नटवर नंदकिशोर बृज की होली खुद में सनातन धर्म की उन परंपराओं को समेटे हैं जिनकी जड़ें दादी-नानी की कहानियों से गुज़रते हुए, सदियों का फासला तय कर, पौराणिक इतिहास की गहराई तक जाती हैं. यहां रंगों के उल्लास में द्वापर के संस्कार और संस्कृति घुलती है. तभी तो मथुरा, वृंदावन, बरसाना में होली खेलने का अंदाज़ ही निराला है. यहां पर रंग-गुलाल के साथ कहीं फूलों की होली खेली जाती है. कहीं रंग-गुलाल की जगह लड्डू बरसते हैं. और कहीं लठमार होली और ठिठोली का उत्सव मनाता है.
These are the worshipers of Shri Radha-Krishna settled in Nandgaon and Barsana who have been preserving the legacy of Holi festival of Braj and carrying it on with love from generation to generation. The tradition has been going on since Dwapar.