
पंजाब के होशियारपुर में माउंट कार्मल स्कूल के आठवीं कक्षा के 12 साल के छात्र अंचित राय ने पैदल चलने से बिजली बनाने की तकनीक तैयार की है. न्यू मॉडल टाउन निवासी अंचित ने पीजोइलेक्ट्रिक सेंसर की मदद से ऐसी टाइलें बनाई हैं, जिसपर चलने से बिजली बनती है. इस बिजली से मोबाइल, टॉर्च जैसे छोटे डिवाइस चार्ज किए जा सकते हैं. अंचित का यह वर्किंग मॉडल अब राष्ट्रीय बाल विज्ञान कांग्रेस में में राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित होगा. अंचित ने बताया कि इस तकनीक को पीजोइलेक्ट्रोसिटी कहा जाता है. इसमें खास तरह के क्रिस्टल या सिरेमिक मटीरियल पर दबाव पड़ने से बिजली बनती है.
टाइल्स पर चलने से पैदा होगी बिजली-
जब कोई व्यक्ति इन टाइलों पर चलता है, तो पैरों से पड़ने वाला दबाव बिजली में बदल जाता है. यह बिजली एक छोटे पावर बैंक में जमा होती है. बाद में इसका उपयोग मोबाइल, टॉर्च या माइक्रो कंट्रोलर जैसे उपकरणों को चार्ज करने में किया जा सकता है. टाइल्स के नीचे लगे सेंसर पर दबाव पड़ते ही वाइब्रेशन होता है, जो ऊर्जा में बदल जाता है, इससे ट्रैफिक लाइट्स भी चल सकती है.
प्रोफेसर हैं अंचित की मां-
अंचित के पिता अनुपम राय सोनालीका इंटरनेशनल में चीफ मैनेजर हैं. मां डॉ. चेतना शर्मा डीएवी बीएड कॉलेज में में प्रोफेसर हैं. अंचित राय ने अपने घर के एक कमरे को प्रयोगशाला बना लिया है. स्कूल से से लौटते ही वह साइंस से संबंधित कई मॉडल पर काम करता है. उसने बताया कि यह तकनीक ट्रैफिक सिग्नल और स्ट्रीट लाइट को भी चला सकती है. सड़क पर रोजाना लाखों लोग चलते हैं. टाइ टाइल्स के नीचे लगे सेंसर पर दबाव पड़ते ही वाइब्रेशन होता है, जो ऊर्जा में बदल जाता है. इसमें बैटरी की जरूरत नहीं होती, जिससे खर्च भी घटता है. अंचित ने बताया कि यह विचार उसे पार्क में आया. वहां कुछ लाइटें बिजली से और कुछ सोलर पैनल से चल रही थीं. अंचित ने सोचा कि क्या कोई और बेहतर तरीका हो सकता है. फिर उसने पीजोइलेक्ट्रिक तकनीक पर काम शुरू किया. इसमें पीजेटी जैसे खास पदार्थ दबाव पड़ने पर बिजली बनाते हैं. एक-एक कदम से थोड़ी बिजली बनती है, लेकिन हजारों लोग चलें तो काफी बिजली पावर बैंक में इकट्ठा हो जाती है.
एक कदम चलने से कितनी बिजली बनती है?
अंचित राय ने बताया कि परीक्षणों में पता चला कि एक कदम से 2 से 5 जूल बिजली बनती है. यह भीड़ वाले इलाकों में कई लाइटें पूरी रात जला सकती है. इस तकनीक का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें बाहरी बिजली की जरूरत नहीं होती. इससे बिजली का खर्च घटता है. यह पूरी तरह प्रदूषण मुक्त है। इसे चलाने के लिए किसी ईंधन की जरूरत नहीं होती.
(सुनील कुमार की रिपोर्ट)
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