कार्यक्रम में बताया गया कि महाज्ञानी, वेद पुराण के ज्ञाता, ज्योतिषाचार्य और नीतीज्ञ होने के बावजूद रावण का पुतला क्यों जलाया जाता है। रावण के भीतर अहंकार और राक्षसी वृत्तियों ने घर कर लिया था, जिससे वह अधर्म का प्रतीक बन गया। कार्यक्रम में यह भी बताया गया कि रावण ने सीता हरण के बाद जब राम का रूप लेने की कोशिश की, तब उसे हर नारी में माँ का रूप दिखने लगा। रावण को यह भी ज्ञात था कि राक्षस शरीर से मुक्ति पाने के लिए भगवान राम के हाथों प्राण त्यागना आवश्यक है। रावण दहन की परंपरा समाज को यह संदेश देती है कि धन, वैभव और पराक्रम से यश और सम्मान नहीं मिलता, बल्कि अपनी राक्षसी वृत्तियों पर विजय पाना बेहद जरूरी होता है।