
मां और बच्चे का रिश्ता इस दुनिया का सबसे अनमोल बंधन होता है. लेकिन डेनमार्क पुलिस ने महज़ एक टेस्ट के आधार पर यह फैसला कर लिया कि एक घंटे पहले जन्मे नवजात की मां उसे रखने के लायक नहीं है. इवाना निकोलिन नाम की महिला अपनी बेटी के जन्म के बाद उसे नज़र भरकर देख भी नहीं सकी थी कि नगरपालिका ने उसे फॉस्टर केयर में भेज दिया. लेकिन यह कदम क्यों उठाया गया और यह क्रूर कानून क्या है? आइए डालते हैं नज़र.
क्या है डेनमार्क का पेरेंटिंग कॉम्पिटेंसी टेस्ट?
डेनमार्क में कोई व्यक्ति बच्चा संभालने के लायक है या नहीं, यह फैसला पेरेंटिंग कॉम्पिटेंसी टेस्ट (Forældrekompetence-undersøgelse) के जरिए किया जाता है. इस टेस्ट को बेहद गंभीर मामलों के लिए शुरू किया गया था. यह टेस्ट ऐसे भी बेहद विवादास्पद था, लेकिन यह कई पैमानों पर ग्रीनलैंड के इनुइट लोगों के खिलाफ पक्षपात भरा पाया गया.
इनुइट ग्रीनलैंड में रहने वाले स्वदेशी लोग हैं और सामाजिक रूप से डेनमार्क के लोगों से काफी अलग होते हैं. डेनिश इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन राइट्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, "ये टेस्ट अनुपयुक्त हैं क्योंकि ये लक्षित समूह के लिए तैयार नहीं किए गए हैं. ग्रीनलैंड के माता-पिता के इस टेस्ट में कम अंक आने के आसार ज्यादा होते हैं."
इसकी वजह यह है कि यह टेस्ट डेनमार्क की संस्कृति और समाज को ध्यान में रखकर बनाया गया है और इनुइट लोग इस सांचे में फिट नहीं बैठते. ज़ाहिर है, एक समाज के टेस्ट पर हर समाज के लोगों का खरा उतरना तर्कसंगत नहीं. एक रिपोर्ट के अनुसार, इस टेस्ट की वजह से ग्रीनलैंड में जन्मे सात प्रतिशत बच्चे अनाथालयों में डाल दिए जाते हैं, जबकि डेनमार्क के सिर्फ एक प्रतिशत बच्चों के साथ ही ऐसा होता है.
इवाना के केस में क्यों उठा विवाद?
दरअसल इस टेस्ट और नीति की आलोचना होने के बाद ग्रीनलैंड के इनुइट लोगों के लिए इस टेस्ट को बैन कर दिया गया था. लेकिन इवाना निकोलिन के साथ फिर भी इस टेस्ट को अंजाम दिया गया. द गार्जियन की एक रिपोर्ट अधिकारियों के हवाले से बताती है कि इवाना की टेस्टिंग अप्रैल में ही शुरू हो गई थी, जबकि इस टेस्ट पर बैन मई में लगा. नगरपालिका ने यह भी दलील दी कि वह 'पूरी तरह से' इनुइट नहीं थीं इसलिए यह बैन उनपर लागू नहीं होता.
नगरपालिका ने यह दलील भी दी कि इवाना के पिता ने बचपन में उनका यौन शोषण किया था, इसलिए इस 'ट्रॉमा' की वजह से उनकी बेटी को उनके साथ नहीं छोड़ा जा सकता. जन्म के महज़ एक घंटे के बाद इवाना की बेटी एवियाजा-लूना को उनसे दूर कर दिया गया. इसके बाद उन्हें सिर्फ एक घंटे के लिए ही अपनी बेटी से मिलने दिया गया है. इवाना कहती हैं, "मैं लेबर में नहीं जाना चाहती थी क्योंकि मुझे पता था आगे क्या होने वाला है."
इवाना के लिए सड़कों पर उतरे लोग
ग्रीनलैंड, आइसलैंड, डेनमार्क और अन्य जगहों पर कार्यकर्ताओं ने विरोध प्रदर्शन आयोजित किए हैं. रेक्जाविक स्थित डेनिश दूतावास के बाहर प्रदर्शन की व्यवस्था करने में मदद कर रही दीदा पिपालुक जेन्सेन ने द गार्जियन को बताया: "नगरपालिका ने उनकी बेटी को हटाने का एक कारण इवाना के जीवन में पहले हुए आघात को बताया है. इवाना को किसी ऐसी चीज़ के लिए सज़ा देना बहुत गलत लगता है जिसके लिए वह ज़िम्मेदार नहीं है."
डेनमार्क में इनुइट माता-पिताओं का समर्थन करने वाले संगठन फोरेनिंगेन एमएपीआई की प्रमुख लैला बर्टेलसन ने मंत्री को पत्र लिखकर कार्रवाई का आग्रह किया है. उन्होंने लिखा, "यहां हम बच्चे और मां दोनों की विफलता का सामना कर रहे हैं, जिसके लिए तत्काल राजनीतिक कार्रवाई की आवश्यकता है."
होजे-तास्त्रुप नगरपालिका ने गोपनीयता का हवाला देते हुए मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया है, लेकिन बाल एवं युवा सेवाओं की निदेशक, आन्या क्रोग मंगेज़ी ने कहा कि नगरपालिका ने मामले से निपटने के अपने तरीके की समीक्षा की है.