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Water on the Moon: चांद पर भी बन सकता है पानी! पृथ्वी के इलेक्ट्रॉन कर सकते हैं मदद, चंद्रयान-1 के डेटा में आई ये बात सामने 

चंद्रमा पर पानी का अध्ययन इसकी उत्पत्ति और विकास को समझने के लिए सबसे जरूरी है. इसके अलावा, भविष्य में इंसान वहां जाकर बस सकें और कॉलोनी बना सकें इसके लिए जरूरी है कि इस तरह की रिसर्च चलती रहे. साथ ही वहां पानी की खोज भी जरूरी है.

Moon Mission and Water Moon Mission and Water
हाइलाइट्स
  • चंद्रमा पर पानी को समझना एक जरूरी मिशन है 

  • पृथ्वी के इलेक्ट्रॉन कर सकते हैं मदद

चांद पर पानी की खोज पिछले कई दशकों से चल रही है. अब इसी कड़ी में भारत के चंद्रयान-1 चंद्र मिशन के डेटा का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने एक दिलचस्प खोज की है. उन्होंने पाया कि पृथ्वी से हाई एनर्जी इलेक्ट्रॉन चंद्रमा पर पानी के निर्माण में योगदान दे सकते हैं. यह खोज नेचर एस्ट्रोनॉमी पत्रिका में पब्लिश हुई है. 

पृथ्वी के इलेक्ट्रॉन चंद्रमा को कैसे प्रभावित करते हैं?

हवाई यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पाया कि "पृथ्वी की प्लाज्मा शीट" में इलेक्ट्रॉन चंद्रमा की सतह पर मौसम के बनने के प्रोसेस (weathering processes) में शामिल हैं. इस प्रोसेस में चंद्रमा की सतह पर चट्टानों और मिनिरल को तोड़ना या घोलना शामिल है. प्रोटॉन जैसे हाई एनर्जी पार्टिकल्स से बनी सौर हवा, लगातार चंद्रमा पर बमबारी करती है. इसे चंद्रमा पर पानी बनने का प्राथमिक तरीका माना गया है.

चंद्रमा पर बन सकता है पानी! 

रिपोर्ट के अनुसार, सौर हवा यानि सोलर विंड जो प्रोटॉन जैसे हाई एनर्जी पार्टिकल्स से बनी होती है, चंद्रमा की सतह पर बमबारी करती है और माना जाता है कि चंद्रमा पर पानी बनने के प्राथमिक तरीकों में से एक है. टीम ने चंद्रमा के पृथ्वी के मैग्नेटोटेल (magnetotail) से गुजरने पर सतह के मौसम में होने वाले बदलावों की जांच की. मैग्नेटोटेल एक ऐसा क्षेत्र है जो चंद्रमा को सौर हवा से लगभग पूरी तरह से बचाता है, लेकिन सूर्य के प्रकाश फोटॉन से नहीं. यूएच मनोआ स्कूल ऑफ ओशन के रिसर्चर शुआई ली कहते हैं, "जब चंद्रमा मैग्नेटोटेल के बाहर होता है, तो चंद्रमा की सतह पर सोलर विंड की बमबारी होती है. मैग्नेटोटेल के अंदर, लगभग कोई सोलर विंड प्रोटॉन नहीं होते हैं और पानी का निर्माण लगभग शून्य होने की उम्मीद होती है."

शुआई ली और उनके साथ शामिल हुए लेखकों ने 2008 और 2009 के बीच भारत के चंद्रयान 1 मिशन पर एक इमेजिंग स्पेक्ट्रोमीटर, मून मिनरलॉजी मैपर डिवाइस द्वारा इकट्ठे किए गए रिमोट सेंसिंग डेटा का विश्लेषण किया है. 

उन्होंने कहा, "रिमोट सेंसिंग ऑब्जरवेशन से पता चला है कि पृथ्वी के मैग्नेटोटेल में पानी का निर्माण लगभग उसी समय और वैसा ही देखा गया है जब चंद्रमा पृथ्वी के मैग्नेटोटेल के बाहर था. इससे पता चलता है कि मैग्नेटोटेल में, या दूसरी जगहों पर भी पानी के नए स्रोत हो सकते हैं जो सीधे सोलर विंड प्रोटॉन के इफेक्ट से जुड़े नहीं हैं.”

चांद पर मिली बर्फ?

चंद्रमा पर पानी का अध्ययन इसकी उत्पत्ति और विकास को समझने के लिए सबसे जरूरी है. इसके अलावा, यह भविष्य में इंसान वहां जाकर बस सकें और कॉलोनी बना सकें इसके लिए जरूरी है कि इस तरह की रिसर्च चलती रहे. साथ ही वहां पानी की खोज भी जरूरी है. यह नई खोज चंद्रमा पर कई जगह खोजी गई बर्फ की उत्पत्ति पर भी प्रकाश डाल सकती है. 2008 में लॉन्च किए गए भारत के पहले चंद्र जांच चंद्रयान -1 ने चंद्रमा पर पानी के मॉलिक्यूल की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. टीम ने चंद्रमा के पृथ्वी के मैग्नेटोटेल से गुजरने पर सतह के मौसम में होने वाले बदलावों का विश्लेषण किया, जो एक ऐसा क्षेत्र है जो चंद्रमा को सौर हवा से बचाता है.

आश्चर्यजनक रूप से, मैग्नेटोटेल (magnetotail) में भी, जहां सौर पवन प्रोटॉन मिलना नामुमकिन है, वहां भी पानी का निर्माण जारी रहा. ऐसे में रिपोर्ट में कहा गया है कि सौर पवन (Solar wind) प्रोटॉन के समान हाई एनर्जी वाले इलेक्ट्रॉन, एक भूमिका निभा सकते हैं.