर में विष का असर कम होगा.
दूसरी यह आस्था है कि भगवान को सावन में जल चढ़ाने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है. इसी पावन महीने में ही माता पार्वती ने शंकर भगवान को पति के रूप में पाने के लिए घोर तपस्या की और सोमवार का व्रत किया था. चन्द्रमा ने इसी महीने में भगवान शिव की पार्थिव पूजा करके कोढ़ के रोग से मुक्ति पाई थी. ऐसे ही कई पौराणिक कथाएं हम सब ने कभी न कभी सुन रखी हैं. इसके साथ ही, सावन के महीने में पवित्र तुलसी तोड़ना वर्जित है, इसके पीछे भी महत्वपूर्ण कारण है.
सनातन धर्म में तुलसी को माता कहा जाता है. भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पुजा में तुलसी माता का विशेष महत्व है. ऐसी मान्यता है कि सावन के महीने में तुलसी का पत्ता तोड़ने से पाप लगता है. पर क्यों? दरअसल शास्त्रों में बताया गया है कि तुलसी माता भगवान विष्णु को अति प्रिय हैं. सावन मास से लेकर देवउठान एकादशी तक, जब भगवान विष्णु योग निद्रा में रहते हैं तब तक तुलसी माता भी तपस्या में लीन रहती हैं.
अगर इस दौरान अगर उनका पत्ता तोड़ा जाए तो पाप चढ़ता है और ऐसा करना वेदों में उनका अपमान बताया गया है. वैसे भी यह महीना भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है. इसके पीछे एक कारण यह भी है कि पूरे सावन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा होती है और भगवान शिव या उनके परिवार को गलती से भी तुलसी चढ़ाने से सारे पुण्य नष्ट हो जाते हैं इसलिए पुराने लोग कहते थे कि सावन में तुलसी का पत्ता नहीं तोड़ना चाहिए और यह आस्था बन गई.
शास्त्रों में तुलसी को बहुत पवित्र और मां लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है. ऐसी भी मान्यता है कि छप्पन भोग पर एक तुलसी का पत्ता भारी है. मतलब भगवान का प्रिय छप्पन भोग बिना तुलसी के पत्ते के चढ़ाया जाए तो भगवान विष्णु उस भोग को स्वीकार नहीं करते हैं. पुराणों में तुलसी के से जुड़े भी कई फायदे बताए गए हैं. कहा जाता है, जो व्यक्ति रोज तुलसी की पुजा करते हैं उनके पितृ हमेशा प्रसन्न रहते हैं और पितरों की विशेष कृपा प्राप्त होती है.
आयुर्वेद में तुलसी के सेहत से जुड़े भी फायदे बताए गए हैं जिसका प्रमाण विज्ञान भी देता है. दरअसल तुलसी में एंटीऑक्सीडेंट और एंटीबायोटिक पाया जाता है. एंटीऑक्सीडेंट शरीर की कोशिकाओं को नुकसान से बचाता है और ब्लड का फ्लो ठीक रखने में मदद करता है. एंटीबायोटिक गुण, कई रोग वाले बैक्टीरिया से हमें अंदरूनी तौर पर बचाता है. कई जगहों पर लोग ठंड के मौसम में बच्चों को सर्दी-खांसी होने पर तुलसी को काली मिर्च में मिलाकर घी के साथ पिलाते हैं ताकि सर्दी ठीक हो सके.