पूजा-उपासना में प्रयोग होने वाली वस्तुओं के धार्मिक महत्व को समझाया गया है. धूप क्यों जलाते हैं और दीपक का क्या विधान है, इस पर प्रकाश डाला गया है. "ईश्वर को प्रकाश के रूप में मानते हैं, इसलिए दीपक जलाकर उसकी ज्योति के रूप में ईश्वर को स्थापित करते हैं" विभिन्न देवी-देवताओं को अर्पित किए जाने वाले प्रसाद, पुष्प और मनोकामना पूर्ति के लिए विभिन्न सामग्रियों से हवन करने के लाभ भी बताए गए हैं.
15 जून को सूर्य वृषभ राशि से निकलकर मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे। मिथुन राशि में पहले से मौजूद बृहस्पति के साथ गुरु आदित्य राजयोग बनेगा। इस योग से धनलाभ के योग बनेंगे। सूर्य का यह राशि परिवर्तन देश, दुनिया और अलग-अलग राशियों पर अगले एक महीने तक प्रभाव दिखाएगा। मिथुन, सिंह और धनु राशि वालों के लिए यह राशि परिवर्तन विशेष लाभकारी होगा। कर्क और वृश्चिक राशि वालों को सावधान रहने की आवश्यकता है।
धार्मिक मान्यताओं में आषाढ़ मास को विशेष महत्व दिया गया है क्योंकि इसी महीने में तमाम शुभ फलदायी व्रत और पर्व पड़ते हैं जो इंसान का हर प्रकार से कल्याण करते हैं और पूजा उपासना की शक्ति से आपको हर कष्ट से मुक्ति भी मिल सकती है. सच्चे मन और पूर्ण श्रृद्धा से अगर जप तप किया जाए तो सभी मनोकामनाओं की पूर्ति हो सकती है. आषाढ़ माह में कौन कौन से व्रत और पर्व आते हैं. चलिए अब आपको ये बताते हैं. आषाढ़ माह के व्रत और पर्व - आषाढ़ मास के पहले दिन खड़ाऊं , छाता , नमक और आंवले का दान किसी ब्राह्मण को करें.
पूर्णिमा तिथि पूर्णत्व की तिथि मानी जाती है. इस तिथि को चन्द्रमा सम्पूर्ण होता है. सूर्य और चन्द्रमा समसप्तक होते हैं. इस तिथि पर जल और वातावरण में विशेष उर्जा आ जाती है. चन्द्रमा इस तिथि के स्वामी होते हैं. इसलिए इस दिन हर तरह की मानसिक समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है. इस दिन स्नान, दान और ध्यान करना विशेष फलदायी होता है. इस दिन सत्यनारायण भगवान या महादेव की उपासना करनी चाहिए. ज्येष्ठ पूर्णिमा पर वृक्षों और प्रकृति के पूजन की परंपरा है. इस दिन गंगाजल , बरगद के पेड़ और सूर्य देव की उपासना से विशेष लाभ होता है.
दिल्ली के कनॉट प्लेस में स्थित हनुमान मंदिर महाभारतकालीन माना जाता है, जहाँ मान्यता है कि संत तुलसीदास ने हनुमान चालीसा की रचना की थी। इस मंदिर में 1964 से अखंड राम नाम जाप जारी है, जो गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है। एक महत्वपूर्ण मान्यता यह है कि, जैसा एक वक्ता ने बताया, "इस मंदिर में ये है कि ये हनुमान जी जो है चोला छोड़ते हैं। 20-25 साल की अवधि में जो विश्व के किसी मंदिर भी नहीं होता।"
भगवान शिव का प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ, जिसकी स्थापना स्वयं चंद्रदेव ने सतयुग में दक्ष प्रजापति के श्राप से मुक्ति पाने हेतु की थी। यह मान्यता है कि, 'सोमनाथ बाबा हर मनुष्य का सब कष्ट दुख दूर करता है, उनकी इच्छाएं पूरी करते हैं'। अनेक आक्रमणों के बावजूद, यह मंदिर आज भी अपनी पूरी शान के साथ खड़ा है, भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है।
स्वास्तिक का अर्थ 'कल्याण या मंगल करने वाला' बताया गया है. यह चिन्ह भारतीय संस्कृति में वेदों और पुराणों से जुड़ा है, जिसे ब्रह्मा, विष्णु, महेश और गणेश का प्रतीक माना गया है. इसके धार्मिक पहलू के साथ वैज्ञानिक महत्व भी है, सही प्रयोग से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है और यह वास्तु दोष निवारण में सहायक है.
घर का मुख्य द्वार भाग्य और जीवन में बदलाव के लिए जिम्मेदार होता है. ज्योतिष के जानकार मानते हैं कि इसकी दिशा और दशा ठीक होनी चाहिए. 'मुख्य द्वार से जुड़ी है आपकी तकदीर, मुख्य द्वार बदल सकता है आपकी जिन्दगी की तस्वीर' मुख्य द्वार पर गणेश-लक्ष्मी मूर्ति, मंगल कलश, स्वस्तिक और घोड़े की नाल जैसी वस्तुएं लगाने से घर में खुशहाली बढ़ती है.
आज गायत्री जयंती मनाई जा रही है, जिस दिन माँ गायत्री का पृथ्वी लोक पर आगमन हुआ था। कार्यक्रम में बताया गया कि माँ गायत्री वेद की माता हैं और उन्हें भारतीय संस्कृति की जननी भी कहा गया है। मान्यता है कि गायत्री महामंत्र के जाप से चौबीस देवों का आशीर्वाद मिलता है, स्मरण शक्ति बढ़ती है और कष्ट दूर होते हैं।
24 एकादशियों का फल देती है निर्जला एकादशी. पुण्य फलदायी निर्जला एकादशी व्रत का इतिहास पौराणिक है. इस व्रत के बारे में महर्षि वेदव्यास ने पांडवों को बताया था. इसीलिए पौराणिक मान्यता यही है कि इस एकादशी का व्रत करके साल की बाकी एकादशी के व्रत का पुण्य पाया जा सकता है. ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी कहा जाता है. भीम ने एक मात्र इसी उपवास को रक्खा था और मूर्छित हो गए थे , इसको भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है. इस दिन बिना जल के उपवास रहने से साल की सारी एकादशियों का पुण्य फल प्राप्त हो जाता है.
प्रार्थना हो स्वीकार में आज बात गंगा दशहरा की. गंगा दशहरा वह तिथि जब माँ गंगा ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को धरती पर अवतरित हुईं। इस दिन गंगा में स्नान, दान और माँ गंगा की पूजा का विशेष महत्व है, जिससे पापों का नाश होता है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है; शास्त्र कहते हैं, 'गंगा गंगेती योर ब्रुयाद योजना नाम सतईरती', अर्थात सौ योजन दूर से भी गंगा का नाम लेने से गंगा स्नान का फल मिलता है। कार्यक्रम में ऋषि भागीरथ द्वारा गंगा को पृथ्वी पर लाने की कथा, भगवान शिव द्वारा उन्हें जटाओं में धारण करने का वृत्तांत और यदि गंगा तट पर जाना संभव न हो तो घर पर ही पूजन और स्नान की विधि भी बताई गई है।