सत्यनारायण व्रत का अर्थ सत्य के मार्ग पर चलना है। स्कंद पुराण के रेवाखंड में वर्णित इस कथा के अनुसार, जो कोई भी भक्ति और श्रद्धा के साथ इस व्रत को करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कथा में सायंकाल के समय गोधूलि बेला में ब्राह्मणों और बंधु-बांधवों के साथ पूजन का विधान बताया गया है। इसमें केले का फल, घी, दूध, गेहूं या साठी का चूर्ण और शक्कर या गुड़ जैसी सामग्री का उपयोग होता है। कथा में एक निर्धन ब्राह्मण और एक लकड़हारे का वर्णन है, जिन्होंने संकल्प लेकर इस व्रत को किया और वे धन-धान्य से संपन्न हो गए। इस व्रत का सबसे बड़ा संकल्प है, "सच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।" इसका पालन करने से व्यक्ति को धन, संतान और सौभाग्य की प्राप्ति होती है और अंत में मोक्ष मिलता है।