पंडित धीरेंद्र शास्त्री ने इस प्रवचन में बताया कि सुंदरकांड को केवल पढ़ना महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि उसे समझना और जीवन में उतारना आवश्यक है. उन्होंने हनुमान चालीसा के पाठ और सुंदरकांड के जीवन में अनुप्रयोग के बीच का अंतर स्पष्ट किया. उन्होंने कहा, "हमें हनुमान चालीसा को पढ़ना है पर सुंदर कांड को जीना है." प्रवचन में जीवन की क्षणभंगुरता पर जोर दिया गया, जिसमें "पिंजरे से पंछी निकल जाएगा" की उपमा का प्रयोग किया गया.