
हरियाणा के हिसार के समीप 13 किलोमीटर दूर मंगाली गांव सीनियर सेकेंडरी के स्कूल में भारत देश का पहला फुटबॉल सेंटर है, जहां लड़कियां खेल प्रदर्शन करती हैं. इस सेंटर में छोटी से भी बड़ी फुटबॉल खिलाडी रोजाना में अपना दमखम दिखाती हैं. मंगाली फुटबॉल क्लब की खासियत है कि यहां साढे तीन सौ से अधिक लडकियां नेशलन प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले चुकी हैं और 35 से अधिक लड़कियां फुटबॉल में मेडल जीत चुकी हैं और देश की सेना में भर्ती होकर अपना योगदान दे रही है.
350 से अधिक नेशनल खिलाड़ी-
तीस हजार से अधिक आबादी वाले मंगाली गांव की पांच पंचायत की जमीन पर महिला फुटबॉल खिलाड़ी तैयार किए जा रहे हैं. मास्टर मंगाली निवासी नरेंद्र सुबह शाम निशुल्क प्रैक्टिस करवाते हैं. शुरुआत में यहां 7-8 लड़कियों ने फुटबॉल खेलना शुरु किया था और अभी तक कुल मिलाकर सात सौ से अधिक फुटबॉलर तैयार किए चुके हैं. साढ़े तीन से अधिक फुटबॉलर नेशनल स्तर की प्रतियोगिता में मेडल जीत चुकी हैं.
हरियाणा की छोरियां छोरे कम नहीं-
एक हरियाणी कहावत के अनुसार हरियाणा की छोरियां छोरो से कम नहीं है. हरियाणा की लड़कियां खेलो में मेहनत, हौसले, जज्बे से आगे बढ़ रही हैं. इस गांव के लोग भी फुटबाल के प्रति काफी गंभीर हैं. गांव के सरपंच व ग्रामीण खेल में हिस्सा लेने वाली लड़कियों की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. यहां डेढ़ सौ से अधिक महिला फुटबॉल खिलाड़ी लगातार सुबह-शाम दो-दो घंटे प्रैक्टिस करती हैं. देश में यह मंगाली फुटबॉल क्लब एक मिशाल बना हुआ है. गांव के लोग भी अब लड़कियों को खेल में भेजने से झिझकते नहीं हैं. गांव के लोग फुटबॉल खेलने के लिए लड़कियों को प्रोत्साहित करते हैं.
2004 में शुरू हुआ सिलसिला-
मंगाली निवासी मास्टर नरेंद्र के अनुसार गांव में लड़कियां फुटबॉल खेलना नहीं जानती थी. वर्ष (2004) में गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल में फिजिकल एजुकेशन विभाग में बतौर डीपी सुखविंदर कौर की तैनाती हुई. डीपी ने गांव में ऊबड़-खाबड जमीन को अपने सहयोगी बीडीआई कमलेश और सुमित्रा के सहयोग से फुटबाल ग्राउंड में बदल दिया. खेल विभाग से अश्वनी कुमार को यहां तैनात किया गया. अश्वनी कोच लगातार लड़कियों को प्रशिक्षण देना शुरु किया. डीपी सुखविंदर कौर ने गांव में जाकर लडकियों को फुटबॉल मैदान में भेजने के लिए कहने लगी. इस दौरान 10-12 लड़कियां यहां फुटबॉल खेलने को तैयार हुईं. यहां की कुछ लडकियां (2007) में राज्य स्तर पर जीतकर आई तो गांव के लोगों में उत्साह दिखा और लड़कियों को फुटबॉल खेल में भेजना शुरु किया.
यहां पहले कब्रिस्तान था- सुखविंदर कौर
आजकल मोरनी हिल में लेक्चरर के पद पर तैनात सुखविंदर कौर ने बताया कि साल में फुटबॉल ग्राउंड बना हुआ है, यहां पहले कब्रिस्तान होता था और लंबी-लंबी झाड़ियां होती थी. मैदान बनाने के लिए खुदाई की गई तो कब्र निकलनी शुरु हो गई. तब पता चला कि यहां कभी कब्रिस्तान होता था, जो कि काफी मेहनत करके फुटबॉल मैदान में तब्दील किया गया. आज डेढ़ सौ अधिक लडकियां इस मैदान पर प्रैक्टिस करती हैं.
खेलों में लड़कियों का दबदबा-
साल 2007 में पहली बार लड़कियों ने स्टेट चैपियनशिप जीती थी. इसके बाद ग्रामीणों ने बेटियों को ग्राउंड पर भेजना शुरु किया था. आज हर आयु वर्ग में डेढ़ सौ लड़कियां रोजाना प्रैक्टिस करती हैं. इसी गांव में 35 से अधिक लड़कियां फुटबॉल के माध्यम सरकारी नौकरी पा चुकी हैं. आठ महिला फुटबॉल खिलाडी विभिन्न आयु वर्ग में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल चुकी हैं. नेहा और काजल वर्ल्ड कप में खेल चुकी हैं.
ये भी पढ़ें: