
22 अगस्त 2008 की बात है. भारत के लोग टीवी के सामने नजर गड़ाए बैठे थे. बात भी बड़ी थी. बीजिंग ओलंपिक्स के बॉक्सिंग मिडिलवेट वर्ग का क्वार्टर फाइनल मैच था. इस मैच के परिणाम से भारत की झोली में पदक आएगा कि नहीं, ये तय होना था. इक्वाडोर के कार्लोस गंगोरा के सामने खड़े थे विजेंद्र सिंह. शुरुआत से ही आक्रामक तेवर रखते हुए उन्होनें इस मैच में बढ़त बना ली थी. जैसे ही समय खत्म हुआ, टीवी के सामने बैठे लोग ख़ुशी से झूम उठे. विजेंद्र ने 9-4 से यह मैच जीतकर इतिहास रच दिया था और बॉक्सिंग में ओलंपिक मेडल लाने वाले भारत के पहले खिलाड़ी बन गए थे.
पिता हैं ड्राइवर
विजेंदर सिंह बेनीवाल, जिन्हें विजेंदर सिंह के नाम से जाना जाता है, भारत के हरियाणा के जाट हैं. उनका जन्म 29 अक्टूबर 1985 को हरियाणा के भिवानी जिले के कालूवास नामक गाँव में हुआ था. उनके पिता महिपाल सिंह बेनीवाल हरियाणा रोडवेज में बस ड्राइवर हैं और मां कृष्णा देवी गृहिणी हैं. विजेंदर के बड़े भाई, मनोज भी बॉक्सर हैं. विजेंदर ने अपनी प्राथमिक शिक्षा कालूवास के एक स्कूल से पूरी की. इसके बाद वे भिवानी आए और भिवानी के हैप्पी सीनियर सेकेंडरी स्कूल में दाखिला लिया. अपने माध्यमिक विद्यालय के दिनों में उन्होंने मुक्केबाजी में गहरी रुचि ली और अपने बड़े भाई मनोज के नक्शेकदम पर चलते हुए, गंभीरता से मुक्केबाजी सीखना शुरू कर दिया.
नौकरी के लिए शुरू की बॉक्सिंग
विजेंदर और उनके बड़े भाई मनोज ने प्रसिद्ध स्थानीय भिवानी बॉक्सिंग क्लब में अपना नामांकन कराया. 1990 में बॉक्सर राज कुमार सांगवान को अर्जुन पुरस्कार मिला. इससे भारत में बॉक्सिंग का क्रेज कई गुना बढ़ गया। मनोज ने पहले ही खुद को एक मुक्केबाज के रूप में स्थापित कर लिया था और यहां तक कि 1998 में अपनी मुक्केबाजी साख के साथ भारतीय सेना में नौकरी हासिल करने में भी सफल रहे थे. अपने बड़े भाई से वित्तीय सहायता लेकर और अपने माता-पिता के सपोर्ट के साथ, विजेंदर ने बॉक्सिंग प्रशिक्षण को जारी रखा और इसे न केवल जूनून के रूप में बल्कि करियर विकल्प के रूप में भी देखने लगे.
2003 में बने ऑल इंडिया यूथ बॉक्सिंग चैंपियन
विजेंदर सिंह भिवानी बॉक्सिंग क्लब में अभ्यास के दौरान राष्ट्रीय स्तर के पूर्व मुक्केबाज जगदीश सिंह के संपर्क में आए. 1997 में, अपने पहले सब-जूनियर राष्ट्रीय टूर्नामेंट में उन्होंने रजत पदक जीता. इसके बाद उन्होंने साल 2000 में नेशनल चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता. 2003 में, वह ऑल इंडिया यूथ बॉक्सिंग चैंपियन बने. उनके करियर का महत्वपूर्ण मोड़ 2003 के एफ्रो-एशियाई खेलों के लिए उनका चयन था. हालांकि उस समय विजेंदर सिंह जूनियर बॉक्सर थे, फिर भी उन्हें सेलेक्शन ट्रायल के लिए चुना गया और वह फाइनल मीट के लिए भी सेलेक्ट हुए. विजेंदर ने अंततः 2003 में हैदराबाद में आयोजित एफ्रो-एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता इसके बाद उन्होंने 2006 के राष्ट्रमंडल खेलों में, सेमीफाइनल में इंग्लैंड के नील पर्किन्स को हराकर कांस्य पदक जीता.
कांस्य पदक जीतकर बीजिंग के लिए किया क्वालीफाई
फिर 2006 में दोहा में एशियाई खेलों में, विजेंदर सिंह ने मिडिलवेट वर्ग में भाग लेने का फैसला किया. इस टूर्नामेंट में उन्होंने कजाकिस्तान के बख्तियार अर्तायेव के खिलाफ सेमीफाइनल मैच हारकर कांस्य पदक जीता था. उस टूर्नामेंट में भाग लेना और पदक जीतना विजेंद्र के लिए महत्वपूर्ण था क्योंकि इससे उन्हें 2008 के बीजिंग ग्रीष्मकालीन ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने में मदद मिली. प्रतियोगिता में उनकी भागीदारी पीठ की चोट के कारण मुश्किल थी, लेकिन वो समय पर ठीक हो गए.
ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले भारतीय मुक्केबाज
विजेंदर सिंह ने जर्मनी में 2008 बीजिंग ओलंपिक के लिए तैयारी की. उन्होंने प्रेसिडेंट्स कप बॉक्सिंग टूर्नामेंट में भाग लिया, जिसे ओलंपिक खेलों के लिए ड्रेस रिहर्सल के रूप में देखा जाता है और अच्छा प्रदर्शन किया. 2008 के बीजिंग ओलंपिक में, विजेंदर ने मिडिलवेट वर्ग में भाग लिया और 22 अगस्त 2008 को सेमीफाइनल में क्यूबा के एमिलियो कोरिया से हारने के बाद कांस्य पदक साझा किया. इस जीत ने विजेंदर को ओलंपिक पदक जीतने वाले पहले भारतीय मुक्केबाज बना दिया.
कॉमनवेल्थ बॉक्सिंग चैंपियनशिप 2010 में जीता गोल्ड
2009 में, विजेंदर ने वर्ल्ड एमेच्योर बॉक्सिंग चैंपियनशिप में एक और कांस्य पदक जीता और उसी वर्ष इंटरनेशनल बॉक्सिंग एसोसिएशन मिडिलवेट रैंकिंग में नंबर 1 रैंक पर चढ़ गए. 2010 में, कॉमनवेल्थ बॉक्सिंग चैंपियनशिप नई दिल्ली, भारत में आयोजित की गई थी. विजेंदर ने वहां गोल्ड मेडल जीता. उसी वर्ष राष्ट्रमंडल खेल भी नई दिल्ली में आयोजित किए गए थे, लेकिन इस प्रतियोगिता में विजेंदर सिंह विवादास्पद परिस्थितियों में सेमीफाइनल में हार गए. उन्हें कांस्य पदक विजेता के टैग से संतोष करना पड़ा.
अभिनय में आजमाया हाथ
लेकिन 2010 में चीन के ग्वांगझू में हुए एशियाई खेलों में विजेंदर सिंह ने मिडिलवेट वर्ग में बिना किसी विवाद के स्वर्ण पदक जीतकर सभी भारतीयों के दिलों में अपनी जगह वापस पा ली. इसके बाद, 2012 में लंदन ओलंपिक में, विजेंदर पदक जीतने में असफल रहे, हालांकि वे क्वार्टर फाइनल तक पहुंचने में सफल रहे थे. इसके बाद उन्होंने ग्लासगो, स्कॉटलैंड में आयोजित 2014 राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीता. उसी वर्ष, विजेंदर सिंह ने अभिनय में हाथ आजमाने का असफल प्रयास किया. उनकी पहली बॉलीवुड हिंदी फिल्म 'फगली' ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा दिया था.
पेशेवर मुक्केबाज बनने के बाद अब तक ऑल-विन का है रिकॉर्ड
17 मई 2011 को विजेंदर सिंह ने अर्चना सिंह से शादी की. उनका एक बेटा है जिसका नाम अर्बीर सिंह है. जून 2015 में, विजेंदर पेशेवर बनने वाले पहले भारतीय मुक्केबाज बने. पेशेवर बनने के बाद से उनका अब तक का ऑल-विन रिकॉर्ड है. 2009 में, विजेंदर सिंह को भारत का सर्वोच्च खेल पुरस्कार, राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार मिला. 2010 में, उन्हें भारतीय खेलों में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'पद्म श्री' से भी सम्मानित किया गया था. विजेंदर सिंह ओलंपिक में पदक जीतने वाले पहले भारतीय मुक्केबाज हैं और उनकी जीत ने कई भारतीय बॉक्सरों को प्रेरणा दी.