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सूरज की रौशनी से बनेगा ईंधन! वैज्ञानिकों ने बनाया अनोखा मॉलिक्यूल जो रोशनी में ऊर्जा स्टोर कर पाएगा

अमूमन पौधे सूरज की रोशनी का इस्तेमाल कर कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को ऊर्जा से भरपूर शुगर में बदलते हैं. इस प्रक्रिया को फोटोसिंथेसिस कहा जाता है.

new molecule temporarily stores two positive and two negative charges. Credit: Deyanira Geisnæs Schaad new molecule temporarily stores two positive and two negative charges. Credit: Deyanira Geisnæs Schaad
हाइलाइट्स
  • कार्बन-न्यूट्रल ईंधन की दिशा में बड़ा कदम

  • चार्ज जमा करने वाला खास मॉलिक्यूल

एक नई वैज्ञानिक खोज ने सूरज की रोशनी से ईंधन बनाने का सपना साकार कर दिया है. यूनिवर्सिटी ऑफ बासेल के वैज्ञानिकों ने ऐसा मॉलिक्यूल तैयार किया है, जो सूरज की रोशनी की मदद से एक साथ दो सकारात्मक और दो नकारात्मक चार्ज अपने अंदर जमा कर सकता है.

यह शोध जर्नल "नेचर केमिस्ट्री" में प्रकाशित हुआ है और इसे प्रोफेसर ओलिवर वेंगर और उनके पीएचडी छात्र मैथिस ब्रैंडलिन ने मिलकर किया है. यह खोज भविष्य में आर्टिफिशियल फोटोसिंथेसिस यानी कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण तकनीक को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है.

क्या होता है फोटोसिंथेसिस?
अमूमन पौधे सूरज की रोशनी का इस्तेमाल कर कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को ऊर्जा से भरपूर शुगर में बदलते हैं. इस प्रक्रिया को फोटोसिंथेसिस कहा जाता है. जब इंसान और जानवर इन शुगर अणुओं को जला कर ऊर्जा प्राप्त करते हैं, तो दोबारा CO2 निकलता है. इस तरह यह एक प्राकृतिक चक्र बनाता है.

सोलर फ्यूल्स को जलाने पर उन्हें कार्बन-न्यूट्रल क्यों माना जाता है?
वैज्ञानिकों की कोशिश है कि इस प्रक्रिया को कृत्रिम रूप में अपनाया जाए और सूरज की रोशनी से ऐसे ईंधन बनाए जाएं जो पर्यावरण के लिए नुकसानदायक न हों. इस तकनीक को "सोलर फ्यूल्स" कहा जाता है, जैसे हाइड्रोजन, मेथेनॉल या सिंथेटिक पेट्रोल. इन ईंधनों को जलाने पर उतनी ही CO2 निकलेगी, जितनी इनके निर्माण में इस्तेमाल हुई थी यानी ये कार्बन-न्यूट्रल होंगे.

कैसा है यह नया मॉलिक्यूल?

  • दो हिस्से इलेक्ट्रॉन छोड़कर पॉजिटिव चार्ज बनाते हैं.

  • दो हिस्से इलेक्ट्रॉन लेकर निगेटिव चार्ज बनाते हैं.

  • बीच वाला हिस्सा सूरज की रोशनी को पकड़ता है और प्रक्रिया की शुरुआत करता है.

वैज्ञानिकों ने इसे दो बार हल्की रोशनी (डिम लाइट) से चमका कर प्रयोग किया. पहली बार में एक सकारात्मक और एक नकारात्मक चार्ज बना और दूसरी बार यही प्रक्रिया दोहराने से कुल चार चार्ज (दो पॉजिटिव, दो नेगेटिव) इकट्ठा हो गए.

अब तेज लेजर की जरूरत नहीं पड़ेगी
इससे पहले ऐसे प्रयोगों में तेज लेजर लाइट की जरूरत होती थी, लेकिन यह नया मॉलिक्यूल साधारण सूरज की रोशनी जैसे प्रकाश में भी काम करता है. यही इस खोज की बड़ी सफलता है. वैज्ञानिकों ने दिखाया है कि अब कम रोशनी में भी यह प्रक्रिया संभव है और मॉलिक्यूल में जमा चार्ज लंबे समय तक स्थिर रहते हैं, जिससे आगे केमिकल रिएक्शन कराना आसान होता है.