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NASA DART Mission: पृथ्वी को बचाने का नासा का सबसे बड़ा डार्ट मिशन कामयाब, आज सुबह 4 बजकर 45 मिनट पर हुई टक्कर

NASA DART Mission: आज धरती के लिए बड़ा दिन है. जिस उल्कापिंड के टकराने की खबरों से अब तक दुनिया दहल जाती थी. वो डर आज NASA ने पूरी तरह खत्म कर दिया है. नासा ने आज पहली बार किसी प्लैनेटरी डिफेंस टेस्ट यानी डार्ट मिशन को सफलतापूर्वक पूरा किया.

NASA DART Mission NASA DART Mission
हाइलाइट्स
  • स्पेसक्राफ्ट ने करीब 22,530 किमी प्रति घंटी की रफ्तार से टक्कर मारी

  • उल्कापिंड की दिशा और रफ्तार बदलने का प्रयोग कामयाब

नासा ने पहली बार किसी प्लैनेटरी डिफेंस टेस्ट (Planetary Defense Test) यानी डार्ट मिशन (Dart Mission) को सफलतापूर्वक पूरा किया गया. ऐसा करके नासा ने कीर्तिमान रच दिया. अब आगे धरती के ऊपर अगर किसी तरह के एस्टेरॉयड का हमला होने की आशंका होती है, तो इस तकनीक से पृथ्वी को बचाया जा सकता है. बता दें कि इस मिशन में काइनेटिक इम्पैक्टर टेक्नीक (Kinetic Impactor Technique) का उपयोग किया गया.

फोटो (NASA)

कैसे हुई ये टक्कर?

ये मिशन उल्कापिंड के खतरे से निपटने के लिए लिए था. जिसमें स्पेसक्राफ्ट को उल्कापिंड से टकराया जाना था. वैज्ञानिक इस प्रयोग से उल्कापिंड की दिशा और रफ्तार बदलने में कामयाब रहे. ये महाटक्कर सुबह 4 बजकर 45 मिनट पर हुई. इस टक्कर के बाद भविष्य में धरती से उल्कापिंड की किसी भी टक्कर को अब टाला जा सकेगा. आज सुबह स्पेसक्राफ्ट ने करीब 22,530 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से उल्कापिंट को टक्कर मारी.

बता दें कि टक्कर से पहले डाइमॉरफोस और एस्टेरॉयड डिडमोस की वैज्ञानिकों ने पूरी स्टडी की. हालांकि टक्कर के परिणामों के बारे में सटीक डाटा अभी सामने नहीं आया है, लेकिन नासा का कहना है कि ये टक्कर उल्कापिंड के टकराने से धरती के खत्म होने के डर को खत्म कर देगी.

फोटो (NASA)

एस्टेरॉयड क्या होते हैं?

दरअसल, एस्टेरॉयड सूर्य के चारों ओर घूमने वाले चट्टानी ऑब्जेक्ट हैं. कई एस्टेरॉयड के गुरुत्वाकर्षण से उनके चंद्रमा बन जाते हैं. अब तक लाखों एस्टेरॉयड का पता लगाया जा चुका है. वहीं नासा ने अब तक 10 लाख एस्टेरॉयड की पहचान कर चुका है. 
बता दें कि 1908 में साइबेरिया में 40 मीटर लंबा उल्कापिंड गिरा था. 1908 में गिरे उल्कापिंड से लंदन के बराबर जंगल तबाह हो गया था. हर साल हजारों एस्टेरॉयड धरती के संपर्क में आते हैं, लेकिन राहत की बात ये है कि धरती के वातावरण में आने से पहले ये एस्टेरॉयड टूटकर बिखर जाते हैं.