
नासा-इसरो सिन्थेटिक अपर्चर रडार (NISAR) सैटलाइट नासा और इसरो का एक संयुक्त मिशन है. दोनों स्पेस एजेंसियों ने साथ मिलकर इस मिशन को विकसित किया है. निसार दुनिया की पहला रडार सैटलाइट है जो अंतरिक्ष के पृथ्वी को व्यवस्थित रूप से मैप करेगा. यह पहला ऐसा सैटलाइट है जो दोहरे रडार बैंड (L-बैंड और S-बैंड) का उपयोग करता है. ये बैंड क्या हैं, यह सैटलाइट कब लॉन्च होगा और अंतरिक्ष में जाकर पृथ्वी के काम कैसे आएगा, आइए समझते हैं.
निसार सैटलाइट लॉन्च : कब, कहां, कैसे
निसार का प्रक्षेपण 30 जुलाई 2025 को शाम 5:40 बजे निर्धारित है. यह आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में मौजूद सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च होगा. इसरो का जियोसिंक्रोनस सैटलाइट लॉन्च व्हीकल मार्क II (GSLV Mk II) इसे अंतरिक्ष में लेकर जाएगा. अंतरिक्ष में पहुंचने के बाद यह सैटलाइट निम्न पृथ्वी कक्षा (Low Earth Orbit - LEO) में घूमेगा. यह सैटलाइट कम से कम तीन सालों तक अंतरिक्ष में रहेगी.
नासा के लिए एल-बैंड तीन सालों तक और इसरो के लिए ए-बैंड पांच सालों तक उपयोगी होगा. मूल रूप से यह सैटलाइट लॉन्च मार्च 2024 के लिए निर्धारित था, लेकिन हार्डवेयर अपग्रेड और अतिरिक्त परीक्षण के कारण इसे स्थगित कर जुलाई 2025 तक टाल दिया गया. सैटलाइट का निर्माण और एकीकरण जनवरी 2024 में पूरा हो चुका था, और यह अंतिम परीक्षण चरण में है.
क्यों खास है यह सैटलाइट?
1. दोहरे रडार सिस्टम :
- L-बैंड रडार (1.25 GHz, 24 सेमी तरंगदैर्ध्य) : यह रडार नासा ने दिया है. यह घने जंगलों और मिट्टी में देख सकता है जो ज्वालामुखी, भूकंप क्षेत्रों और बायोमास निगरानी के लिए उपयोगी है.
- S-बैंड रडार (3.20 GHz, 9.3 सेमी तरंगदैर्ध्य) : यह रडार इसरो ने खुद विकसित किया है. यह रडार हाई-रिज़ॉल्यूशन सतह इमेजिंग के लिए उपयुक्त है. खास तौर से शहरी और भू-आकृति विश्लेषण (Topography Analysis) में.
- यह पहला सैटलाइट है जो एक साथ दो रडार आवृत्तियों का उपयोग करता है. जिससे यह अलग-अलग तरह की पर्यावरणीय और भूवैज्ञानिक परिस्थितियों की निगरानी कर सकता है.
2. स्वीप SAR तकनीक :
- NISAR स्वीप सिन्थेटिक अपर्चर रडार (SAR) तकनीक का उपयोग करता है, जो बड़े क्षेत्र को हाई रिज़ॉल्यूशन (5-10 मीटर) के साथ स्कैन करके बेहद साफ तस्वीरें ले सकता है.
- यह बादलों और अंधेरे में भी डेटा एकत्र कर सकता है, जिससे 24/7 अवलोकन संभव है.
3. लागत : मिशन की कुल लागत लगभग 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जिसमें इसरो का हिस्सा 788 करोड़ (लगभग 9.3 करोड़ डॉलर) और नासा का हिस्सा 1.118 बिलियन डॉलर है. यह इसे विश्व का सबसे महंगा पृथ्वी-अवलोकन सैटलाइट बनाता है.
अंतरिक्ष में क्यों भेजा गया निसार?
NISAR का मुख्य लक्ष्य पृथ्वी की सतह, पर्यावरण और प्राकृतिक प्रक्रियाओं की निगरानी करना है. यह सैटलाइट हर 12 दिनों में पूरे ग्लोब को स्कैन करेगा, जिससे सतह के परिवर्तनों का हाई-फ्रिक्वेंसी डेटा मिल सकेगा. यह भू-आकृति, बायोमास और सतह की ऊंचाई को 5-10 मीटर रिज़ॉल्यूशन के साथ मापेगा.
इसके अलावा यह सैटलाइट अंतरिक्ष में भूकंप, सुनामी, ज्वालामुखी विस्फोट, और भूस्खलन जैसे खतरों को समझेगी. यह सैटलाइट पृथ्वी की सतह पर हुए कुछ सेंटीमीटर के बदलाव भी भांप सकती है इसलिए यह भूकंप से पहले, दौरान और बाद में सतह के विकृति (deformation) को मापने में सहायक होगी. इस सैटलाइट का डेटा भूकंप और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम करने में मददगार होगा.
इसके अलावा यह सैटलाइट क्लाइमेट चेंज के प्रभावों को समझने, खेती-किसानी के लिए मिट्टी का विश्लेषण करने और बुनियादी ढांचे की निगरानी करने के भी काम आएगा. कुल मिलाकर NISAR एक ऐसा सैटलाइट है जो पृथ्वी की सतह और पर्यावरण की निगरानी में अभूतपूर्व योगदान देगा. आपदा प्रबंधन से लेकर संसाधन प्रबंधन तक, निसार का हाई-रिज़ॉल्यूशन कई कार्यों को बेहतर तरीके से करने के लिए मददगार होगा.