भारत में सावन मास में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व है. इस यात्रा में भक्त कंधे पर कांवड़ रखकर भगवान शिव का जलाभिषेक करने के लिए निकलते हैं. ऐसी मान्यता है कि जो भक्त सावन में कांवड़ उठाकर शिव का जलाभिषेक करते हैं, उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. धर्म ग्रंथों और पुराणों के अनुसार, गंगा का दर्शन, गंगा का स्पर्श, गंगा जल से मुख का मज्जन, गंगा जल का पान और गंगाजल में स्नान पांच प्रकार से मुक्ति, भक्ति और वैराग्य प्राप्त कराता है. वेद और पुराण कहते हैं कि 'दरस परस मजन रूपाना हरई पाप कह वेद पुराना'. कांवड़ यात्रा की परंपरा अनादि काल से चली आ रही है. इसका आरंभ त्रेता युग से माना जाता है, जिसे श्रवण कुमार, भगवान परशुराम, रावण और भगवान राम से भी जोड़ा जाता है. कांवड़ यात्रा के दौरान कुछ नियमों का पालन करना आवश्यक है, जैसे कांवड़ के जल को भूमि पर न रखना, एक समय भोजन करना, शिव मंत्रों का जाप करना, सात्विक भोजन का सेवन करना, भगवा वस्त्र धारण करना और किसी भी प्रकार के नशे से दूर रहना. कांवड़ यात्रा से तमाम समस्याएं दूर होती हैं, मनोकामनाएं पूरी होती हैं और अकाल मृत्यु का भय नहीं होता. जो भक्त कांवड़ यात्रा करने में सक्षम नहीं हैं, वे घर पर ही लौटे में गंगाजल भरकर शिव मंदिर की 27 बार परिक्रमा कर सकते हैं और नंगे पैर पीले या नारंगी वस्त्र धारण कर शिवलिंग पर जल अर्पित कर सकते हैं. गंगाजल को घर के हर कोने में छिड़कने से भी लाभ मिलता है.