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Representative Image अत्याधुनिक तकनीक और औद्योगिक ताकत के दम पर दुनिया में अलग पहचान बनाने वाला जापान आज एक बड़ी समस्या से जूझ रहा है. भले ही अमेरिका जापान को सी-5 जैसे रणनीतिक समूहों में शामिल करने की संभावनाएं तलाश रहा हो, लेकिन देश के भीतर घटती जनसंख्या उसकी सबसे बड़ी चिंता बन चुकी है. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, बीते एक साल में जापान की आबादी में करीब 9 लाख लोगों की कमी दर्ज की गई है. यानी जन्म लेने वालों और मरने वालों के बीच का अंतर लगभग 9 लाख तक पहुंच गया है. यह आंकड़ा जापान के इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी वार्षिक जनसंख्या गिरावट माना जा रहा है.
12.5 करोड़ की आबादी पर भारी असर
करीब 12.5 करोड़ की कुल आबादी वाले देश के लिए एक ही साल में 9 लाख लोगों का कम होना बड़ा झटका है. यह कुल जनसंख्या का लगभग 0.7 फीसदी है, जो जापान ने महज एक साल में खो दिया. भारत जैसे अरबों की आबादी वाले देश के लिए यह संख्या छोटी लग सकती है, लेकिन जापान के संदर्भ में यह बेहद गंभीर और चिंताजनक संकेत है.
जापान कई वर्षों से लगातार जनसंख्या में गिरावट देख रहा है. घटती जन्म दर और बढ़ती औसत उम्र ने देश के सामाजिक ढांचे को बदल दिया है. युवाओं की संख्या तेजी से घट रही है, जबकि बुजुर्ग आबादी का अनुपात लगातार बढ़ता जा रहा है. इसका सीधा असर जापान की आर्थिक रफ्तार और सामाजिक संतुलन पर पड़ रहा है.
अर्थव्यवस्था पर दोहरा दबाव
कामकाजी उम्र के युवाओं की कमी जापान की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती बन गई है. एक ओर वर्कफोस घटने से आर्थिक विकास की गति धीमी पड़ रही है, वहीं दूसरी ओर बुजुर्गों के लिए पेंशन और स्वास्थ्य सेवाओं पर सरकार का खर्च लगातार बढ़ रहा है. इससे आर्थिक मोर्चे पर जापान को दोहरे दबाव का सामना करना पड़ रहा है.
सरकारी कोशिशें, लेकिन नतीजे सीमित
जापानी सरकार इस संकट से निपटने के लिए कई कदम उठा चुकी है. बच्चों के जन्म पर आर्थिक सहायता, वर्क-लाइफ बैलेंस में सुधार और महिलाओं की कार्यक्षेत्र में भागीदारी बढ़ाने जैसे उपाय किए गए हैं. हालांकि, अब तक इन प्रयासों का जनसंख्या वृद्धि पर कोई ठोस असर दिखाई नहीं दिया है और गिरावट का सिलसिला जारी है.
जनसंख्या विशेषज्ञों का मानना है कि अगर जापान जल्द ही अपनी आबादी को स्थिर करने और बढ़ाने का कोई प्रभावी रास्ता नहीं खोजता, तो आने वाले दशकों में यह समस्या और गंभीर रूप ले सकती है. तब यह संकट सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि जापान के भविष्य की दिशा और उसकी वैश्विक भूमिका तय करने वाला अहम मुद्दा बन जाएगा.