छत्तीसगढ़ के बस्तर में सालाना दशहरा उत्सव मनाया जा रहा है। यह उत्सव 75 दिनों तक चलता है, जो इसे देश के सबसे लंबे त्योहारों में से एक बनाता है। इस ऐतिहासिक परंपरा में रावण का पुतला नहीं जलाया जाता, जो इसकी सबसे अनोखी विशेषता है। बस्तर दशहरा की यह परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है और इसकी शुरुआत काकती राजवंश ने की थी। यह आदिवासियों की आध्यात्मिक मान्यताओं से गहराई से जुड़ी है, जिसमें देवी दंतेश्वरी की पूजा की जाती है। इस भव्य उत्सव में इलाके के जनजातीय समुदायों की एकजुटता स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। पारंपरिक रीति-रिवाजों, संगीत और नृत्य की झलक इस दौरान देखने को मिलती है, जो इसे एक सांस्कृतिक और भक्तिमय अनुभव बनाता है। मुरिया दरबार की परंपरा भी इस उत्सव का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।