scorecardresearch

तीन माता-पिता, एक बच्चा… ब्रिटेन में विज्ञान का चमत्कार! लाइलाज बीमारी का तोड़ बनी यह तकनीक

यह बीमारी तब होती है जब सेल्स के अंदर मौजूद माइटोकॉन्ड्रिया- जो ऊर्जा पैदा करता है, में जेनेटिक म्यूटेशन हो जाता है.  इसका कोई इलाज नहीं है, लेकिन अब यह नई तकनीक उम्मीद जगा रही है. 

 तीन मां-बाप से पैदा हुए बच्चे तीन मां-बाप से पैदा हुए बच्चे

 

ब्रिटेन में 8 ऐसे बच्चों का जन्म हुआ है जिनके डीएनए में तीन लोगों का योगदान है- मां, पिता और एक महिला डोनर. यह किसी साइंस फिक्शन की कहानी नहीं, बल्कि एक वैज्ञानिक उपलब्धि है. 

यह तकनीक किस बीमारी का इलाज करती है?
यह तकनीक लाइलाज माइटोकॉन्ड्रियल बीमारी (Mitochondrial Disease) से लड़ने के लिए विकसित की गई है, जो बच्चों को गंभीर न्यूरोलॉजिकल और मेटाबॉलिक समस्याओं से ग्रस्त कर सकती है. 

माइटोकॉन्ड्रियल बीमारी क्या होती है?
यह बीमारी तब होती है जब सेल्स के अंदर मौजूद माइटोकॉन्ड्रिया- जो ऊर्जा पैदा करता है, में जेनेटिक म्यूटेशन हो जाता है.  इसका कोई इलाज नहीं है, लेकिन अब यह नई तकनीक उम्मीद जगा रही है. 

यह तकनीक कैसे काम करती है?
इसे प्रोन्यूक्लियर ट्रांसफर (Pronuclear Transfer) कहते हैं.  इसमें मां के बीमार एग से जेनेटिक सामग्री निकालकर डोनर के हेल्दी एग में ट्रांसफर किया जाता है.  इससे बच्चे को माता-पिता और डोनर तीनों का डीएनए मिलता है, लेकिन व्यक्तित्व या रूपरंग पर कोई असर नहीं होता. 

क्या इससे पैदा हुए बच्चे पूरी तरह सामान्य होते हैं?
हां, अब तक पैदा हुए 8 बच्चों (4 लड़के, 4 लड़कियां) बिल्कुल स्वस्थ हैं.  इनमें से 5 में बीमारी के कोई संकेत नहीं हैं, जबकि 3 में बहुत ही कम मात्रा में म्यूटेटेड माइटोकॉन्ड्रिया पाया गया जो नुकसानदायक नहीं है. 

यह तकनीक कहां विकसित की गई है?
यह तकनीक ब्रिटेन की न्यूकैसल यूनिवर्सिटी और NHS फाउंडेशन ट्रस्ट द्वारा विकसित की गई है.  प्रोफेसर सर डग टर्नबुल और बॉबी मैकफारलैंड जैसे वैज्ञानिक इस परियोजना में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं. 

इसे “तीन माता-पिता” क्यों कहा जाता है?
क्योंकि इन बच्चों में 0.02% डीएनए डोनर महिला का होता है जो सिर्फ माइटोकॉन्ड्रिया से संबंधित होता है.  हालांकि, यह डीएनए बच्चे के चेहरे, स्वभाव या व्यक्तित्व को प्रभावित नहीं करता. 

क्या यह तकनीक सभी के लिए उपलब्ध है?
नहीं, फिलहाल यह केवल उन परिवारों के लिए उपयोग में लाई जा रही है जो माइटोकॉन्ड्रियल बीमारी के खतरे से जूझ रहे हैं और जिनके पास मेडिकल अप्रूवल है. 

क्या इस तकनीक को लेकर कोई नैतिक सवाल हैं?
हां, कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि माइटोकॉन्ड्रिया का डीएनए अगली पीढ़ियों में भी जा सकता है, इसलिए इसके दीर्घकालिक प्रभावों पर निगरानी रखी जा रही है.  लेकिन ब्रिटेन की सख्त नीतियों के तहत यह बेहद नियंत्रित तरीके से किया जा रहा है.