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डेयरी पशुओं में होने वाली ‘मास्टिटिस’ बीमारी का देसी इलाज, एंटीबायोटिक दवाओं पर होने वाला खर्च भी होगा कम

हाल ही में गुजरात के एक किसान ने डेयरी मवेशियों में होने वाली एक संक्रामक बीमारी, मास्टिटिस (Mastitis) का इलाज करने के लिए एक पॉली-हर्बल और सस्ती दवा बनाई है. नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन (NIF) द्वारा विकसित इस दवाई का नाम मस्टीरेक जेल है. देश में दूध उत्पादन में होने वाले 70 प्रतिशत नुकसान का कारण यही बीमारी होती है, जिससे लोगों को भी कई स्वास्थ्य परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

डेयरी पशुओं में होने वाली ‘मास्टिटिस’ बीमारी का देसी इलाज डेयरी पशुओं में होने वाली ‘मास्टिटिस’ बीमारी का देसी इलाज
हाइलाइट्स
  • गुजरात के किसान ने बनाई पॉली-हर्बल और सस्ती दवा

  • मास्टिटिस के कारण भारत को हर साल होता है लगभग 7165.51 करोड़ रु. का नुकसान

  • अभी तक देश के आठ राज्यों में किया जा रहा है उपयोग

भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक (Dairy Production) देश है लेकिन अभी भी दूध की प्रति व्यक्ति उपलब्धता यहां आधी है. कम उत्पादकता के कारणों में से एक खराब पशु स्वास्थ्य है और इसका सबसे बड़ा कारण है ‘मास्टिटिस’ (Mastitis). यह बीमारी भारत में आर्थिक नुकसान के मामले में डेयरी पशुओं में होने वाली सबसे बड़ी समस्या है. लेकिन गुजरात के एक किसान ने डेयरी मवेशियों की इस संक्रामक बीमारी, ‘मास्टिटिस’ का इलाज करने के लिए एक पॉली-हर्बल और सस्ती दवा बनाई है.

नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन (NIF) द्वारा विकसित की गयी इस मस्टीरेक जेल नाम की दवा का इंडस्ट्री पार्टनर राकेश फार्मास्युटिकल्स है. इसे देश के विभिन्न भागों में पशुओं की दवाओं की आपूर्ति करने वाले मेडिकल स्टोर से खरीदा जा सकता है.

मस्टीरेक जेल
मस्टीरेक जेल

मास्टिटिस के कारण आती है दूध में गिरावट  

दरअसल, मास्टिटिस एक आम संक्रामक बीमारी है, जिसके कारण दूध की गुणवत्ता में गिरावट आती है. इससे कृषि उत्पादकता भी प्रभावित होती है और यह आय-सृजन गतिविधियों को भी प्रभावित करती है. हालांकि इस बीमारी के लिए संक्रमित पशुओं के लिए एंटीबायोटिक दवाओं से उपचार का विकल्प भी है लेकिन स्वदेशी ज्ञान प्रणाली एक अधिक स्थायी विकल्प उपलब्ध करा सकती है.

कैसे करेगी यह दवा काम?

नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन के मुताबिक, यह दवा मवेशियों में सोमैटिक सेल काउंट (SCC) को कम कर सकती है और मवेशियों के स्वास्थ्य में सुधार कर सकती है. बता दें, सोमैटिक सेल काउंट दूध की गुणवत्ता को मापने के लिए विश्व स्तर पर निर्धारित किया गया एक पैरामीटर है. ये दवा इसी पैरामीटर (SCC) को ठीक करती है। अभी तक देश के आठ राज्यों- गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में डेयरी मालिकों द्वारा इस दवा का उपयोग किया जा रहा है. इसने डेयरी मालिकों के एंटीबायोटिक दवाओं पर होने वाले खर्च को भी कम कर दिया है. 

इससे हर साल होता है 7000 करोड़ रु. का नुकसान  

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार, मास्टिटिस के कारण हर साल भारत को लगभग 7165.51 करोड़ रुपये का नुकसान होता है. आईआईटी रुड़की द्वारा पब्लिश रिपोर्ट की मानें तो देश में दूध उत्पादन में होने वाले 70 प्रतिशत नुकसान का कारण यही बीमारी होती है, जिससे लोगों को भी कई स्वास्थ्य परेशानियों का सामना करना पड़ता है.

दरअसल, इस बीमारी में मवेशियों के दूध के साथ उसका रक्त भी मिल जाता है. इसके परिणामस्वरूप दूध की उपज और गुणवत्ता में भी भारी कमी आती है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की रिपोर्ट के मुताबिक, बोवाइन मास्टिटिस नामक इस बीमारी के कारण वार्षिक आर्थिक नुकसान 135 गुना तक बढ़ गया है.