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ट्रंप ने रोकी अयातुल्ला अली खुमैनी की हत्या की साजिश! जानें कौन है ईरान का ये सुप्रीम लीडर, भारत के एक छोटे से गांव से है कनेक्शन

खुमैनी के पूर्वज भारत क्यों आए, इस पर इतिहासकारों में मतभेद हैं. कुछ का मानना है कि वे शिया धर्म के प्रचार के लिए आए. 17वीं और 18वीं सदी में कई ईरानी शिया विद्वान लखनऊ, बाराबंकी, और हैदराबाद जैसे शहरों में आए, जहां शिया नवाबों का प्रभाव था. ये नवाब विद्वानों को मस्जिदों और इमामबाड़ों में संरक्षण देते थे.

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क्या आप जानते हैं कि ईरान की इस्लामिक क्रांति के नायक अयातुल्ला रुहोल्लाह खुमैनी की जड़ें भारत के एक छोटे से गांव से जुड़ी हैं? जी हां, उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले का किंटूर गांव वह जगह है, जहां खुमैनी के पूर्वज रहा करते थे! इजरायल और ईरान के बीच चल रही तनातनी के बीच यह कहानी न सिर्फ हैरान करती है, बल्कि भारत और ईरान के गहरे ऐतिहासिक रिश्तों को भी उजागर करती है. जब इजरायल के हमलों और ईरान की जवाबी कार्रवाई ने दुनिया को दहला दिया, तब खुमैनी की इस भारतीय कनेक्शन ने सबका ध्यान खींच लिया. 

इजरायल-ईरान तनाव और खुमैनी की हत्या की साजिश
इजरायल और ईरान के बीच युद्ध की आग भड़क रही है. हाल ही में इजरायल ने तेहरान पर हवाई हमले किए, जिसमें ईरान की इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के एक कमांडर समेत कई लोग मारे गए. लेकिन सबसे बड़ा खुलासा यह है कि इजरायल ने ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला  अली खुमैनी की हत्या की योजना बनाई थी, जिसे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कथित तौर पर रोक दिया.

इस खबर ने दुनिया भर में हड़कंप मचा दिया. अब सवाल यह है कि अगर खुमैनी को कुछ होता, तो ईरान की सत्ता कौन संभालता? विशेषज्ञों का कहना है कि खुमैनी का बेटा उनका उत्तराधिकारी नहीं बनेगा, क्योंकि ईरानी सियासत में परिवारवाद को जगह नहीं दी जाती. लेकिन इस तनाव के बीच, खुमैनी की भारतीय जड़ों की कहानी ने एक नया मोड़ ले लिया.

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बाराबंकी का किंटूर गांव
अयातुल्ला  रुहोल्लाह खुमैनी, जिन्होंने 1979 में ईरानी क्रांति का नेतृत्व कर शाह मुहम्मद रजा पहलवी की तानाशाही को उखाड़ फेंका, सिर्फ ईरान के हीरो नहीं थे. उनकी जड़ें भारत के बाराबंकी जिले के किंटूर गांव से जुड़ी हैं. उनके दादा, सैयद अहमद मुसावी, 19वीं सदी की शुरुआत में किंटूर में पैदा हुए थे. सैयद अहमद ने अपने नाम के साथ 'हिंदी' जोड़कर अपनी भारतीय पहचान को गर्व से अपनाया. उनका परिवार मूल रूप से ईरानी था, जो 18वीं सदी के अंत में भारत आया. 1834 में सैयद अहमद धार्मिक यात्रा के लिए इराक गए और फिर ईरान के खोमैन शहर में बस गए, जहां से खुमैनी का खानदान आगे बढ़ा. किंटूर गांव में आज भी खुमैनी के रिश्तेदार रहते हैं. 

भारत क्यों आए खुमैनी के पूर्वज?
खुमैनी के पूर्वज भारत क्यों आए, इस पर इतिहासकारों में मतभेद हैं. कुछ का मानना है कि वे शिया धर्म के प्रचार के लिए आए. 17वीं और 18वीं सदी में कई ईरानी शिया विद्वान लखनऊ, बाराबंकी, और हैदराबाद जैसे शहरों में आए, जहां शिया नवाबों का प्रभाव था. ये नवाब विद्वानों को मस्जिदों और इमामबाड़ों में संरक्षण देते थे. काबिल विद्वानों को ऊंचे पद और सम्मान मिलता था. सैयद अहमद मुसावी भी इसी सिलसिले में किंटूर पहुंचे और यहीं बस गए.

दूसरी थ्योरी यह है कि उस समय ईरान में सत्ता संघर्ष के कारण कई विद्वान भारत आए, जहां उन्हें सुरक्षित और सम्मानजनक जिंदगी मिल सकती थी. किंटूर उस समय शिया विद्वानों का केंद्र था, और मुसावी ने यहीं अपनी जिंदगी शुरू की. बाद में वे धार्मिक यात्रा पर इराक गए और फिर ईरान में बस गए, जहां उनका परिवार बढ़ा.

खुमैनी पर 'भारतीय' होने का तंज
1970 के दशक में जब खुमैनी का प्रभाव ईरान में बढ़ रहा था, तो शाह सरकार ने उन्हें बदनाम करने की हर कोशिश की. 1978 में शाह समर्थित अखबार इत्तेलात ने खुमैनी को 'भारतीय मुल्ला' कहकर उनकी धार्मिक वैधता पर सवाल उठाए. उन्हें विदेशी और ब्रिटिश उपनिवेशवाद का पिट्ठू बताया गया. लेकिन यह साजिश उलटी पड़ गई. ईरानी जनता ने इसे अपनी क्रांति पर हमला माना और सड़कों पर उतर आई. खुमैनी ने निर्वासन में रहते हुए लेख लिखकर साफ किया कि उनके पूर्वज भारत में धर्म प्रचार के लिए गए थे, लेकिन उनकी जड़ें ईरानी हैं. इस जवाब ने शाह सरकार की साख को और कमजोर कर दिया.

नतीजा? 1979 में क्रांति हुई, और शाह की सत्ता उखड़ गई. खुमैनी ईरान के सुप्रीम लीडर बन गए. उनकी मृत्यु तक वे सत्ता में रहे, और उनके बाद उनके शिष्य अयातुल्ला अली खुमैनी ने कमान संभाली.

खुमैनी की कहानी भारत और ईरान के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक रिश्तों की गहराई को दिखाती है. डॉ. शाहनवाज अहमद, जो भारत-ईरान संबंधों के जानकार हैं, कहते हैं, "खुमैनी की भारतीय जड़ें साझा आस्था और इतिहास का प्रतीक हैं." खुमैनी के दादा इस्लामी पुनर्जनन के समर्थक थे, और उनकी विचारधारा ने खुमैनी को क्रांति के लिए प्रेरित किया.