
दिल्ली की एक कंस्ट्रक्शन साइट पर दिनभर ईंट-पत्थर ढोने वाले रोहित कुमार की ज़िंदगी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं लगती. 35 साल का यह शख्स दिन में मजदूरी करता है और सुबह-शाम स्टेडियम में पसीना बहाकर मैराथन की तैयारी करता है. यही नहीं, हाल ही में स्पीति घाटी में आयोजित 77 किलोमीटर की मैराथन में रोहित ने दूसरा स्थान हासिल किया है. उनका सपना अब ओलंपिक में भारत के लिए मेडल जीतना है.
ईंट ढोते-ढोते बनी दौड़ने की ताकत
रोहित दिल्ली के अलग-अलग कंस्ट्रक्शन साइट्स पर मजदूरी करते हैं. उनका काम है- सिर पर ईंट रखकर चौथी मंज़िल तक पहुंचाना.
रोहित बताते हैं कि एक दिन में जितनी ईंटें चौथी मंज़िल तक पहुंचा देते हैं, उसी के हिसाब से उनकी दिहाड़ी तय होती है. आमतौर पर उन्हें 1000 से 1200 रुपये रोज़ के मिल जाते हैं.
लेकिन रोहित इसे बोझ नहीं मानते, बल्कि कहते हैं कि यही उनका स्टैमिना ट्रेनिंग है. उनका मानना है कि मजदूरी से न सिर्फ़ घर चलता है बल्कि शरीर भी दौड़ने के लिए और मजबूत होता है.
लॉकडाउन में बदली ज़िंदगी
कोविड लॉकडाउन के दौरान रोहित ने यूट्यूब पर दुनिया भर की मैराथन रेस देखना शुरू किया. तभी उन्हें लगा कि “ये तो मैं भी कर सकता हूँ.” बस, यहीं से उनकी ज़िंदगी ने करवट ली. उन्होंने दौड़ने की प्रैक्टिस शुरू की, डाइट पर ध्यान देना शुरू किया और 2021 से अब तक 100 से ज़्यादा मैराथन में हिस्सा ले चुके हैं.
पिछले 6 महीनों में तो रोहित का प्रदर्शन लगातार शानदार रहा है. वे 7 से ज़्यादा मैराथन में पोडियम तक पहुंचे हैं. स्पीति की कठिन 77 किमी मैराथन में उन्होंने फौजियों के साथ दौड़ लगाई और दूसरा स्थान पाया.
सेना भी हुई प्रभावित
स्पीति मैराथन में जब रोहित ने शानदार प्रदर्शन किया तो वहां मौजूद सेना के अधिकारियों ने भी उनकी मेहनत और जज़्बे को सलाम किया. सेना ने रोहित की मदद करने का फैसला लिया है ताकि वे बेहतर तरीके से अपने सपनों को पूरा कर सकें.
कठोर दिनचर्या और सख्त डाइट
रोहित की दिनचर्या बेहद अनुशासित है. वे रोज़ सुबह 3:30 बजे उठते हैं और 4 बजे तक ग्राउंड पहुंच जाते हैं. सुबह की रनिंग के बाद दिनभर मजदूरी करते हैं और शाम को स्विमिंग व एक्सरसाइज करते हैं.
वे अपना खाना खुद बनाते हैं और डाइट पर कड़ा ध्यान रखते हैं. उनका मानना है कि खिलाड़ी का शरीर ही उसकी सबसे बड़ी पूंजी है.
छूटा मेडिकल कॉलेज, थामा खेलों का रास्ता
कम ही लोग जानते हैं कि रोहित ने किर्गिस्तान से मेडिकल की पढ़ाई शुरू की थी. लेकिन आर्थिक दिक्कतों और पारिवारिक दबाव की वजह से उन्हें बीच में पढ़ाई छोड़नी पड़ी. घरवाले चाहते थे कि वे शादी करें, लेकिन रोहित ने 10 साल का वक्त मांगा और दिल्ली आकर अपने सपनों को बुनना शुरू कर दिया.
पैसों से जूझ रहा चैंपियन
रोहित कहते हैं कि वे महीने में करीब 30,000 रुपये कमाते हैं, लेकिन उसमें से मुश्किल से 2-3 हज़ार ही बचा पाते हैं. बाकी पैसे डाइट और प्रैक्टिस में खर्च हो जाते हैं.
एक खिलाड़ी के लिए जूते बेहद जरूरी होते हैं, लेकिन रोहित बताते हैं कि उनके रनिंग शूज़ की कीमत 25-30 हज़ार रुपये होती है और वे 2-3 मैराथन में ही खराब हो जाते हैं.
रोहित का सपना है कि वे भारत के लिए ओलंपिक में मेडल लाएं. फिलहाल वे क्वालीफाइंग टाइम से 6 मिनट पीछे हैं. उनका कहना है कि अगर सब कुछ सही रहा तो वे एक साल में इस कमी को पूरा कर लेंगे. लेकिन अगर उन्हें लोगों और संस्थाओं का सहयोग मिले तो यह काम वे 6 महीने में ही कर सकते हैं.
“सपना ज़रूर पूरा करूंगा”
रोहित मानते हैं कि मदद की उन्हें बेहद ज़रूरत है. लेकिन चाहे मदद मिले या न मिले, वे रुकने वाले नहीं हैं. उनका साफ कहना है, “मैं हर हाल में तैयारी करूंगा और एक दिन भारत के लिए ओलंपिक मेडल ज़रूर लाऊंगा.”