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सोने से भी कीमती है ये धूल! 50 साल बाद पहली बार धरती पर लाए गए चांद की मिट्टी के सैंपल, अब इस सिक्योरिटी लैब में है बंद

क्या आप जानते हैं कि चांद की धूल धरती पर पहुंच चुकी है, और वो भी सोने से ज्यादा कीमती है? चीन की अंतरिक्ष एजेंसी ने भेजा है यह अनमोल तोहफा, जो अब UK के हाई-सिक्योरिटी लैब में बंद है. 

Moon Soil Study (Representative Image) Moon Soil Study (Representative Image)
हाइलाइट्स
  • धूल पर काम होगा शुरू

  • खुलेंगे कई रहस्य

चांद की धूल! सुनने में जादुई लगता है, है ना? लेकिन यह कोई कविता या कहानी नहीं, बल्कि हकीकत है, जो अब धरती पर उतर चुकी है. लगभग 50 साल बाद पहली बार चांद की मिट्टी के नमूने धरती पर लाए गए हैं, और यह कमाल किया है चीन ने! ये छोटे-छोटे धूल के कण, जो सोने से भी ज्यादा कीमती हैं, अब यूनाइटेड किंगडम के मिल्टन कीन्स में एक हाई-सिक्योरिटी लैब में बंद हैं. और इस अनमोल खजाने को देखने का पहला मौका मिला है प्रोफेसर महेश आनंद को, जो UK के एकमात्र वैज्ञानिक हैं, जिन्हें चीन ने यह दुर्लभ सामग्री उधार दी है.

बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, प्रोफेसर आनंद इसे "सोने की धूल से भी ज्यादा कीमती" बताते हैं. उनका कहना है, "चीन के इन नमूनों तक दुनिया में किसी की पहुंच नहीं थी. यह हमारे लिए बहुत बड़ा सम्मान और विशेषाधिकार है." तो आखिर क्या है इस चांद की धूल में ऐसा खास, जो वैज्ञानिकों को बेचैन कर रहा है? और कैसे यह धूल खोल सकती है चांद और धरती के बनने के रहस्य? चलिए, इस रोमांचक कहानी में गोता लगाते हैं!

चांद की धूल का सफर
यह कहानी शुरू होती है साल 2020 में, जब चीन की चांग'ए 5 अंतरिक्ष मिशन ने चांद के एक ज्वालामुखी क्षेत्र मॉन्स रूमकर पर लैंडिंग की. एक रोबोटिक हैंड ने चांद की सतह में ड्रिल करके 2 किलोग्राम मिट्टी और चट्टानों को इकट्ठा किया. फिर यह सामग्री एक कैप्सूल में बंद करके धरती पर भेजी गई, जो इनर मंगोलिया में उतरी. यह 1976 में सोवियत मिशन के बाद पहला सफल चंद्र नमूना संग्रह था, जिसने चीन को नई अंतरिक्ष दौड़ में अग्रणी बना दिया.

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अब, अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक सहयोग की लंबी परंपरा को निभाते हुए, चीन ने पहली बार सात वैश्विक शोधकर्ताओं को इन नमूनों तक पहुंच दी है. और इस सूची में शामिल हैं UK के प्रोफेसर महेश आनंद. पिछले हफ्ते, बीजिंग में एक शानदार समारोह में प्रोफेसर आनंद को ये छोटी-छोटी शीशियां सौंपी गईं, जिनमें चांद की धूल भरी थी. इस समारोह में रूस, जापान, पाकिस्तान और यूरोप के वैज्ञानिक भी शामिल थे.

प्रोफेसर आनंद ने बताया, "यह अनुभव किसी समानांतर ब्रह्मांड जैसा था. अंतरिक्ष कार्यक्रमों में निवेश के मामले में चीन हमसे बहुत आगे है." उन्होंने इस कीमती सामग्री को सबसे सुरक्षित जगह अपने हैंड लगेज में लेकर UK लौटे.

क्या है चांद की धूल में खास?
आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये धूल इतनी खास क्यों है? दरअसल, इन छोटे-छोटे कणों में 4.5 अरब साल पुराने रहस्य छिपे हैं. वैज्ञानिकों का मानना है कि चांद तब बना था, जब धरती का एक मंगल ग्रह के आकार के ग्रह से टक्कर हुई थी. इस टक्कर से निकला मलबा इकट्ठा होकर चांद बना. और अब, इन धूल के कणों में उस टक्कर के सबूत मिल सकते हैं, जो चांद के बनने और धरती के शुरुआती सालों की कहानी बयां कर सकते हैं.

प्रोफेसर आनंद की टीम इस धूल को पीसकर और लेजर से स्कैन करके इन रहस्यों को खोलने की कोशिश करेगी. उनके पास कुल 60 मिलीग्राम धूल है, जो दिखने में भले ही कम लगे, लेकिन प्रोफेसर कहते हैं, "छोटा ही ताकतवर है. यह मात्रा हमें सालों तक व्यस्त रखने के लिए काफी है, क्योंकि हम माइक्रो स्तर पर काम करने में माहिर हैं."

हाई-सिक्योरिटी लैब में चांद की धूल
मिल्टन कीन्स में ओपन यूनिवर्सिटी के लैब में इस धूल को रखा गया है. बीबीसी न्यूज की टीम को इस लैब में जाने का मौका मिला, जहां हर कदम पर सावधानी बरती जाती है. जूते साफ करने के लिए स्टिकी मैट, प्लास्टिक दस्ताने, गाउन, हेयर नेट और हुड- सब कुछ इसलिए, ताकि धरती का कोई कण इस अलौकिक धूल के साथ न मिले. अगर ऐसा हुआ, तो विश्लेषण हमेशा के लिए बर्बाद हो सकता है.

लैब में एक तिजोरी के सामने प्रोफेसर आनंद ने एक जिपलॉक बैग निकाला, जिसमें तीन छोटे-छोटे कंटेनर थे. प्रत्येक में एक पारदर्शी शीशी थी, जिसके तल में गहरे भूरे रंग की धूल जमी थी. यही थी चांद की धूल! यह देखने में साधारण लगती है, लेकिन इसका ब्रह्मांडीय सफर आपको विस्मय में डाल देता है.

धूल पर काम शुरू
लैब की टेक्नीशियन K. knight इस धूल पर काम करने वाली पहली शख्स होंगी. 36 साल तक चट्टानों को काटने और पीसने का अनुभव रखने वाली के लिए भी यह पहला मौका होगा, जब वे चांद की सतह से आई सामग्री पर काम करेंगी. वे कहती हैं, "मैं बहुत उत्साहित हूं, लेकिन नर्वस भी. नमूने बहुत कम हैं, और इन्हें दोबारा लाना आसान नहीं. यह हाई-स्टेक्स काम है."

इसके बाद, सैंपल दो और लैब में जाएंगे. एक लैब में साशा वर्चोव्स्की ने 1990 के दशक से एक खास मशीन बनाई है, जिसे फिनेस कहते हैं. यह मशीन धूल को 1400 डिग्री सेल्सियस तक गर्म करके कार्बन, नाइट्रोजन और नोबल गैसों को निकालेगी. दूसरी लैब में जेम्स मैली एक ऐसी मशीन चलाते हैं, जो धूल में ऑक्सीजन की मात्रा का पता लगाएगी. वे कहते हैं, "मैं इस धूल के एक कण पर लेजर मारूंगा, और आप इसे पिघलते हुए देखेंगे."

क्या होगा इस धूल का भविष्य?
प्रोफेसर आनंद की टीम को यह शोध एक साल में पूरा करना है. इस प्रक्रिया में शायद ये नमूने नष्ट हो जाएंगे, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि ये बलिदान इसके लायक है. चीन ने 2024 में चांग'ए 6 मिशन के जरिए चांद के दूरवर्ती हिस्से से भी नमूने लाए हैं, जो और भी रहस्यमयी हैं. प्रोफेसर आनंद को उम्मीद है कि यह चीन और अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के बीच लंबे समय तक सहयोग की शुरुआत होगी.