
यूक्रेन और रूस के बीच शांति वार्ता शुरू होने ही वाली थी कि यूक्रेन ने सोमवार तड़के रूस के कई सैन्य हवाई ठिकानों पर हमला कर दिया. यूक्रेन की इंटेलिजेंस सर्विस एसबीयू (SBU) ने इस हमले को 'ऑपरेशन स्पाइडर वेब' नाम दिया. एसबीयू ने बताया कि वह पिछले डेढ़ साल से इस हमले की तैयारी कर रहा था. हमले को अंजाम देने के लिए यूक्रेन ने अपने ड्रोन लकड़ी के शेड्स में छिपाए और रूसी हवाई ठिकानों के पास जाने वाले ट्रकों में लाद दिए.
अगर यूक्रेन की मानें तो इस हमले में रूस के कम से कम 41 लड़ाकू विमानों पर हमला हुआ. अधिकारियों का कहना है कि रूस ने इस शातिर हमले में सात अरब डॉलर का नुकसान झेला है. जब यूक्रेन के इस हमले की खबरें सामने आईं तो लोगों को करीब 80 साल पहले अंजाम दिया गया पर्ल हार्बर हमला याद आ गया. लोग इन दोनों घटनाओं की तुलना करने लगे. आइए जानते हैं क्या था वह पर्ल हार्बर हमला जिसने दूसरे विश्व युद्ध का रुख बदल दिया था.
जब जापान ने किया था अमेरिका पर हमला
पर्ल हार्बर दूसरे विश्व युद्ध का एक अहम मोड़ था. तारीख थी सात दिसंबर, 1941. जापान ने सुबह 7:55 बजे हवाई द्वीप (Hawai Island) के पर्ल हार्बर में अमेरिकी नौसैनिक अड्डे पर अचानक हमला किया. इस हमले का उद्देश्य अमेरिका के प्रशांत बेड़े को कमजोर करना था ताकि जापान दक्षिण-पूर्व एशिया में अपने विस्तारवादी अभियान को बिना किसी बड़े विरोध के आगे बढ़ा सके. इस हमले का नतीजा यह हुआ कि अमेरिका सीधे तौर पर विश्व युद्ध में शामिल हो गया. और वैश्विक इतिहास की दिशा बदल गई.
कैसे बनी थी हमले की योजना?
जापान ने इस हमले की योजना गुप्त रूप से बनाई थी. जापानी नौसेना के कमांडर एडमिरल इसोरोकु यामामोटो ने इसे "ऑपरेशन हवाई" नाम दिया. छह विमानवाहक पोतों, 400 से अधिक विमानों, और कई युद्धपोतों, पनडुब्बियों और सहायक जहाजों के साथ जापानी बेड़ा हवाई की ओर बढ़ा. अमेरिका को इस हमले की कोई पूर्व चेतावनी नहीं थी, क्योंकि जापान ने शांति वार्ता के बहाने अमेरिका को भ्रम में रखा. हमले से पहले जापान ने औपचारिक रूप से युद्ध की घोषणा भी नहीं की थी.
यह हमला दो चरणों में हुआ. पहले चरण में जापानी विमानों ने पर्ल हार्बर के युद्धपोतों, हवाई अड्डों और सैन्य सुविधाओं पर बमबारी की. दूसरा चरण हवाई हमलों और टारपीडो हमलों का मिश्रण था. प्रमुख लक्ष्य अमेरिकी युद्धपोत थे जो हार्बर में "बैटलशिप रो" पर खड़े थे. इस हमले में अमेरिका का युद्धपोत 'यूएसएस एरिज़ोना' सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ. जब एक बम ने इसके गोला-बारूद डिपो को उड़ा दिया तो यह जहाज़ डूब गया था और 1,177 नाविक मारे गए थे.
इस हमले में अमेरिका के कुल मिलाकर आठ युद्धपोत क्षतिग्रस्त या नष्ट हुए. कुल 188 विमान नष्ट हुए और 2,403 अमेरिकी सैनिक व नागरिक मारे गए. इसके अलावा 1,178 लोग घायल भी हुए. हालांकि इसके बाद जो हुआ, वह जापान से सोचा भी नहीं था.
लिटिल बॉय, फैट मैन की हुई थी एंट्री
जापान का यह हमला रणनीतिक रूप से सफल रहा, लेकिन दीर्घकालिक रूप से इसने उनकी हार की नींव रखी. अमेरिका पहले तटस्थ था लेकिन इस हमले के बाद युद्ध में कूद पड़ा. राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी. रूजवेल्ट ने आठ दिसंबर को इसे "शर्मनाक दिन" करार दिया और कांग्रेस ने जापान के खिलाफ युद्ध की घोषणा की. इसके बाद जर्मनी और इटली ने भी अमेरिका के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी जिससे यह युद्ध वैश्विक हो गया.
पर्ल हार्बर ने अमेरिकी समाज और सेना को झकझोर दिया लेकिन इसने देश को एकजुट भी किया. अमेरिका ने तेजी से अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाई और प्रशांत क्षेत्र में जापान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई शुरू की. मिडवे की लड़ाई (1942) जैसे बाद के युद्धों में अमेरिका ने जापान को निर्णायक हार दी. दूसरा विश्व युद्ध आखिर परमाणु हमलों के साथ ही खत्म हुआ.
अमेरिका ने पहले छह अगस्त 1945 को हिरोशिमा पर 'लिटिल बॉय' नाम का परमाणु बम गिराया. इस हमले में अनुमानित 80,000 लोग मारे गए. इसके बाद अमेरिका ने नौ अगस्त को नागासाकी पर 'फैट मैन' नाम का एक परमाणु बम गिराया जिसमें अनुमानित 40,000 लोग मारे गए. आखिर जापान ने 15 अगस्त 1945 को आत्मसमर्पण कर दिया और यह युद्ध खत्म हुआ.