शारदीय नवरात्र का महापर्व 22 सितंबर से शुरू होकर 2 अक्टूबर को दशहरे के साथ समाप्त होगा. इस बार माता रानी हाथी पर सवार होकर पधार रही हैं और डोली में प्रस्थान करेंगी. यह आगमन और प्रस्थान समाज, राष्ट्र और विश्व को शुभ फल प्रदान करेगा. नवरात्र में आदि शक्ति भवानी के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है. यह समय जीवन में आर्थिक संपन्नता, उन्नति, विद्या, व्यवसाय, यश और कीर्ति प्रदान करता है. नवरात्र में रात्रि की पूजा विशेष महत्वपूर्ण मानी जाती है, जिससे सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. कलश स्थापना के लिए 22 सितंबर को सुबह 6:09 बजे से 8:06 बजे तक और अभिजीत मुहूर्त सुबह 11:46 बजे से दोपहर 12:38 बजे तक का समय शुभ है. कलश स्थापना की विधि में घर की साफ-सफाई, पूजा स्थान पर देवी की मूर्ति या चित्र की स्थापना, कलश में पवित्र जल, सुपारी, चंदन, पुष्प, सुगंधित द्रव्य, सिक्का, आम के पत्ते और नारियल रखना शामिल है. पहले दिन माँ शैलपुत्री की आराधना की जाती है. नवरात्र में जौ बोने का भी विधान है, जिसका हरा या आधा सफेद रंग शुभ संकेत माना जाता है.