
जिस तरह हमारा एक पैर दूसरे से लंबा होता उस तरह दोनों कान भी एक जैसे नहीं होते हैं. आपका बायां कान दांए की चलने में इमोशनल टोन आसानी से और जल्दी पहचान सकता है. स्विट्जरलैंड की लॉजेन यूनिवर्सिटी में हुई एक स्टडी में ये बात सामने आई है कि हमारा बायां कान इमोशंस को समझने में ज्यादा सेंसिटिव है. यानि जब आपको कभी अब किसी को अपनी बात अच्छे से समझनी हो तो जाकर उसके बांए कान में कहें ताकि वह भावनात्मक चीजों को आसानी से समझ सके.
लोगों के ब्रेन स्कैन से हुई स्टडी
13 लोगों के हुए ब्रेन स्कैन के अनुसार, पॉजिटिव ह्यूमन साउंड, जैसे हंसी, हमारे दिमाग के ऑडिटरी सिस्टम में मजबूत न्यूरल एक्टिविटी को ट्रिगर करती हैं. ये तब होता है जब उस चीज को बाएं कान से सुना जाता है. हालांकि, ऐसा क्यों है इसको लेकर अभी कोई स्टडी नहीं हुई है. ये एक्सपेरिमेंट केवल ऑडिटरी कोर्टेक्स में किस तरह से गतिविधि में बदलाव होता है, इसपर फोकस करता है. हालांकि, इस ऑडिटरी कोर्टेक्स में होने वाले इस बदलाव से उस साउंड के बारे में हम कैसे अपनी कोई भी धारणा बनाते हैं, इसका कारण अभी सामने नहीं आया है.
क्या है इस कारण?
पिछले अध्ययनों से पता चला है कि बाएं कान किसी की आवाज में भावनात्मक स्वर को आसानी से पहचान सकते हैं. क्योंकि ऑडिटरी करते में जाने के लिए बायां कान पहले दाहिने हेमिस्फीयर को जानकारी देता है. यह माना जाता था कि मस्तिष्क का दाहिना भाग बाईं ओर की तुलना में भावनाओं को संसाधित करने में बेहतर होता है.
कैसे हुई स्टडी?
स्टडी के लिए प्रतिभागियों ने तीन अलग-अलग दिशाओं से खुशी वाली टोन अलग-अलग एंगल- बाएं, दाएं और सेंटर से भेजी. इससे समझ आया कि ऑडिटरी कोर्टेक्स सभी फेज में एक्टिव है. हालांकि जब रिकॉर्डिंग केवल बाईं ओर से सुनाई दी तो उस वक्त एक बहुत मजबूत न्यूरोलॉजिकल रिस्पांस मिला. ईपीएफएल के न्यूरोसाइंटिस्ट सैंड्रा दा कोस्टा कहते हैं, "ऐसा तब नहीं होता है जब पॉजिटिव टोन सामने या दाएं से आती हैं. स्टडी में यह भी दिखाया गया है कि न्यूट्रल या नेगेटिव साउंड जैसे डरने वाली, चीखें या कोई भी इमोशन का बाएं कान पर कोई असर नहीं पड़ा.