इस वर्ष पितृपक्ष की शुरुआत चंद्र ग्रहण से हुई और समापन सूर्य ग्रहण के साथ होगा। भाद्रपद पूर्णिमा से अश्विन अमावस्या तक पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध किया जाता है। मान्यता है कि इससे पूर्वज प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं और परिवार में सुख-समृद्धि आती है। पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए श्रद्धापूर्वक किए गए कार्य को श्राद्ध कहते हैं। इन 16 दिनों में पूर्वज धरती पर आते हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध के लिए प्रयागराज, वाराणसी और गया जैसे स्थान महत्वपूर्ण हैं। बिहार के गया में पिंडदान का विशेष महत्व है, जहाँ प्रधानमंत्री 17 सितंबर को अपनी माँ की आत्मा की शांति के लिए विष्णु पथ मंदिर में पिंडदान करेंगे। पुराणों के अनुसार, गया में भगवान विष्णु पितृदेव के रूप में निवास करते हैं और यहाँ पिंडदान से पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। राजस्थान का पुष्कर सरोवर और हरिद्वार भी पिंडदान के लिए अहम हैं। एक वक्ता के अनुसार, जो श्रद्धापूर्वक अपने पितरों के लिए श्राद्ध करता है, वह अपने 100 पुत्रकूल और 100 मातृकूल का मोक्ष कर लेता है।