
नागालैंड यूनिवर्सिटी (Nagaland University) की एक नई रिसर्च ने खुलासा किया है कि बिना डंक वाली मधुमक्खियां परागण (Pollination) के ज़रिए फसल उत्पादन और क्वालिटी को बढ़ा सकती हैं. इस रिसर्च के अनुसार, ये मधुमक्खियां फसल में परागण करती हैं. और इनके प्रयोग से राज मिर्च में फल लगने की दर 21 प्रतिशत से बढ़कर 29.46 प्रतिशत हो गई.
यानी रिसर्च में ग्रोथ में 8.46 प्रतिशत इज़ाफ़ा पाया गया है. यह रिसर्च कई फसलों पर की गई है. मिसाल के तौर पर, सामान्य मिर्च (Capsicum Annuum) में स्वस्थ अवस्था में फल विकास में लगभग 8% की वृद्धि हुई. वहीं बीज के वज़न में 60 प्रतिशत से ज्यादा का इजाफा हुआ है.
क्या होती हैं बिना डंक की मधुमक्खियां
बिना डंक वाली मधुमक्खियां भारत के उत्तर पूर्व, दक्षिण और पूर्वी भागों में बड़े तौर पर पाई जाती हैं. इस रिसर्च के लिए बिना डंक वाली मधुमक्खियों का वैज्ञानिक रूप से पालन-पोषण नागालैंड में किया गया है और बाद में इन्हें मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में भी पाला गया.
वैयह रिसर्च टिकाऊ कृषि (Sustainable Farming) और परागणकों के संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. ज्ञानिकों ने इस रिसर्च को अंजाम देने के लिए जंगल के इलाकों से बिना डंक वाली मधुमक्खियों की कालोनियों को अलग किया और उन्हें वैज्ञानिक छत्तों में लगाया. फिर इन छत्तों को खुले खेतों के साथ-साथ ग्रीनहाउस में भी लगाया गया.
रिसर्च में क्या मिला?
मधुमक्खियों और परागणकों पर ऑल इंडिया को-ऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट (All India Coordinated Research Project) के प्रधान अन्वेषक डॉ. अविनाश चौहान के नेतृत्व में टीम रिसर्च की. रिसर्च में पाया गया कि बिना डंक की मधुमक्खियों की दो प्रजातियां यानी टेट्रागोनुला इरिडीपेनिस (Tetragonula Iridipennis) और लेपिडोट्रिगोना आर्किफेरा (Lepidotrigona arcifera) ने न सिर्फ फल उत्पादन में सुधार किया, बल्कि मिर्च और राज मिर्च में बीज की व्यवहार्यता में भी सुधार किया.
उन्होंने कहा, "हमारी टीम ने पाया कि जब ये मधुमक्खियां परागण करती हैं तो मिर्च की फसल की पैदावार और क्वालिटी में इजाफा होता है. मिर्च में परागण की कमी को पूरा करने के लिए बिना डंक की मधुमक्खियां और ए डोर्सटा, ए फ्लोरिया जैसी मधुमक्खी प्रजातियों और अन्य जंगली मधुमक्खियों जैसे हैलिकटिड मधुमक्खियों, सिरफिड मधुमक्खियों और एमेजिएला मधुमक्खियों को संरक्षित करने की जरूरत है."
क्यों अहम मानी जा रही रिसर्च?
यह बात पहले ही साबित हो चुकी है कि फसल की अच्छी पैदावार के लिए परागण बहुत ज़रूरी है. हालांकि परागण में मधुमक्खियों के इस्तेमाल से यह डर रहता है कि वे किसानों को डंक मार सकती हैं. अगर वे ज्यादा डंक मार दें तो यह जानलेवा भी साबित हो सकता है. बिना डंक वाली मधुमक्खियों के इस्तेमाल से यह डर मिट जाता है. साथ ही इस तरह इन मधुमक्खियों के संरक्षण को भी प्रोमोट किया जा सकता है.
डॉ चौहान ने कहा, "बिना डंक के डर के परागण के लिए इन मधुमक्खियों का इस्तेमाल किया जा सकता है. वे अपने लोकप्रिय औषधीय शहद और परागण क्षमता के लिए जानी जाती हैं. इनके इस्तेमाल से हम फसल परागण कैलेंडर तैयार कर सकते हैं. हमारी फसल की पैदावार तो बढ़ी ही, साथ ही इन मधुमक्खियों से मिले शहद से हमें अतिरिक्त आय भी हुई."
डॉ. चौहान ने बताया कि यह तकनीक फसलों में परागण के अंतर को भरने के लिए है. खासकर जहां मधुमक्खियों का उपयोग प्रतिबंधित है. जिन फसलों पर रिसर्च किया गया उनमें खीरा, तरबूज, नींबू, टमाटर, बैंगन और ड्रैगन फ्रूट शामिल हैं. भविष्य की रिसर्च में बिना डंक वाली मधुमक्खी के शहद के औषधीय मूल्य का पता लगाया जाएगा और पैशन फ्रूट और चाउ चाउ जैसी अन्य कम शोधित फसलों की जांच की जाएगी.