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10 किलोमीटर की दूरी तय कर स्टेडियम में रोज सुबह-शाम प्रैक्टिस कर रही हैं ये लड़कियां...सीख रही बॉक्सिंग के पंच

नन्ही बेटियों के बॉक्सिंग के पंच देखकर आप भी दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाएगें. अगर कर्ण स्टेडियम जैसी सुविधाए बेटियों को ग्रामीण अंचल में मिल जाए तो इन जैसी कितनी जिले की बेटियां अपने सपने पूरे कर देश का नाम रोशन कर सकती हैं.

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हाइलाइट्स
  • देश का नाम रोशन करना है सपना

  • रोज तय करती है 10 किलोमीटर का सफर

हरियाणा के करनाल जिले में कई जूनियर मेरिकाम गांव से रोजाना 10 किलोमीटर का सफर तय करके सुबह शाम बॉक्सिंग के पंच सीखने के लिए पहुँच रही बॉक्सिंग के रिंग करनाल में, देश के लिए मेडल जीतना इन बेटियों का सपना, प्रेक्टिस करते समय इनके पंच की आवाज सुनकर आप भी रह जाएंगे दंग,

सपने देखने की सभी को आजादी है और उसे पूरा करने के लिए जी तोड़ मेहनत करनी पड़ती है. हम बात कर रहे हैं जिला करनाल में बाक्सिंग सीखने वाली नए खिलाड़ियों की. सुबह जल्दी उठकर कर दस किलोमीटर का सफर तय कर स्टेडियम पहुंचना और प्रैक्टिस के बाद वापसी और स्कूल जाना. फिर दोपहर बाद इतना ही सफर तय कर पसीना बहाते हुए अभ्यास में कूद पड़ना. ये है इन लड़कियों की दिनचर्या.

देश का नाम रोशन करना है सपना
इंडियन बॉक्सर मेरिकाम और लवलीन बोरगोहेन की तरह देश के लिए गोल्ड मेडल लाने और देश का नाम रोशन करने के लिए रोजाना गांव से 10 किलोमीटर दूर से सुबह शाम बॉक्सिंग के पंच सीखने के लिए करनाल के कर्ण स्टेडियम में पहुंच रही है. यहां नन्ही बेटियों के बॉक्सिंग के पंच देखकर आप भी दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हो जाएगें. अगर कर्ण स्टेडियम जैसी सुविधाए बेटियों को ग्रामीण अंचल में मिल जाए तो इन जैसी कितनी जिले की बेटियां अपने सपने पूरे कर देश का नाम रोशन कर सकती हैं.

मात्र नौ साल की नन्ही सी जयशम ने अभी से अपने जीवन का लक्ष्य चुन लिया है नन्हीं सी जैसमीन 1 साल से कर्ण स्टेडियम में बॉक्सिंग के पंच सीख रही है. जयशम का कहना है कि उनके जीवन का लक्ष्य मैरी कॉम जैसी बॉक्सर बनना है, जयशम कहती है कि उसको बॉक्सिंग बहुत अच्छी लगती है. उसके माता पिता उसे बहुत सहयोग मिल रहा है. 

रोज तय करती है 10 किलोमीटर का सफर
10 किलोमीटर से सुबह शाम स्टेडियम में अभ्यास करने आती है निकिता, करनाल के गांव चिड़ाव की रहने वाली निकिता का कहना है कि उसका गांव करनाल से 10 किलोमीटर दूरी पर है. गांव में सुविधा न होने पर वह पिछले दो साल से कर्ण स्टेडियम में अभ्यास करने आती है. निकिता कहती है कि जैसे हाल ही में लवलीन बोरगोहेन देश के लिए मेडल लाई है वह भी देश के लिए मेडल लाना चाहती है और देश का नाम रोशन करना चाहती है. माता पिता का उन्हें पूरा सहयोग मिल रहा है जिससे वह सुबह शाम अभ्यास के लिए 10 किलोमीटर दूर आती हैं. वह अपने माता पिता का नाम रोशन करना चाहती है.

कई सालों से कर रही अभ्यास
स्टेडियम में आस पास की 40 लड़कियां बॉक्सीग के पंच सीखने कर्ण स्टेडियम आती हैं. बच्चों को बॉक्सीग के पंच सिखा रहे सिनियर खिलड़ी सागर ने बताया कि वह पिछले कई सालों से स्टेडियम में अभ्यास करा रहे हैं. स्टेडियम में आसपास की करीब 40 लड़कियां हर रोज अभ्यास के लिए आती है. सभी लड़कियों को गेम बहुत अच्छा है. उनके कोच यहां पर उन्हें अच्छे से प्रशिक्षण देते हैं. आज के समय भी लड़कियां हर क्षेत्र में लड़कों से बहुत आगे पहुंच गई हैं.

(करनाल से कमल की रिपोर्ट)