गंगोत्री से निकलकर गंगासागर में मिलने तक मां गंगा की यात्रा सिर्फ सागर में विलय होने तक नहीं है.बल्कि ये लोगों की आस्था, संस्कृति और विरासत की ऐसी अविरल धारा है. जिसकी एक डुबकी सदियों से लोगों के पाप धो रही है. उन्हें पावन कर ही है. अपने इस सफर में गंगा शहरों को छू कर उसे तीर्थ बना देती हैं. मां गंगा जिनका अवतरण एक राजा के पुत्रों के उद्धार के लिए हुआ. उसी तिथि का उत्सव गंगा सप्तमी के रुप में मनाया जाता है. मां गंगा के इसी चमत्कारी शक्ति के बारे में शास्त्र कहता है कि वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मां गंगा शिव के जटाओं में अवतरित हुई. इसलिए इस दिन को 'गंगा सप्तमी' के रूप में मनाया जाता है.