IUCN की रेड लिस्ट में अंडमान की शार्क (Photo/Twitter)
IUCN की रेड लिस्ट में अंडमान की शार्क (Photo/Twitter) जलवायु परिवर्तन का बड़ा असर भारत में भी दिखने लगा है. इसकी वजह से जीव-जंतुओं की कई प्रजातियों पर संकट आ गया है. इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर की एक रिपोर्ट में भारत में जीव-जंतुओं की 29 प्रजातियों के खत्म होने खतरा मंडरा रहा है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो कर्नाटक के पश्चिमी घाट में पाया जाने वाला सफेद गाल वाला डांसिंग फ्रॉग, अंडमान की शार्क और हिमालयी फ्रिटिलरी पौधे विलुप्त हो जाएंगे. इसकी बड़ी वजह पॉल्यूशन, जलवायु परिवर्तन, अवैध रूप से शिकार और बीमारियां हैं.
भारत में 29 प्रजातियों को खतरा-
आईयूसीएन की रेड लिस्ट में दुनिया के जैव विविधता के बारे में बताता है. इस लिस्ट के जरिए ये पता चलता है कि दुनिया में किन प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है. इस संस्था ने इस साल भारत में 239 प्रजातियों की जांच की. जिसमें से 29 को अस्तित्व पर खतरा बताया गया है. संस्था का कहना है कि इंसानों की गतिविधियों की वजह से जीव-जंतुओं के खत्म होने का खतरा है.
इस संस्था ने अब तक भरत में पौधों, जानवरों और फंगस की 9472 प्रजातियों की जांच की है. जिसमें से 1355 प्रजातियों पर खतरे का अंदेशा जताया है. ये प्रजातियां विलुप्त होने वाले हैं या उनके खत्म होने का खतरा है.
डांसिंग फ्रॉग पर खतरा-
कर्नाटक के पश्चिमी घाट में पाया जाने वाला सफेद गाल वाला डांसिंग फ्रॉग भी खतरे में है. 167 वर्ग किलोमीटर के इलाके में मुश्किल से ये फ्रॉग दिखाई देता है. डांसिंग फ्रॉग रेड लिस्ट में शामिल होने वाली सबसे नई प्रजाति है. इस मेंढक की प्रजाति इसलिए खत्म हो रही है, क्योंकि जंगलों को नट और कॉफी की खेती के लिए काटा जा रहा है. जिससे उनके रहने की जगह खत्म हो गई है.
अंडमान शार्क पर खतरा-
अंडमान स्मूथहाउंड शार्क भी रेड लिस्ट में है. ये शार्क अंडमान सागर, म्यांमार, थाईलैंड, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के आसपास मिलती है. इसी इलाके में सबसे ज्यादा मछली पकड़ने का काम होता है. जिसकी वजह से इनकी प्रजाति पर खतरा मंडराने लगा है. पिछले साल ही इसकी खोज हुई थी और इसे अंडमान स्मूथहाउंड फिश नाम दिया गया था.
हिमालयन फ्रिटिलरी पर खतरा-
ये फूल बहुत ही खूबसूरत होता है. इसपर भी खतरा मंडराने लगा है. इस फूल की खेती ठीक तरह से नहीं हो रही है. जिसकी वजह से इसके विलुप्त होने का खतरा मंडराने लगा है.
क्या है IUCN-
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर एक ऐसी संस्था है, जो धरती पर बायोडायवर्सिटी की सेहत को लेकर रिसर्च करती है. इस संस्था के तहत दुनिया भर के 15 हजार से ज्यादा वैज्ञानिक काम करते हैं. इसमें भारत के वैज्ञानिक भी शामिल हैं. फिलहाल इस संस्था के डायरेक्टर ब्रूनो ओबेर्ल हैं. इस बार संस्था की बैठक कनाडा के मॉन्ट्रियल में चल रही है. जो 7 दिसंबर से शुरू हुई है और 19 दिसंबर तक चलेगी. इसमें भारत समेत 196 देश शामिल हैं.
संस्था के डायरेक्टर ब्रूनो ने कहा कि हम लोगों को फौरन बायोडायवर्सिटी और क्लाइमेट के संबंधों को सुधारने की कोशिश करनी होगी. अगर ऐसा नहीं करते हैं तो आने वाले कुछ सालों में धरती से कई जीव-जंतु खत्म हो जाएंगे.
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