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Tardigrades: जमा दो, उबाल दो, नहीं पड़ता फर्क... इस जीव को स्पेस में साथ ले जाएंगे शुभांशु शुक्ला, जानिए इसके बारे में सबकुछ

शुभांशु शुक्ला अपने साथ टार्डिग्रेड्स को भी स्पेस में ले जाएंगे. यह एक ऐसा जीव है, जो किसी भी परिस्थितियों में खुद को जिंदा रख सकता है. इसे ना तो गर्मी मार सकती है और ना ही ठंडा इसकी जान ले सकता है. ये स्पेस में भी जीवित रह सकता है. पहले भी स्पेस मिशन में इसपर परीक्षण हो चुके हैं.

Tardigrades (Photo/Meta AI) Tardigrades (Photo/Meta AI)

ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला का स्पेस में जाने का प्रोग्राम चौथी बार टल गया है. स्पेस में जाने के लिए शुभांशु को अभी और इंतजार करना पड़ेगा. स्पेस एक्स के रॉकेट के एक हिस्से में लिक्विड ऑक्सीजन का रिसाव पाया गया है, इसकी वजह से लॉन्च टाल दिया गया है. अभी लॉन्चिंग की नई तारीख सामने नहीं आई है.

शुभांशु शुक्ला के साथ टार्डिग्रेड्स को भी भेजा जाएगा. इसको जलीय भालू भी कहते हैं. इसका आकार 0.5 मिमी से 2 मिमी तक होता है. यह किसी भी परिस्थितियो में सर्वाइव कर सकता है. आखिर स्पेस मिशन में इसे क्यों ले जाया जा रहा है? क्या है इसके पीछे की वजह? इससे क्या फायदा होगा? चलिए सबकुछ बताते हैं.

क्या होते हैं टार्डिग्रेड-
टार्डिग्रेड दुनिया का ऐसा जीव है, जिसको जमाने से लेकर पानी में उबाल देने से भी ये नहीं मरता है. यह दुनिया के हर कोने में पाया जाता है. यह बेहद सूक्ष्म जीव होता है. इसके 8 पैर होते हैं. इसको पहली बार साल 1773 में जर्मन प्रकृतिवादी जोहान ऑगस्टन एफ्रैम गोएज ने खोजा था. इसकी बनावट काफी जटिल होती है. ये पैरों पर चलते हैं, इसलिए इसको जलीय भालू भी कहा जाता है.

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द गार्जियन की एक रिपोर्ट के मुताबिक नॉर्वे में ओस्लो यूनिवर्सिटी के जेम्स फ्लेमिंग के मुताबिक टार्डिग्रेड की लाइफ काफी छोटी होती है. लेकिन अगर इस बीच कोई चरम हालात पैदा होते हैं तो ये इन-एक्टिव फेज में चला जाता है, जिसे सुपर-हाइबर्नेशन की स्थिति कहते हैं. इस हालात में ये एक सदी तक भी जिंदा रह सकता है.

क्यों खास हैं टार्डिग्रेड-
टार्डिग्रेड खुद को किसी भी हालत में जिंदा बचाने में सक्षम हैं. चाहे भारी ठंड हो या भीषण गर्मी हो, टार्डिग्रेड मर नहीं सकते हैं. इसे खौलते पानी में भी डाल देने पर जिंदा रहते हैं. इसके साथ ही ये हजारों गुना ज्यादा रेडिएशन से भी बच सकते हैं. ये इकलौते जीव हैं, जो स्पेस में भी जीवित रह सकते हैं. 
ये कहीं भी जिंदा रह सकते हैं. स्पेस में इनको खास तरह के बायोकल्चर सिस्टम में रखा जाएगा. ये बॉडी से पानी निकालकर ऐसी अवस्था में चले जाते हैं, जिससे उनका मेटाबॉलिज्म बंद हो जाता है. इस प्रोसेस को क्रिप्टो बायोसिस कहा जाता है. इससे इनकी एनर्जी बचती है.

पहले भी स्पेस में ले जाया जा चुका है-
टार्डिग्रेड को पहली बार स्पेस में नहीं ले जाया जा रहा है, इससे पहले भी इन्हें स्पेस में ले जाया जा चुका है. साल 2007 में यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने एक मिशन में रूसी कैप्सूल से 3 हजार टार्डिग्रेड्स स्पेस में ले गए थे. इनको 10 दिनों तक स्पेस में रखा गया था. इसके बाद इनको 2 हजार किमी से कम ऊंचाई में छोड़ दिया गया था. इसमें से ज्यादातर टार्डिग्रेड्स बच गए थे और धरती पर लौटकर प्रजनन भी किया.

टार्डिग्रेड्स की मदद से वैज्ञानिक ये पता लगाना चाहते हैं कि कैसे इंसानों को हर हालात के लिए लचीला बनाया जा सकता है. इसलिए इसको ले जाकर प्रयोग किया जाता है. ये मंगल मिशन के लिए कारगर हो सकते हैं.

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