गुड न्यूज़ टुडे के विशेष कार्यक्रम 'प्रार्थना हो स्वीकार' में सुनीता राय शर्मा के साथ जानिए बैकुंठ चतुर्दशी का महत्व, जिस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की संयुक्त उपासना की जाती है. महाभारत काल में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को इसका महत्व समझाते हुए कहा था, 'उस समय मैं गौरव कान खा रहा था, जिससे मेरी बुद्धि दुर्बल हो गई थी' लेकिन अर्जुन के बाणों से दूषित रक्त निकल जाने के बाद उन्होंने विष्णु सहस्त्रनाम का उपदेश दिया. यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है. मान्यता है कि देवशयनी एकादशी से चातुर्मास तक भगवान विष्णु के योग निद्रा में जाने पर भगवान शिव सृष्टि का संचालन करते हैं और बैकुंठ चतुर्दशी के दिन ही वे यह दायित्व पुनः श्रीहरि को सौंपते हैं. इस दिन व्रत, पूजन और दीपदान करने से व्यक्ति के लिए सीधे बैकुंठ के द्वार खुल जाते हैं और उसे पापों से मुक्ति मिलती है. कार्यक्रम में विष्णु सहस्त्रनाम के पाठ की महिमा और जीवन की बाधाओं को दूर करने वाले महाउपायों पर भी चर्चा की गई.