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Shubhanshu Shukla Return To Earth: क्या होती है अनडॉकिंग... क्यों की जाती है रॉकेट फायरिंग... एस्‍ट्रोनॉट शुभांशु शुक्‍ला अंतर‍िक्ष से कैसे आएंगे धरती पर... यहां जानिए सबकुछ

Axiom 4 Mission: शुभांशु शुक्ला 15 जुलाई 2025 को इंटरनेशनल स्‍पेस स्‍टेशन से पृथ्वी पर लौटेंगे. वह एक्सियम-4 मिशन के तहत तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों के साथ स्पेस में रिसर्च करने के लिए गए हैं. आइए जानते हैं किस रॉकेट से ये अंतरिक्ष यात्री लौटेंगे, उसकी स्पीड क्या होगी, कैसे और कहां लैंडिंग होगी? साथ में यह भी जानते हैं कि अंतरिक्ष यानों को स्पेस में भेजने और लौटने के दौरान डॉकिंग और अनडॉकिंग की प्रक्रिया क्या होती है?

Astronaut Shubhanshu Shukla with his Teammates on the Axiom-4 mission (Photo: @JonnyKimUSA on X via PTI) Astronaut Shubhanshu Shukla with his Teammates on the Axiom-4 mission (Photo: @JonnyKimUSA on X via PTI)
हाइलाइट्स
  • शुभांशु शुक्ला 15 जुलाई को दोपहर 3:00 बजे लौटेंगे धरती पर 

  • शुभांशु शुक्ला ने अपने साथियों के साथ स्पेस में किए हैं कई रिसर्च 

  • 25 जून 2025 को लॉन्च किया गया था ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट

एक्सिओम-4 मिशन (Axiom 4 Mission) के तहत  इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर वैज्ञानिक प्रयोग के लिए गए भारतीय वायुसेना के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला (Shubhanshu Shukla) और अन्य तीन अन्य अंतरिक्ष यात्रियों की धरती पर लौटने की काउंटडाउन शुरू हो गई है.

नासा (NASA) के मुताबिक शुभांशु शुक्ला व अन्य तीनों अंतरिक्ष यात्रियों की पृथ्वी पर सुरक्षित लैंडिंग 15 जुलाई 2025 को दोपहर 3:00 बजे (भारतीय समयानुसार) निर्धारित है. अब आपके मन में सवाल उठ रहे हैं कि किस रॉकेट से ये अंतरिक्ष यात्री लौटेंगे, उसकी स्पीड क्या होगी, कैसे और कहां लैंडिंग होगी? हम आपके इन सवालों का जवाब तो देंगे ही साथ ही यह भी बताएंगे कि अंतरिक्ष यानों को स्पेस में भेजने और लौटने के दौरान डॉकिंग और अनडॉकिंग की प्रक्रिया क्या होती है?

क्या होती है डॉकिंग 
आपको मालूम हो कि डॉकिंग और अनडॉकिंग दो अंतरिक्ष यानों को जोड़ने और अलग करने की प्रक्रिया को कहते हैं. डॉकिंग को दौरान दो अंतरिक्ष यान भौतिक रूप से आपस में जुड़ते हैं.  इसमें आमतौर पर एक अंतरिक्ष यान किसी लक्ष्य अंतरिक्ष यान या अंतरिक्ष स्टेशन के पास पहुंचता है और एक डॉकिंग पोर्ट के माध्यम से जुड़ता है. डॉकिंग अक्सर स्वचालित होती है, लेकिन इसे मैन्युअल रूप से भी नियंत्रित किया जा सकता है. डॉकिंग सिस्टम अंतरिक्ष यान को भौतिक रूप से पकड़ लेता है और उन्हें एक साथ लॉक कर देता है. इसके बाद डॉकिंग पोर्ट को सील कर दिया जाता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि अंदर का भाग दबाव में रहे और चालक दल या कार्गो स्थानांतरण के लिए सुरक्षित रहे.

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क्या होती है अनडॉकिंग 
पहले से डॉक किए गए दो अंतरिक्ष यानों को अलग करने की प्रक्रिया को अनडॉकिंग कहते हैं. इसमें अंतरिक्ष यान को एक साथ रखने वाले यांत्रिक या चुंबकीय लॉक को खोलना शामिल होता है, जिसके बाद वे सुरक्षित रूप से अलग होते हैं. भारतीय समयानुसार 14 जुलाई 2025 की शाम 4:35 बजे से स्पेस स्टेशन से अनडॉकिंग की प्रक्रिया शुरू हो गई. इसमें क्रू ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से धीरे-धीरे अलग होगा और 15 जुलाई 2025 को दोपहर 3:00 बजे धरती पर लैंडिंग करेगा.  

क्यों की जाती है रॉकेट फायरिंग 
आपको मालूम हो कि अनडॉकिंग के बाद स्पेस में गया कैप्सूल धरती की ओर बढ़ता है. यह कैप्सूल पृथ्वी के वायुमंडल में जब प्रवेश करता है तो तेज गर्मी और घर्षण का सामना करता है. इस समय इस कैप्सूल की गति लगभग 28 हजार किलोमीटर प्रत‍ि घंटा होती है. इस गति से यह कैप्सूल पृथ्वी पर सुरक्षित तरीके से नहीं उतर सकता है. ऐसे में इसकी गति को धीमा करने के लिए रॉकेट फायरिंग की जाती है, जिसे रिट्रोग्रेड बर्न (Retrograde Burn) कहते हैं. इससे कैप्सूल की गति धीमी होती है और स्पेसक्राफ्ट धरती के गुरुत्वाकर्षण में प्रवेश कर जाता है. इंटरनेशनल स्‍पेस स्‍टेशन से अनडॉकिंग से लेकर सॉफ्ट लैंडिंग (स्प्लैशडाउन) तक लगभग 12–16 घंटे लगेंगे. धरती पर उतरते समय ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट की स्पीड लगभग 24 किमी/घंटा रहेगी.

लैंडिंग से कुछ समय पहले खुलते हैं पैराशूट्स 
आपको मालूम हो कि स्पेसक्राफ्ट में पैराशूट होते हैं. स्पेसक्राफ्ट के वायुमंडल में आने के बाद इसकी गति को कम करने के लिए पहले छोटे और फिर लैंडिंग से कुछ समय पहले मुख्य पैराशूट खुलते हैं. स्पेसक्राफ्ट की आमतौर पर अटलांटिक महासागर या मेक्सिको की खाड़ी में सॉफ्ट लैंडिंग की जाती है. ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट कैलिफोर्निया के नजदीक समुद्र में लैंड करेगा. इसके बाद स्पेस एक्स की रिकवरी टीम तुरंत कैप्सूल को जहाज पर लिफ्ट कर क्रू मेंबर्स को बाहर निकालेगी.

Axiom-4 टीम में कौन-कौन हैं शामिल 
1. मिशन कमांडर पैगी व्हिटसन. 
2. पायलट शुभांशु शुक्ला. 
3. मिशन विशेषज्ञ स्लावोज उज्नान्स्की विस्नीव्स्की. 
4. मिशन विशेषज्ञ टिबोर कापू 

अंतरिक्ष से क्या लेकर आ रहा ड्रैगन यान
आपको मालूम हो कि Axiom-4 मिशन के तहत ड्रैगन स्पेसक्राफ्ट को 25 जून 2025 को यूएस के फ्लोरिडा स्थित नासा के कैनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया था. यह स्पेसक्राफ्ट लगभग 28 घंटे की यात्रा के बाद 26 जून 2025 को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंचा था. ड्रैगन कैप्सूल को फाल्कन-9 रॉकेट के जरिए लॉन्च किया गया था. अब इसी कैप्सूल से शुभांशु शुक्ला और उनकी टीम की अंतरराष्ट्रीय स्टेशन से वापसी हो रही है. यह कैप्सूल पूरी तरह से ऑटोमेटेड और सुरक्षित है. ड्रैगन कैप्सूल को दोबारा भी उपयोग किया जा सकता है. 

यह कैप्सूल सिर्फ अंतरिक्ष यात्रियों को ही सुरक्षित स्पेस में नहीं ले जाता है, बल्कि वैज्ञानिक उपकरण, सैंपल और अन्य जरूरी सामान भी वापस लाता है. Axiom-4 मिशन में शामिल एस्ट्रोनॉट्स ड्रैगन कैप्सूल में 580 पाउंड यानी करीब 263 किलोग्राम के वैज्ञानिक उपकरण लेकर आ रहे हैं. इसमें  NASA का स्पेस हार्डवेयर और 60 से अधिक साइंस एक्सपेरिमेंट्स के डेटा शामिल हैं. ये प्रयोग अंतरिक्ष में किए गए हैं और भविष्य की स्पेस टेक्नोलॉजी व मेडिकल साइंस के लिए काफी अहम माने जा रहे हैं. आपको मालूम हो कि Axiom-4 मिशन Axiom स्पेस, नासा और इसरो का एक संयुक्त प्रयास है. भारत ने इस मिशन के लिए 550 करोड़ रुपए खर्च किए हैं. आपको मालूम हो कि भारत के राकेश शर्मा ने 1984 में सोवियत रूस के सैल्यूट-7 मिशन के तहत अंतरिक्ष की उड़ान भरी थी. अब ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले दूसरे भारतीय बन गए हैं.